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खरकई व संजय नदी में लोगों ने किया पवित्र स्नान, नए कपड़े पहनकर मकर पकवान का लिया स्वाद

सरायकेला व आसपास के क्षेत्रों में शुक्रवार को पवित्र स्नान के साथ क्षेत्र का प्रमुख त्योहार मकर मनाया गया। इस अवसर पर लोगों ने नदी व सरोवर में आस्था की डुबकी लगाई।

By JagranEdited By: Published: Sat, 15 Jan 2022 06:00 AM (IST)Updated: Sat, 15 Jan 2022 06:00 AM (IST)
खरकई व संजय नदी में लोगों ने किया पवित्र स्नान, नए कपड़े पहनकर मकर पकवान का लिया स्वाद
खरकई व संजय नदी में लोगों ने किया पवित्र स्नान, नए कपड़े पहनकर मकर पकवान का लिया स्वाद

जागरण संवाददाता, सरायकेला : सरायकेला व आसपास के क्षेत्रों में शुक्रवार को पवित्र स्नान के साथ क्षेत्र का प्रमुख त्योहार मकर मनाया गया। इस अवसर पर लोगों ने नदी व सरोवर में आस्था की डुबकी लगाई। खरकई व संजय नदी समेत विभिन्न जलाशयों में पारंपरिक रीति-रिवाज के अनुसार लोगों ने पवित्र स्नान किया। उसके बाद नए कपड़े पहन कर मकर पकवान का स्वाद लिया। ज्ञात हो कि मकर झारखंड का मुख्य त्योहार है, जिसे पारंपरिक रीति-रिवाज के अनुसार मनाया जाता है। इस अवसर पर हर तबके व समुदाय के लोग स्नान कर नए वस्त्र पहनते हैं। स्नान घाट पर ओघिरा बनाया गए थे, जहां शुभ मुहुर्त में मकर स्नान कर लोगों ने ठंड से बचाव के लिए अलाव का सहारा लिया। मकर पर नए अन्न से बने पकवान खाने की परंपरा है। मकर पर्व की शुरुआत गुरुवार को ही बाउंड़ी के साथ हुई थी। शुक्रवार की सुबह से ही सरायकेला शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में मकर पर्व की शुरुआत हुई और तरह-तरह के गीत संगीत बजने लगे। संगीत की धुन पर युवक-युवतियों ने टुसु के साथ जश्न भी मनाया। महिलाएं व युवतियां टुसु के साथ नदी में मकर स्नान की। अब शनिवार को आखान यात्रा मनाई जाएगी। झारखंड में आखान यात्रा का दिन शुभ माना जाता है। इस दिन स्थानीय लोग अच्छे-अच्छे कपड़े पहनते हैं। किसान हलों की पूजा करते हैं। नकारात्मक विचार को त्याग करने का संदेश देती है मकर संक्रांति : मकर संक्रांति को देवताओं का सूर्योदय माना जाता है। यह पर्व असुरी (नकारात्मक) विचार को छोड़ दैवी (सकारात्मक) विचार को अपनाने का संदेश देती है। सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना मकर संक्रांति कहलाता है। संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं। सूर्य के उत्तरायण होते ही दिन बड़ा व रात छोटी होने लगती है। मकर संक्रांति सूर्योपासना का ऐसा पर्व है, जो हमारे लौकिक जीवन को देव जीवन की ओर मोड़ता है। यह पर्व हमारे भीतर शुभत्व व नवजीवन का बोध भरकर हमें चैतन्य, जाग्रत, जीवंत व सक्रिय बनाता है। ज्ञात हो कि सूर्य ही एकमात्र ऐसे प्रत्यक्ष देवता हैं जो सतत क्रियाशील रहकर हम धरतीवासियों का भरण-पोषण करते हैं।

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