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महाप्रभु जगन्नाथ को खिलाई गई दशमूली दवा

पूर्णिमा के दिन अत्याधिक स्नान से प्रभु जगन्नाथ बलभद्र व देवी सुभद्रा बीमार हो गये है। तीनों का विगत पांच जून से मंदिर के अणसर गृह में देशी पद्वति से इलाज किया जा रहा है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 17 Jun 2020 12:56 AM (IST)Updated: Wed, 17 Jun 2020 12:56 AM (IST)
महाप्रभु जगन्नाथ को खिलाई गई दशमूली दवा
महाप्रभु जगन्नाथ को खिलाई गई दशमूली दवा

संसू, खरसावां : पूर्णिमा के दिन अत्याधिक स्नान से प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्रा बीमार हो गये है। तीनों का विगत पांच जून से मंदिर के अणसर गृह में देशी पद्वति से इलाज किया जा रहा है। मंगलवार को दस जंगली जड़ी-बुटी से दबा तैयार कर खिलाया गया। इस दसमूली दबा में कृष्ण परणी, शाला परणी, बेल, गम्हारी, अगीबथु, लबिग कोली, अंकरांती, तिगोखरा, फणफणा, सुनारी, वृहती, पाटेली के औषाधिय हिस्सों को मिला कर तैयार किया जाता है। इन औषधिय जड़ी-बुटी का आयुर्वेद में भी खासा जिक्र है। परंपरा के अनुसार इस दबा को खाने के दो तीन दिन बाद प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्रा स्वस्थ्य होते है। प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्रा को दशमूली दबा पिलाने के पश्चात भक्तों में भी इसे प्रसाद के रुप में वितरण किया गया। क्षेत्र में मान्यता है कि इस दबा के पिने से लोग एक साल तक रोग-व्याधी से दूर रहते है। मान्यता है कि दबा खाने के बाद प्रभु जगन्नाथ भाई-बहन के साथ स्वास्थ्य होते है। इसके पश्चात नेत्र उत्सव पर भगवान जगन्नाथ भक्तों को दर्शन देंगे। 21 जून को नेत्र उत्सव पर भगवान जगन्नाथ के नव यौवन रुप के दर्शन होंगे। 23 जून को रथ यात्रा है। कोरोना के कारण इस वर्ष रथ मेला का आयोजन नहीं होगा। सरकार की ओर से रथ यात्रा के आयोजन को लेकर अभी तक किसी तरह का निर्देश नहीं मिला है। कोरोना के कारण रथ यात्रा में इस वर्ष सिर्फ रश्म अदायगी होने की ही संभावना है।

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--जिला में बडे पैमाने पर होता है रथ यात्रा का आयोजन

सरायकेला खरसावां जिला में बडे पैमाने प्रभु जगन्नाथ के रथा यत्रा का आयोजन होता है। जगत के पालनहार प्रभु जगन्नाथ के द्वादश यात्राओं में वार्षिक रथ यात्रा सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है। जिला के सरायकेला, खरसावां, हरिभंजा, सीनी, चांडिल, गम्हरिया, दलाईकेला, संतारी, जोजोकुडमा, बंदोलोहर, चाकडी, पोटोबेडा आदी जगहों पर रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है। सरायकेला व खरसावां में रथ यात्रा का आयोजन राजा-राजवाडे के जमाने से होती आ रही है। सरायकेला व खरसावां में 17 वीं सदी से रथ यात्र का आयोजन होने की बात कही जाती है।


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