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Jharkhand Assembly Election 2019 : झामुमो के किले में सेंधमारी भाजपा के लिए चुनौती

सरायकेला खरसावां जिले की सरायकेला विधानसभा सीट को झामुमो ने अभेद्य किला बना रखा है। झामुमो विधायक चंपई सोरेन 2005 से लगातार यहां जीतते आ रहे हैं।

By Vikas SrivastavaEdited By: Published: Mon, 25 Nov 2019 02:43 PM (IST)Updated: Mon, 25 Nov 2019 02:43 PM (IST)
Jharkhand Assembly Election 2019 :  झामुमो के किले में सेंधमारी भाजपा के लिए चुनौती
Jharkhand Assembly Election 2019 : झामुमो के किले में सेंधमारी भाजपा के लिए चुनौती

सरायकेला (प्रमोद सिंह)। सरायकेला खरसावां जिले की सरायकेला विधानसभा सीट को झामुमो ने अभेद्य किला बना रखा है। झामुमो विधायक चंपई सोरेन 2005 से लगातार यहां जीतते आ रहे हैं। भाजपा हर चुनाव में जोर लगाती है, लेकिन कामयाबी हाथ नहीं लगती।

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वर्ष 2014 के चुनाव में भाजपा ने गणोश महाली पर दांव लगाया। गणोश ने भी कड़ी टक्कर दी। तब काउंटिंग प्रक्रिया के दौरान ऐसा लगा कि इस बार चंपई का किला गणोश ध्वस्त कर देंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। चंपई सोरेन किस्मत के धनी निकले। थोड़े अंतर से ही सही, लेकिन बाजी मार ले गए। अब एकबार फिर यहां भाजपा ने गणोश पर दांव लगाया है। फिर आर-पार की लड़ाई होने की संभावना है। गणोश महाली जहां किले में सेंधमारी के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं, वहीं चंपई सोरेन फिर रिकार्ड तोडऩे की तैयारी कर रहे हैं। कौन कितना कामयाब होगा, यह समय बताएगा।

झामुमो और भाजपा दोनों के कार्यकर्ता अपनी अपनी जीत के दावे कर रहे हैं। सरायकेला विधानसभा सीट पर भाजपा ने झामुमो को हमेशा टक्कर तो दी, लेकिन लगातार तीन चुनावों में जीत हासिल नहीं हुई। इससे पहले वर्ष 2000 के चुनाव में भाजपा नेता अनंतराम टुडू ने यहां झामुमो प्रत्याशी चंपई सोरेन को हराया था।

इस बार चुनाव में यहां से सात प्रत्याशी भाग्य आजमा रहे हैं। सात दिसंबर को यहां मतदान होना है। इलाके में चुनाव प्रचार परवान पर है। कोल्हान प्रमंडल में सबसे कम प्रत्याशी इसी क्षेत्र से चुनावी रण में हैं। इस विधानसभा क्षेत्र में दो तरह के मतदाता हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में जहां झामुमो की अच्छी पकड़ है, वहीं शहरी क्षेत्रों में भाजपा की।

क्षेत्र का राजनीतिक इतिहास

एक जमाने में यहां राजघराना हुआ करता था। राजघराने की राजनीति में रूचि भी थी। आजादी के बाद हुए चुनावों में राज परिवार प्रभावी रहा। वर्ष 1951 में राजा समर्थित गणतंत्र परिषद के प्रत्याशी मिहिर कवि यहां के पहले विधायक बने। वर्ष 1957 में राजा आदित्य प्रताप सिंहदेव विधायक बने। वर्ष 1962 में उनके पुत्र टिकैत नृपेंद्र नारायण सिंहदेव विधायक बने। दूसरे पुत्र राजेंद्र नारायण सिंहदेव 1957 में गणतंत्र परिषद प्रत्याशी के रूप में ओडिशा के तितलागढ़ से विधायक बने।

वर्ष 1974 के चुनाव तक राजेंद्र नारायण सिंहदेव चुनाव जीतते रहे। 1967 में स्वतंत्र पार्टी का विधायक रहते हुए उन्होंने ओडिशा जन कांग्रेस के साथ मिली-जुली सरकार बनाई। सिहंदेव 1971 तक ओडिशा के मुख्यमंत्री रहे। इधर, सरायकेला में राज परिवार कमजोर पड़ रहा था। टिकैत नृपेंद्र नारायण सिंहदेव 1967 का चुनाव हार गए और जनसंघ के प्रत्याशी आरपी षाडं़गी जीत गए। दो साल बाद उपचुनाव में षाड़ंगी हार गए। उनको राजा समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार बनबिहारी महतो ने हराया। वर्ष 1972 में महाराजा के नाती सत्यभानु सिंहदेव चुनाव लड़े। केवल 299 वोटों से जीते। यह अबतक सबसे कम वोट से जीतने का रिकार्ड है।

सिंचाई समस्या

बागक्षेत्र के लोगों की आजीविका का मुख्य साधन खेती है। बावजूद यहां सिंचाई की कोई मुकम्मल व्यवस्था नहीं है। अगर बरसात न हो तो सुखाड़ पड़ जाता है। आज तक सिंचाई के लिए किसी ने पहल नहीं की।

नहीं बना पुल

आदित्यपुर-आषंगी के बीच पुल निर्माण अब तक अधूरा पड़ा है। लंबे समय से लोग इसकी मांग करते आ रहे हैं। कब बनकर तैयार होगा, कोई जवाब देने वाला नहीं है। पांच साल में कोई पहल नहीं हुई।

नहीं बना प्रखंड

यहां के लोग लंबे समय से कुनाबेड़ा को नया प्रखंड बनाने की मांग करते आ रहे हैं। पिछले पांच वषों के दौरान पक्ष-विपक्ष किसी ने इस दिशा में ठोस पहल नहीं की। क्षेत्र विकास से वंचित है।


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