सिंगबोंगा का आह्वान कर समाज व विश्व शांति के लिए की प्रार्थना
आदिवासी हो संस्कृति का महान प्रकृति पर्व मागे परब सरायकेला समेत आसपास के क्षेत्रों में धूमधाम से मनाया जा रहा है। प्रथम चरण में पहाड़पुर विष्णु पादुका नीमडीह व सरगीडीह में मागे परब का आयोजन किया गया। इस तीन दिवसीय मागे परब में पुजारी(दिउरी) अजय तापे व मंगल तापे ने विधि-विधान के साथ मागे पूजा-अर्चना की। देशाउली में ईष्ट देव सिगबोंगा का आह्वान कर समाज व विश्व शांति के लिए प्रार्थना की..
जागरण संवाददाता, सरायकेला : आदिवासी हो संस्कृति का महान प्रकृति पर्व मागे परब सरायकेला समेत आसपास के क्षेत्रों में धूमधाम से मनाया जा रहा है। प्रथम चरण में पहाड़पुर, विष्णु पादुका, नीमडीह व सरगीडीह में मागे परब का आयोजन किया गया। इस तीन दिवसीय मागे परब में पुजारी(दिउरी) अजय तापे व मंगल तापे ने विधि-विधान के साथ मागे पूजा-अर्चना की। देशाउली में ईष्ट देव सिगबोंगा का आह्वान कर समाज व विश्व शांति के लिए प्रार्थना की। मौके पर आदिवासी हो समाज की मान्यता के अनुसार सृष्टि के प्रथम पुरुष लुकू हुड़ांग व लुकू बूढ़ी की भी आराधना की गई। इस अवसर पर स्थानीय वार्ड पार्षद जुगल तापे समेत डा. तापे, उदय तियू, जोगो तापे, राजेश तापे, करण तापे, सोमय तापे, डिबरू चातर, समथान मुंडा व अन्य की उपस्थिति में रात भर अखरा में नृत्य-संगीत कर मागे परब मनाया गया। सृष्टि के सृजन की गाथा है मागे परब : आदिवासी हो समाज का महान मागे परब सृष्टि के सृजन से संबंध रखता है। समाज के कोल झारखंड बोदरा ने बताया कि धार्मिक मान्यता के अनुसार, पृथ्वी की रचना के बाद ईष्ट देव ने सृष्टि के संचालन व मानव जाति की वृद्धि के लिए स्त्री-पुरुष के पहले जोड़े के रूप में लुकू हुडांग व लुकू बूढ़ी को धरती पर भेजा था। परंतु लंबे समय तक उनके बीच पति-पत्नी का संबंध स्थापित नहीं होने पर सिगबोंगा साधु के वेश में दोनों के पास पहुंचते हैं। उन्हें पूजा-अर्चना के साथ मागे परब मनाने के लिए प्रेरित करते हैं। पूजा के समय भगवान को शुद्ध तरीके से बनाए गए हड़िया का रास्सी अर्पण कर प्रसाद के रूप में सेवन करने का विधि-विधान हैं। साधु की सलाह पर दोनों ने मागे परब का आयोजन कर पूजा-अर्चना की और प्रसाद के रूप में हड़िया रास्सी का सेवन किया। उसके बाद उनके शरीर में एक विकार उत्पन्न हुआ और दोनों के ही बीच यौन संबंध कायम होने के बाद मानव जाति का आविर्भाव हुआ। इन दिनों में सिमट रहा परब : परंपरानुसार एक सप्ताह तक मनाया जाने वाला मागे परब अब मात्र तीन दिनों में सिमट चुका है। प्राचीन काल से चली आ रही परंपरा के अनुसार, एक सप्ताह तक आयोजित होने वाले मागे परब के पहले दिन हे सकाम का आयोजन किया जाता है, जिसमें समाज के सभी लोग जंगल जाकर पूजा में उपयोग आने वाला साल का पत्ता, साल का दातून व दाल की लकड़ियां लाते हैं। परब के दूसरे दिन गुरी परब का आयोजन किया जाता है, जिसमें पूरे घर की साफ-सफाई कर घर व आंगन की गोबर व लिप कर शुद्ध किया जाता है। परब के तीसरे दिन पर मागे परब का आयोजन कर परंपरानुसार ईष्ट देवता सिंगबोंगा के साथ-साथ प्रकृति समेत अन्य देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। और अखाड़े मैं नृत्य संगीत का आयोजन होता है। चौथे दिन जात्रा का आयोजन कर दूसरी दिउरी का चुनाव किया जाता है, जो आने वाले एक वर्ष तक गांव के सभी धार्मिक संस्कारों को संपन्न कराता है। परब के पांचवें दिन पर ओले इती का आयोजन किया जाता है, जिसमें इती यानी हड़िया को गांव के सभी लोग अपने-अपने घर से लेकर दिउरी के घर पहुंचते हैं। जहां दिउरी के घर में रखे बर्तन में डालने के क्रम में हड़िया से बर्तन भर जाने पर जमीन यानी ओले पर गिरता है। छठवें दिन गोआ पोंगा का आयोजन किया जाता है, जिसमें घर के पशुओं के अच्छे स्वास्थ्य के लिए सिगबोंगा से प्रार्थना और पूजा अर्चना की जाती है। मागे परब आयोजन के अंतिम और सातवें दिन पर हर मागे का आयोजन किया जाता है। जिसमें गांव के युवक हाथों में डंडा पकड़कर दौड़ते हुए गांव का चक्कर लगाते हैं गांव की सीमा पर ले जाकर डंडों को गाड़ देते हैं। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से बुरी बलाओं को गांव से भगाया जाता है। खास होती है मेहमान नवाजी : मागे परब की विशिष्टता है कि इस अवसर पर दूरदराज के लोग भी सगे संबंधियों व मित्रों के घर पहुंचते हैं। हर गांव में अलग-अलग दिन परब का आयोजन होने से सभी लोग एक-दूसरे के मागे परब में शामिल होते हैं। सातवें दिन लग जाता है खुले विचारों पर प्रतिबंध : हर मागे के के साथ ही युवक-युवतियों के बीच खुले विचार के संबंधों पर सामाजिक प्रतिबंध लगा दिया जाता है।