झारखंड में मिले जुरासिक काल के जीवाश्म,जलवायु परिवर्तन के विषय में मिल सकती जानकारी
पहाडिय़ों पर जहां-तहां बिखरे जीवाश्म (फॉसिल्स) के संरक्षण की पहल तेज है। वन विभाग की भी इस पर नजर रहती है।
साहिबगंज, [धनंजय मिश्र]। खनिज संपदा से भरी झारखंड की धरती की गोद में समृद्धि ही नहीं शोध के भी साधन हैं। यहां है जीवाश्म, यह प्राचीनकाल के जीवों व वृक्षों के अवशेषों के पत्थर में बदल जाने के बाद की अवस्था है। संताल परगना के साहिबगंज जिले में इसकी बहुतायत है। राजमहल की पहाड़ियों के बीच मंडरो प्रखंड मुख्यालय से पांच किलोमीटर दूरी तय करने पर मिलते हैं तारा पहाड़ और गुरमी पहाड़। जहां जुरासिक काल के पादप जीवाश्म (पेड़ पौधों के जीवाश्म) पाए जाते जाते हैं।
मिर्जा चौकी रेलवे स्टेशन से 18 किलोमीटर की दूरी तय कर यहां पहुंचा जा सकता है। इसके आसपास आदिवासियों के गांव हैं। यहां की भोली-भाली जनजाति को इस जीवाश्म से कोई मतलब नहीं है। उनका अधिकांश वक्त भूख मिटाने के लिए साधन की तलाश में ही गुजरता है। फिर भी इसके प्रति उनमें उत्सुकता दिखती है। उस वक्त उनकी आतुरता और बढ़ जाती है जब देश-विदेश के सैलानी इसकी जानकारी लेने आते हैं। हालांकि, पहाडिय़ों पर जहां-तहां बिखरे जीवाश्म (फॉसिल्स) के संरक्षण की पहल तेज है। वन विभाग की भी इस पर नजर रहती है।
पादप जीवाश्मों के संरक्षण की वकालत
पादप जीवाश्मों के संरक्षण की जरूरत पर पादप वैज्ञानिकों का जोर है। इन वैज्ञानिकों का कहना है कि राजमहल की पहाडिय़ां 12 करोड़ वर्ष पहले ज्वालामुखी फटने से बनी हैं। कुछ साल पहले नेशनल यूनिवर्सिटी मैक्सिको के भूवैज्ञानिक प्रोफेसर लुईस के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की टीम ने जीवाश्म स्थल का मुआयना किया था। लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रो. केके अग्रवाल, डॉ. गौरव जोशी, डॉ. अमर अग्रवाल ने भी इस फासिल्स का अध्ययन किया है। इसकी महत्ता को जानकर उन्होंने मंडरो में जीवाश्म पार्क बनाकर इसके संरक्षण की वकालत की थी। इसका असर भी दिखा। हाल में ही यहां के सिदो-कान्हु स्टेडियम के विस्तारीकरण के दौरान फॉसिल्स मिले। नतीजतन पूरे क्षेत्र को प्रतिबंधित कर दिया गया। सुरक्षा के लिए वन विभाग की ओर से गार्ड को वहां तैनात कर दिया गया है।
फासिल्स पार्क निर्माण की प्रक्रिया धीमी
मंडरो में फासिल्स पार्क निर्माण से जुड़े रैयतों को मुआवजा देने के लिए वन विभाग के पास 50 करोड़ का फंड है। इस राशि से तारा व गुरमी पहाड़ की 70 हेक्टेयर जमीन पर फासिल्स पार्क बनाने की योजना है। लेकिन इसके लिए जमीन का अधिग्रहण नहीं किया जा सका। सरकार के नए आदेश की मानें तो पहले बिखरे जीवाश्म को संरक्षित किया जाएगा। इसके लिए वन विभाग नए सिरे से डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) बनाने में जुटा है। इसी साल तत्कालीन उपायुक्त ए मुथु कुमार ने साढ़े तीन हेक्टेयर जमीन की घेराबंदी का आदेश दिया था। मगर, तकनीकी अड़चनों के कारण आदेश का अनुपालन नहीं हो सका। हाल में ही वन एवं पर्यावरण विभाग के सचिव सुखदेव सिंह ने साहिबगंज वन विभाग को निर्देश दिया है कि पहले फॉसिल्स को स्थानीय स्तर पर संरक्षित किया जाए। कहने का मतलब इसे कहीं अन्यत्र नहीं ले जाना है।
राजमहल की पहाडिय़ों में फैले मंडरो का फॉसिल्स की चर्चा विदेश में भी है। इस धरोहर के संरक्षण के प्रति प्रशासन, जनप्रतिनिधि और सरकार उदासीन है। नतीजा स्थिति जस की तस है। हालांकि गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे ने इस पर पहल की है। उन्होंने विज्ञान व प्रोद्योगिकी, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के मंत्री डॉ. हर्षवर्द्धन से मुलाकात की है। फिलहाल पत्थर उद्योग के कारण जीवाश्म की चोरी हो रही है। इस जीवाश्म से कालांतर में जलवायु परिवर्तन का आकलन तक संभव है।
डॉ रंजीत कुमार सिंह, भूगर्भ शास्त्री, सिदो-कान्हु विश्वविद्यालय, दुमका
पहले चरण में 150 करोड़ की राशि से भूमि अधिग्रहण व बाउंड्री वॉल के निर्माण की योजना थी। मगर, सरकार की ओर से मिले निर्देश के आलोक में पहले बिखरे फॉसिल्स को संरक्षित करने की योजना है। इसके बाद ही फॉसिल्स पार्क निर्माण का कार्य शुरू हो जाएगा।
मनीष कुमार तिवारी,जिला वन प्रमंडल पदाधिकारी, साहिबगंज
फॉसिल्स वाले क्षेत्र में कोई खनन कार्य नहीं होगा। जहां भी खनन होता है उसे फौरन बंद कराया जाएगा। जिले में फॉसिल्स पार्क के लिए तैयार डीपीआर को देखने के बाद शीघ्र पार्क निर्माण की पहल की जाएगी।
डॉ. शैलेश कुमार चौरसिया, उपायुक्त, साहिबगंज
राजमहल की पहाड़ी की विशिष्ट पहचान है। इस पहाड़ी पर पाये जाने वाले वनस्पति, वन्यजीव, फॉसिल्स की अलग पहचान हैं। मंडरो प्रखंड में प्रचुर मात्रा में स्थित फॉसिल्स अलग किस्म के होने के कारण विश्व में इसकी चर्चा होती रहती है। समय व वातावरण के दुष्प्रभाव से फॉसिल्स नष्ट हो रहे हैं। जिनका संरक्षण एक पार्क बनाकर करने से कई लाभ होगा।
सरयू राय, मंत्री वन एवं पर्यावरण, झारखंड
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