ज्ञान के मुताबिक होगा चरित्र का निर्माण:डॉ.पद्मराज
सिमडेगा: जैन भवन के सभागार में उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कथावाचक डॉ. पद्मराज
सिमडेगा: जैन भवन के सभागार में उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कथावाचक डॉ. पद्मराज जी महाराज ने बुधवार को कहा कि जीवन में आचार को प्रथम धर्म कहकर उसे सर्वोपरि मूल्य दिया गया है, किन्तु क्रम की दृष्टि से देखें तो आचार से पहले ज्ञान को स्वीकार किया गया है। कारण कि ज्ञान के द्वारा ही आचार के सम्यक और असम्यक का भेद निश्चित हो पाता है। स्वामी जी ने बताया कि तीर्थंकर महावीर कहते हैं कि चरित्र से भ्रष्ट व्यक्ति तो कदाचित सम्भल भी सकता है, ¨कतु जो ज्ञान से भ्रष्ट है वह सम्भल नहीं सकता। इसका कारण यह है कि चरित्र हमेशा ज्ञान के बाद आता है। जैसा ज्ञान होगा वैसा ही चरित्र हो जाएगा। चरित्र को ही आचार कहा गया है। शुद्धाचार के लिए ज्ञान का शुद्ध होना अत्यंत आवश्यक है अन्यथा अशुद्ध ज्ञान से शुद्ध आचार प्रकट नहीं हो सकता।
स्वामी जी ने भस्मासुर की कथा सुनाते हुए कहा कि उसने 12 वर्ष तक की कठिन तपस्या किया। प्रभु के दर्शन भी हुए। उनसे वरदान भी प्राप्त कर लिया किन्तु मिला क्या ? कुछ भी नहीं। इतनी तपस्या करने पर भी उसने वरदान में मांगा कि मैं जिसके सिर पे हाथ रख दूँ वह भस्म हो जाए। इसलिए उसका नाम भस्मासुर पड़ गया था। भगवान विष्णु की चतुराई से उसने अपने ही सिर पर अपना हाथ रखा, और भस्म हो गया। जब ज्ञान सम्यक न हो तो आचार ऐसा हो जाता है। उसका ज्ञान सम्यक होता तो वह कभी भी ऐसा वरदान नहीं मांगता। दूसरों को मारने का ख्याल मौजूद है। तो स्पष्ट है कि जिसका ज्ञान अशुद्ध है वह भटकेगा ही। चरित्र से जो गिर गया है, उसे तो ज्ञान सहारा देकर उठा सकता है। ¨कतु जो ज्ञान से ही गिर गया हो उसे कौन उठाएगा ?
स्वामी जी ने आगे कहा कि व्यक्ति ज्ञान की आराधना करते करते जीवन का इतना विकास कर लेता है कि वह स्वयं भगवान बन जाता है। हममे और भगवान में इतना ही अंतर है कि वे ज्ञान का पूर्ण विकास कर सके और भगवान बन गए। हम ज्ञान का अपेक्षित विकास नहीं कर पाए, इसलिए संसार में भटक रहे हैं।
प्रवचन सभा में सत्यभामा बंसल, रेखा जैन, सुनीता जैन, सारिका जैन, ज्योति जैन, सरोज अग्रवाल, सरिता अग्रवाल, मीरा जैन, श्रद्धा रोहिल्ला आदि उपस्थित थे।