अंहकार सबसे बड़ा शत्रु, इससे पनपती है शत्रुता
सिमडेगा स्थानीय जैन भवन में कीर्तन सभा का आयोजन हुआ। इसमें कथावाचक डॉ.पद्मराज जी महाराज न
सिमडेगा : स्थानीय जैन भवन में कीर्तन सभा का आयोजन हुआ। इसमें कथावाचक डॉ.पद्मराज जी महाराज ने अहंकार से होने वाले परिणामों का विश्लेषण किया। उन्होंने कहा अहंकार व्यक्ति का प्रमुख शत्रु है। तीर्थंकरों के वचन हैं कि अगर अहंकार है तो शत्रु की क्या आवश्यकता है? अर्थात अहंकार का होना ही शत्रुओं के लिए खुला प्रवेश द्वार है। अहंकार से ही शत्रुता को पनपने का अवसर मिलता है। इसलिए अहंकारी व्यक्ति के चारों तरफ शत्रुओं की संख्या बढ़ती जाती है। परिणाम यह होता है कि वह भीतर से बिल्कुल अकेला पड़ जाता है। इतना ही नहीं उसका मनोबल भी कमजोर हो जाता है। इसलिए जीवन में सफलता और खुशी चाहने वालों को चाहिए कि स्वयं को सदा अहंकार के चंगुल से बचाये रखें। इसके लिए निरन्तर विनयधर्म का व्यवहार किया जाना चाहिए। महाराज जी ने आगे कहा अहंकार को नष्ट करने का एकमात्र उपाय है, लगातार विनम्रता का व्यवहार करते रहना। जहां अभिमान विनय का नाश करता है वहीं विनय अभिमान का नाश करता है। ये दोनों हमारे जीवन में अवश्य मौजूद रहते हैं। अगर विनय कमजोर हो जाये तो अहंकार विजयी हो जाता है और अहंकार कमजोर हो जाए तो विनय जीतता है। आप विनय को पुष्ट करते हैं तो अपने भीतर राम को वर्धमान करते हैं और अगर अहंकार को पुष्ट करते हैं तो रावण को फलने-फूलने का मौका देते हैं। स्वामी जी ने बताया कि विनय के लिए वंदना करना सर्वथा सहज और सबके लिए शक्य उपाय है। परमात्मा को की गई वंदना आपको वंदनीय बना देती है। राजा श्रेणिक की कथा सुनाते हुए कहा कि आपसी झगड़ों को आपस में ही समेट लेना चाहिए। मौके पर कन्हैया अग्रवाल, विष्णु बोन्दिया, बजरंग मित्तल, अशोक जैन, सुशील जैन, रामप्रताप बंसल, गुलाब जैन आदि मारवाड़ी मोहल्ला के अनेक परिवार उपस्थित हुए। तीर्थंकर महावीर आरती के बाद मंगलपाठ हुआ और सबने प्रसाद ग्रहण किया।