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क्रशर में नहीं मिला काम, मनरेगा से परिवार चलाना मुश्किल

साहिबगंज जिला मुख्यालय से 14 किलोमीटर दूर मोतीझरना पंचायत का डाकबंगला गांव। आदिवासी शास

By JagranEdited By: Published: Fri, 05 Jun 2020 06:11 PM (IST)Updated: Fri, 05 Jun 2020 06:11 PM (IST)
क्रशर में नहीं मिला काम, मनरेगा से परिवार चलाना मुश्किल
क्रशर में नहीं मिला काम, मनरेगा से परिवार चलाना मुश्किल

साहिबगंज : जिला मुख्यालय से 14 किलोमीटर दूर मोतीझरना पंचायत का डाकबंगला गांव। आदिवासी शासन व्यवस्था के तहत यहां डाकबंगला का निर्माण किया गया था। इस वजह से गांव का नाम ही डाकबंगला पड़ गया। साहिबगंज-फरक्का एनएच 80 के किनारे स्थित यह गांव अल्पसंख्यक बहुल है। गांव की आबादी करीब चार सौ है। 60 लोग दूसरे प्रदेशों में राजमिस्त्री का काम करते हैं। इनमें से 40 लोग लॉकडाउन के बाद गांव लौट चुके हैं। ईद पर्व करीब था और उपर से लॉकडाउन हो गया। इस वजह से कामकाज बंद हुआ तो अधिकतर लोग गांव लौट आए। कुछ लोग ग्रीन जोन से आए तो होम क्वारंटाइन रहे। कुछ लोगों को सरकारी क्वारंटाइन में रहना पड़ा। अब सभी लोग गांव में आ चुके हैं। कुछ लोगों के पास राशन कार्ड भी नहीं है। औसतन हर घर का एक आदमी बाहर काम करता है। यहां रहनेवाले कुछ लोग क्रशर तो कुछ राजमिस्त्री का काम करते हैं। मजदूरी करने से पैसे आ जाते हैं इसलिए ग्रामीणों को राशन कार्ड न होने पर भी बहुत चिता नहीं थी। अब समस्या होने लगी है। मुखिया की ओर से अप्रैल माह में दस किलो चावल मिला। एक बार पुन: मिलना है। दो माह तो किसी तरह काम चला लेकिन मजदूर काम की तलाश में भी जुट गए हैं। कुछ लोग पिछले दिनों काम की तलाश में पास के क्रशर में गए लेकिन वहां निराशा हाथ लगी।

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शेख हसीब ने बताया कि एक साल से हैदराबाद में राजमिस्त्री का काम करते थे। प्रतिदिन 500 से 600 रुपये कमा लेते थे। 15 दिन या एक माह पर पैसा घर भेजते थे। इससे परिवार का भरण पोषण होता था। अब समस्या हो रही है।

शेख अल्ताफ कहते हैं कि पास के क्रशर में काम की तलाश में गए तो क्रशर मालिक यह कहकर लौटा दिया कि यहां पूर्व से ही पर्याप्त मजदूर हैं। अधिक मजदूर रखकर क्या करेंगे। अब लॉकडाउन खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं। फिर वहीं काम करने चले जाएंगे।

शेख मंसूर अली ने बताया कि लॉकडाउन के कारण घर आ गए। यहां काम की तलाश कर रहे हैं। काम मिल भी रहा है तो नियमित नहीं है। मनरेगा में काम कर परिवार को पालना मुश्किल है। बाहर काम करते थे तो पूरे माह काम मिलता था। उसी से घर पैसा भेजते थे। अब यहां खाना मुश्किल हो रहा है। लॉकडाउन खत्म होने पर बाहर जाकर काम करेंगे।

शेख सुल्तान ने कहा कि बाहर काम करके अपने परिवार व दूसरे से उधार लिए पैसे को चुका लेते थे पर दो माह हो गया यहां काम मिलता ही नहीं। जहां भी काम करने जाते हैं वहां कहा जाता है कि अभी तो काम नहीं है। होने पर बताएंगे। लॉकडाउन के कारण रोजगार तो छीन गया अब लगता है भूखे मरने की स्थिति आ जाएगी।

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किसी के पास जॉब कार्ड नहीं है तो वह अपने पंचायत में रोजगार सेवक व पंचायत सचिव से संपर्क करे। उसका जॉब कार्ड बन जाएगा। जॉब कार्ड बनने पर सौ दिन काम की गारंटी मिलेगी। 194 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से मजदूरी मिलेगी।

जैनी किस्कू, बीपीओ मनरेगा, तालझारी


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