याेग साधना से मनुष्य को मिल सकती है सभी दुखों से निजात, नियमित करें योगाभ्यास
Jharkhand Samachar. नियमित योग अभ्यास करने वालों को संक्रमण का खतरा बेहद कम रहता है। वैश्विक त्रासदी मनुष्य के नकारात्मक विचार व कर्मों का फल है।
रांची, जासं। International Yoga Day News दुनिया में महामारी, बाढ़, भूकंप आदि के रूप में हम जो कुछ भी तबाही देख रहे हैं वो ईश्वर के कार्य नहीं है। इसके लिए ईश्वर को दोष देना ठीक नहीं है। बल्कि ऐसी विपत्तियां मनुष्य के नकारात्मक विचार व कर्मों का संचित फल मात्र है। अच्छाई एवं बुराई का संतुलन बिगड़ जाता है तो वहां सर्वनाश अवश्य देखने को मिलेगा। परमहंस योगानंद जी के अनुसार केवल आध्यात्मिक चेतना एवं सभी जीवात्माओं में ईश्वर की उपस्थिति का बोध ही संसार को बचा सकता है।
दुनिया को बदलने की बजाय खुद के भीतर झांके और खुद में बदलाव लाएं। अपने अंदर ईश्वर की उपस्थिति और प्रेम की अनुभूति करेंगे तो स्वत: अन्य के प्रति सद्भाव जागृत होगा और समस्त दुख, संताप का अंत होगा। यही स्वयं से साक्षात्कार है। क्रियायोग के निरंतर अभ्यास से भौतिक शरीर के अंदर छिपे अज्ञात शक्ति से साक्षात्कार संभव है। यह बातें योगदा सत्संग सोसाइटी के कोषाध्यक्ष स्वामी शुद्धानंद ने जागरण संवाददाता नीलमणि से विशेष बातचीत में कहीं।
स्वामीजी आइआइटी चेन्नई से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग से बीटेक करने के उपरांत कई वर्षों तक शोध कार्य में जुड़े रहे। बाद में आध्यात्मिक चेतना से साक्षात्कार होने के बाद योगदा सत्संग आश्रम से जुड़ कर सन्यास ग्रहण कर दुनिया में योग-आध्यात्मक का अलख जगा रहे हैं। इनका केंद्र रांची है। वर्तमान में वैश्विक महामारी, तनाव, आपसी विद्वेष कैसे दूर हो इस पर विस्तार से वार्ता हुई। पेश है बातचीत के प्रमुख अंश।
अध्यात्म क्या है, यह मानव जीवन की किस प्रकार सुरक्षा कर सकता है?
स्वयं से साक्षात्कार ही अध्यात्म है। योग अध्यात्म शरीर, मन और आत्मा में परस्पर संतुलन लाता है। साधक को ईश्वरीय शक्ति का अनुभव प्राप्त होता है। इससे शांति फिर सद्भाव आता है। जीवन में कठिन से कठिन चुनौती को स्वीकार करने मे खुद को सक्षम पाते हैं। ईश्वर से हमारी चेतना जुड़ती है तो समस्त बाधा स्वत: दूर होने लगती हैं।
दुख का क्या कारण है, इससे कैसे निजात पाएं।
अज्ञानता समस्त दुखों का कारण है। अपना-पराया, लाभ-हानि के बंधन दुख देते हैं। योग-अध्यात्म इससे निजात दिलाता है। योग साधना ही वह माध्यम है, जिससे हम परमसत्ता से जुड़ सकते हैं।
क्या योग-अध्यात्म के माध्यम से वैश्विक महामारी कोविड 19 से बचाव संभव है?
नकारात्मकता से शरीर, मन और आत्मा तीनों दुर्बल हो जाती है। जबकि सकारात्मक विचार से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। प्राणायाम ध्यान (जीवन-ऊर्जा नियंत्रण तकनीक) द्वारा संतुलित जीवन शक्ति को बनाए रखा जाता है, तब शरीर की अपनी जीवन ऊर्जा बीमारी विकसित होने की अनुमति नहीं देती हैं। वैज्ञानिकों ने भी इसे प्रमाणित किया है। अमेरिका में एक शोधकर्ता ने कुछ लोगों पर प्रयोग किया। दुनिया भर के वैज्ञानिक भी रोग से बचाव के लिए सावधानी और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने पर ही जोर दे रहे हैं।
तनाव से लाखों लोगों की प्रतिवर्ष मृत्यु होती है, खुद को तनाव मुक्त कैसे करें।
ज्यादा स्वार्थ भाव अंतत: नकारात्मकता की ओर ढकेलता है। जब इच्छित वस्तु, सम्मान, कीर्ति नहीं मिलता तो तनाव को जन्म देता है। योग साधना के बल पर हम दुख-सुख में समभाव रह सकते हैं। गीता में भगवान कृष्ण भी अर्जुन को यही समझाया है। जो भी कार्य करें उसे ईश्वर को समर्पित कर दें। फल की चिंता न करें। हम ये सोचे कि ईश्वर ने हमें धरती पर ड्रामा करने के लिए भेजा है। कोई राजा तो कोई सेवक का ड्रामा कर रहा है। यह मात्र ड्रामा ही है। इसके परे और कुछ भी मत सोचिए।
ईश्वर की कृपा के बावजूद मनुष्य को दुख-पीड़ा क्यों भोगनी पड़ती है?
ईश्वर ऐसे भक्तों को अत्यधिक प्रेम करते हैं जो निष्ठा पूर्वक ध्यान करता है और प्रसन्नता पूर्वक सेवा करता है। चाहे उसे किसी भी असफलता का सामना क्यों न करना पड़े। चाहे उसे कोई सराहना मिले अथवा न मिले। अत : मनुष्य से जुडऩे की बजाय सीधे ईश्वर से जुड़ें। योगबल पर ऐसा संभव है। गुरुदेव ने कहा है कि ईश्वर उनके निकट नहीं आना चाहते जो विषाद ग्रस्त और नकारात्मक है। प्रार्थना द्वारा हम ईश्वर के साथ एक प्रेममय व्यक्तिगत संबंध बना लेते हैं और तब उनका उत्तर अचूक होता है।
परमहंस योगानंद ने क्रियायोग को पुन:स्थापित किया
क्रिया योग ऐसा विज्ञान है जिसके माध्यम से मनुष्य ईश्वर की अनुभूति कर सकता है। इसे ईश्वरीय वरदान माना गया है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को क्रियायोग का ज्ञान दिया। हाल के दिनों में योग की अतुलनीय प्राणायाम कहीं लुप्त हो गया था। परमहंस योगानंद ने इसे पुन: अवगत अवगत कराया। परमहंस को पश्चिमी दुनिया में योग के पिता के रूप में भी जाना जाता है। 1917 में परमहंस योगानंद ने रांची में योगदा सत्संग सोसाइटी की स्थापना की। 1920 में वे अमेरिका गए और पश्चिमी दुनिया को भारतीय योग के चमत्कारित अनुभव से परिचय कराया। उन्होंने आजीवन क्रिया योग का प्रचार किया। आज भारत सहित 144 देशों में क्रियायोग का अभ्यास किया जाता है।