भूमि हो गई बंजर, पेड़ों में नहीं लगते फल
जाटी साहिबगंज/मिर्जापुर जिले में अवैध रूप से चलनेवाली ईंट चिमनी व भट्ठों की वजह से बरहड़वा के सिरासिन इलाके की भूमि बंजर हो गई। आसपास स्थित आम के पेड़ों पर फल लगना भी बंद हो गया। थोड़ा बहुत आम फलता भी है तो वह पकने से पूर्व ही सड़ कर गिर जाता है।
जाटी, साहिबगंज/मिर्जापुर : जिले में अवैध रूप से चलनेवाली ईंट चिमनी व भट्ठों की वजह से बरहड़वा के सिरासिन इलाके की भूमि बंजर हो गई। आसपास स्थित आम के पेड़ों पर फल लगना भी बंद हो गया। थोड़ा बहुत आम फलता भी है तो वह पकने से पूर्व ही सड़ कर गिर जाता है। इलाके के लोग परेशान हैं, लेकिन कोई उनकी बात सुनने को तैयार नहीं हैं। आसानी से अधिकारियों से सेटिग-गेटिग हो जाने से बंगाल के कुछ कारोबारियों ने भी बरहड़वा के विभिन्न इलाकों में अपनी चिमनी लगा ली है। यहां बने ईंट की आपूर्ति बंगाल तक होती है। चिमनी की प्रदूषण की मार झेल रहे बरहड़वा प्रखंड के सिरासिन गांव के नसीरुद्दीन शेख व आलमगीर आलम ने बताया कि उसके गांव के दक्षिण पश्चिम में अजंता, सहारा तथा राहुल नाम से तीन चिमनी चल रही है। इस कारण वहां पर स्थित उसके आम के बगीचे में पिछले 10 साल से आम की फसल नहीं के बराबर हो रही है। उन्होंने बताया कि जब आम के बगीचे में फल आता है तो यह महीने डेढ़ महीने के बाद चिमनी से निकलने वाली प्रदूषण के कारण एकाएक सड़ने लगता है। इतना ही नहीं इसके इर्द-गिर्द पहले जो किसान हरी सब्जियां उगाकर अपनी आजीविका चलाते थे वे भी अब बेरोजगार हो गए। काफी मेहनत के बाद भी पहले जैसी सब्जी वहां अब नहीं होती। ईंट चिमनी से निकलनेवाली छाई सब्जियों को बर्बाद कर देता है। उसका रंग भी खराब हो जाता है।
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पिछले साल किसानों ने किया था आंदोलन
पिछले साल सिरासिन गांव में तकरीबन 10 एकड़ में स्थित आम के बागान का पूरा आम सड़ गया था। इसके बाद स्थानीय लोगों ने ईंट चिमनी को बंद कराने के लिए कई दिनों तक आंदोलन किया था। इसके बाद चिमनी संचालकों को किसानों को हर्जाना के रूप में 35000 रुपये देना पड़ा था। हालांकि, जिन लोगों ने हल्ला-हंगामा किया उन्हें ही राशि मिली। बाकी लोग इससे वंचित रह गए। इतना ही नहीं बरहड़वा प्रखंड के पूर्वी क्षेत्र में जय किसान, जय जवान, मुक्ता, डायमंड, राज, नसीब आदि नामों से लगभग एक दर्जन अवैध चिमनी भट्ठा संचालित है। इनकी क्षमता काफी अधिक है। चिमनियों से निकलनेवाले धुएं से आसपास के लोगों को सांस की बीमारी हो रही है। किसानों ने बताया कि जब इस इलाके में ईंट-भट्ठा नहीं था तब अच्छी पैदावार होती थी पर जब से चिमनी चलने लगी है उनके क्षेत्रों की पैदावार में कमी आ गई है। बताया जाता है कि चिमनी से निकलनेवाली छाई की मोटी परत खेतों में बिछ जाती है। हालांकि, इस संबंध में राहुल भट्ठा के संचालक वाहिद जमा, अजंता भट्ठा के संचालक मोकिम शेख आदि का कहना है कि उनका भट्ठा मानक के अनुरूप संचालित हो रहा है। किसानों द्वारा लगाए जा रहे आरोप पूरी तरह सही नहीं है।
चिमनी भट्टा से वातावरण में कार्बन मोनोआक्साइड व कार्बन डाइआक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है। इसका जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। जमीन बंजर हो जाती है। इसलिए चिमनी को आबादी दूर लगाने की सलाह दी जाती है। सरकार द्वारा निर्धारित मानकों का पालन किया जाए तो दुष्प्रभाव कम होगा।
डा. रंजीत कुमार सिंह, पर्यावरणविद, साहिबगंज
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दैनिक जागरण अखबार के ही माध्यम से यह जानकारी मिली है कि एक भी चिमनी भट्ठा संचालक ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से अनुमति नहीं ली है। इस मामले में जिला खनन पदाधिकारी से वार्ता हुई है। शीघ्र ही अवैध रूप से चलने वाली चिमनियों को ध्वस्त कराया जाएगा। संचालकों पर भी नियमानुसार कार्रवाई होगी।
रौशन कुमार, एसडीओ, राजमहल।