हम विहान ढूंढते हैं, आंखों में जहान ढूंढते हैं
जागरण संवाददाता साहिबगंज हम खूब विहान ढूंढते हैं आंखों में जहान ढूंढते हैं एकल काव्
जागरण संवाददाता, साहिबगंज : हम खूब विहान ढूंढते हैं आंखों में जहान ढूंढते हैं एकल काव्यपाठ के जरिए कवि उमाशंकर राव ने आरण्यक काव्य मंच के पटल पर समां बांध दिया। रविवार को आरण्यक काव्य मंच साहिबगंज के फेसबुक पटल पर देवघर के वरिष्ठ कवि एवं शिक्षक उमाशंकर राव उरेन्दु ने एकल काव्य पाठ की जबरदस्त प्रस्तुति दी और समा बांध दिया।
अपनी प्रथम कविता के रूप में आंखे हंसती है आंखें रोती है आंखें जंगल की ओर ले जाती है, जिसमें खो जाने का डर भी होता है, आंखें कहां रहती हैं आंखें लहराकर भी होती है, आंखें नमकीन भी होती है आखिर गमगीन भी होती है की जबरदस्त प्रस्तुति दी। रात हो छोटी हो या हो बड़ी, रात ही होती है, जैसे गरीब, गरीब ही होता है मंजर कैसा भी हो, मंजर ही होता है पंक्तियों से समा बांध दिया। इसके बाद उन्होंने एक गजल प्रस्तुत की जिसके बोल थे- हम खूब विहान ढूंढते हैं, आंखों में जहान ढूंढते हैं, मतलब की इस दुनिया में जीने का एक मकान ढूंढते हैं।
आरण्यक काव्य मंच प्रत्येक रविवार को देश के विभिन्न भागों से साहित्यकारों को फेसबुक पटेल के जरिए एक कल काव्य पाठ के लिए आमंत्रित करता है। एकल काव्य पाठ के दौरान पटल अध्यक्ष राजेंद्र ठाकुर, कार्यक्रम संयोजक अवधेश कुमार अवधेश, पटल संस्थापक विजय कुमार भारती, पटल संचालक भगवती रंजन पांडेय, तकनीकी संचालक अमन कुमार होली, सह तकनीकी संचालक निलेश पराशर मिश्रा, परामर्शदाता के रूप में अभय कुमार, विनाय कुमार झा, परामर्श दात्री उषा भारती, शैलेंद्र राम, राजकरण सिंह, शंभूनाथ यादव, कुंदन कुमार, निर्मल गायत्री, प्रीति सिंह, ऋतुराज, शिवानंद, सपना चंद्रा, दिनेश गुप्त गर्ग, रेणु बाला कुमारी सखी, बलराम प्रसाद साह, सुधीर कुमार पांडे, प्यारेलाल मिश्र, रामजी दुबे आदि थे।