देवाओं के अनुरोध पर विष्णु ने लिया वामन अवतार
उधवा/राजमहल(साहिबगंज): राजमहल के गंगा तट पर स्थित सूर्यदेव घाट पर आयोजित सात दिवसीय श्रीमद
उधवा/राजमहल(साहिबगंज): राजमहल के गंगा तट पर स्थित सूर्यदेव घाट पर आयोजित सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा से माहौल भक्तिमय हो गया है। कथा के तीसरे दिन रविवार को कथावाचिका साध्वी उषा रामायणी ने भगवान विष्णु के वामन अवतार की कथा विस्तृत जानकारी देते हुए कहा कि वामन ऋषि कश्यप तथा उनकी पत्नी अदिति के पुत्र थे। वे आदित्यों में बारहवें थे। ऐसी मान्यता है कि वह इन्द्र के छोटे भाई थे और राजा बलि के सौतेले भाई। विष्णु ने त्रेतायुग में वामन के रुप में मानव अवतार लिया था। बलि ने तीनों लोक पर अधिकार कर लिया था।
देवता बलि को नष्ट करने में असमर्थ थे। बलि ने देवताओं को यज्ञ करने जितनी भूमि ही दे रखी थी। सभी देवता अमर होने के बावजूद उसके खौफ के चलते छिपते रहते थे। तब सभी देवता विष्णु की शरण में गए। विष्णु ने कहा कि वह भी (बलि) उनका भक्त है, फिर भी वे कोई युक्ति सोचेंगे।तब विष्णु ने अदिति के यहां जन्म लिया और एक दिन जब बलि यज्ञ की योजना बना रहे थे तब वे ब्राह्मण-वेश में वहां दान लेने पहुंच गए। उन्हें देखते ही शुक्राचार्य उन्हें पहचान गए। शुक्र ने उन्हें देखते ही बलि से कहा कि वे विष्णु हैं। मुझसे पूछे बिना कोई भी वस्तु उन्हें दान मत करना। लेकिन बलि ने शुक्राचार्य की बात नहीं सुनी और वामन के दान मांगने पर उनको तीन पग भूमि दान में दे दी। जब जल छोड़कर सब दान कर दिया गया, तब ब्राह्मण वेश में वामन भगवान ने अपना विराट रूप दिखा दिया।
एक पग में भूमंडल नाप लिया। दूसरे में स्वर्ग और तीसरे के लिए बलि से पूछा कि तीसरा पग कहां रखूं? पूछने पर बलि ने मुस्कराकर कहा- इसमें तो कमी आपके ही संसार बनाने की हुई, मैं क्या करूं भगवान? अब तो मेरा शरीर ही बचा है, राजा का शरीर भी राजकीय संपत्ति है। इस प्रकार विष्णु ने उसके सिर पर तीसरा पैर रख दिया। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर विष्णु ने उस पाताल में रसातल का कलयुग के अंत तक राजा बने रहने का वरदान दे दिया। कथा के आयोजन में यजमान नकुल प्रसाद साहा, सुबोल चन्द्र साहा, मनोरमा साहा, किरणप्रभा, विनोद साहा, कुसुम साहा, संजीव साहा, पवन कुमार अग्रवाल सहित साहा परिवार के सदस्य अपना सक्रिय सहयोग दे रहे हैं।