जीने की कला सिखाता है विहंगम योग
योग और अध्यात्म के बल पर भारत विश्व गुरु है, विश्व गुरु था और विश्व गुरु रहेगा।
रांची : विहंगम योग के सुखनंदन सिंह सदय ने कहा कि विहंगम योग हमें जीने के साथ-साथ मरने की कला सिखाता है। साधना का अर्थ होता है, ज्ञान को प्रज्वलित कर आत्मा को परमात्मा से मिलन कराना। हम दुनिया को जानना चाहते हैं, लेकिन खुद को जानने का कभी प्रयास नहीं करते। अगर हम खुद को जानना चाहते हैं, तो हमें अध्यात्म और योग की राह पर चलना होगा। योग और अध्यात्म के बल पर भारत विश्व गुरु है, विश्व गुरु था और विश्व गुरु रहेगा। सदय रविवार को होटल बीएनआर चाणक्या में विहंगम योग राची की ओर से विश्व शाति के लिए आयोजित आतरिक शाति संगोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे। उन्होंने विहंगम योग की अविरल ज्ञान धारा से रू-ब-रू कराया।
कहा कि कुछ लोग अध्यात्म के नाम पर लोगों को गुमराह कर उन्हें अंधकार की ओर ले जा रहे हैं। सही गुरु की तलाश कर उनकी शरण में जाकर ज्ञान को प्राप्त करने की जरूरत है। आज विहंगम योग की साधना से लाखों लोग लाभान्वित हुए और उनकी जीवनशैली में काफी सुधार हुआ। विहंगम योग की साधना से निरोग रहने में मदद मिलती है। लेकिन विश्व में वेदों को अपनाया जा रहा है। वेदों में कही गई बातों को मान रहे हैं। वेदों का अनुवाद किया गया, जिसका विश्व के लोग अध्ययन कर कई सच्चाइयों से अवगत हो रहे हैं। योग को समझें और जुड़ें : गोपाल दिल्ली से आए विहंगम योग के प्रचारक गोपाल ऋषि जी ने कहा कि योग का वास्तविक अर्थ होता है आत्मा को परात्मा से मिलना।
योग कला पाने के लिए हमें गुरु के चरणों में जाना चाहिए। योग को समझें और इससे जुड़ें। अगर योग से जुड़ना चाहते हैं, तो योगी के पास जाएं। शास्त्र और संत कहते हैं कि योगी ही योग की जानकारी दे सकता है। जो जीव मन और पवन को जीत लेता है, वहीं योगी कहलाता है। मन को वश में करना है तो हमें गुरु की शरण में जाकर योग और अध्यात्म के गूढ़ रहस्यों को सीखना होगा। कार्यक्रम का समापन शाति पाठ के साथ हुआ। कार्यक्रम को सफल बनाने में एस राम यादव, विष्णुकात खेमका, निरंजन प्रसाद, गजेंद्र सिंह, उमेश चंद्र यादव, अनिल शर्मा, अखिलेश शर्मा, डॉ. पंकज दुबे आदि ने योगदान दिया।