Move to Jagran APP

शेरशाह की राह पर चल 'महान' बना अकबर

शनिवार की शाम हिंदी मैथिली की प्रसिद्ध लेखिका ऊषा किरण खांन ने अपनी नए उपन्यास के बारे में विस्तार से चर्चा की। मौका था होटल बीएनआर चाणक्या में दैनिक जागरण द्वारा आयोजित कलम कार्यक्रम का। उनसे बात की दूरदर्शन के पूर्व निदेशक प्रमोद कुमार झा ने।

By Edited By: Published: Sun, 18 Nov 2018 07:15 AM (IST)Updated: Sun, 18 Nov 2018 07:18 AM (IST)
शेरशाह की राह पर चल 'महान' बना अकबर
शेरशाह की राह पर चल 'महान' बना अकबर
जागरण संवाददाता, रांची शनिवार की शाम कुछ खास थी। शहर की जानी-मानी साहित्यिक हस्तियों के बीच ¨हदी-मैथिली की वरिष्ठ लेखिका उषाकिरण खान अपने नए उपन्यास अगन¨हडोला पर चर्चा कर रही थीं। बातचीत कर रहे थे रांची दूरदर्शन के पूर्व निदेशक प्रमोद कुमार झा। नई-नई जानकारियों के वर्क खुल रहे थे। महज पांच साल के शासन काल में शेरशाह सूरी ने क्या इतिहास रचा था? इस छोटी सी अवधि में उसने जो काम किए, जिसकी नींव रखी, उसी राह चलकर एक मुगल शासक अकबर 'महान' बन जाता है, लेकिन हम इस नायक को महानायक मानने से कतराते रहे। होटल चाणक्या बीएनआर में 'कलम' कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। आयोजन प्रभा खेतान फाउंडेशन, श्री सीमेंट, नवरस स्कूल ऑफ परफार्मिग आर्ट और अहसास की ओर से किया गया था। मीडिया पार्टनर दैनिक जागरण था। शेरशाह की तीन इच्छाएं जो रह गई अधूरी उषाकिरण खान ने चर्चा के दौरान बताया कि उसकी तीन इच्छाएं अधूरी रह गई। शेरशाह के बारे में हम यह सब जानते हैं कि उसने जीटी रोड बनवाई, सराय बनवाए, डाका चौकी स्थापित की। यह नहीं जानते कि उसने देश में पहली बार तीन गांव के बीच में स्कूल-मदरसे की स्थापना की। पंडित-मौलवियों को बकायदा वेतन की व्यवस्था की और बुढ़ापे में हर पढ़ने-लिखने वाले पंडित-मौलवी के लिए वजीफे की व्यवस्था। उसकी तीन अंतिम इच्छाएं जो पूरी नहीं हो सकीं-वह यह थीं कि-वह पूरे भारत में सड़कों का जाल, पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण के साथ-साथ देश के बीच में आड़ी-तिरछी सड़कें, लाहौर के मुगल के किले और शहर को ध्वस्त करना ताकि मुगल फिर दुबारा भारत की ओर आंख उठाकर न देख सकें और भारत से मक्का के बीच समुद्र में बेड़े का निर्माण, ताकि लोग पानी के जहाज से जाते समय बाजार भी करते हुए जा सकें। जमीन की नापी भी उसने टोडरमल के सहयोग से की, बाद में टोडरमल अकबर के नवरत्‍‌नों में शामिल हुए। अकबर ने शेरशाह के सकारात्मक कामों को आगे बढ़ाकर महान बना। हालांकि शेरशाह से वह नफरत करता था। पर, शेरशाह का चरित्र ऐसा था कि हुमायूं की मां भी उसके चरित्र की तारीफ की है। आदिवासियों के साथ बेहतर संबंध प्रश्नों के जवाब में उषाकिरण ने कहा कि शेरशाह का आदिवासियों के साथ बेहतर संबंध था। आदिवासियों के साथ ही नहीं बंजारों के साथ भी। जो लूटपाट करते थे, सबको काम से जोड़ दिया। सबको निर्माण में लगा दिया। रोहतासगढ़ के आस-पास आदिवासियों की बड़ी आबादी थी। उसके साथ बेहतर संबंध थे। यही नहीं, पूणिया में एक शेरशाहबादी मुसलमान हैं। वे आज भी उसकी प्रतीक्षा करते हैं कि वह आएंगे तो दिल्ली ले जाएंगे। ये किसान हैं और बहुत गरीब। शेरशाह ने इनसे वादा किया था और ये मुसलमान उस वादे की प्रतीक्षा आज भी कर रहे हैं। वह सैनिकों की बहाली खुद करता था। वह आदमी की पिंडली देखकर बता सकता था कि वह किस काम के लायक है और उसी तरह वह घोड़ों की पहचान करता था। उसे इस बात की जानकारी रहती थी कि उसके पास कितने सैनिक हैं, कितने घोड़े हैं। यह सब उसकी जुबान पर रहता था। चूंकि वह एक छोटे से आदमी से देश का शहंशाह बना था और वह भी पांच साल के लिए। अदीबों का करता था सम्मान शेरशाह पढ़ाकू था। वह अदीबों का सम्मान करता था। पहली बार उसने पंडित और मौलवी को वेतन देना शुरू किया। और जो बूढ़े हो चुके थे उनके लिए वजीफे की। उस समय के महान कवि मलिक मोहम्मद जायसी से उसका खासा लगाव था। जायसी शेरशाह को शहंशाह नहीं समझते थे। जब भी शेरशाह उनके पास जाता, वह नीचे जमीन पर बैठता था और जायसी अपने तख्त पर। स्त्रियों की करता था इज्जत उषाकिरण ने बताया कि वह स्त्रियों की इज्जत करता था। कहा कि जब हुमायूं अपना हरम छोड़कर भाग गया तो उसमें उसकी स्त्रियां, मां और बहुत सी नौकरानियां थीं। लेकिन हुमायूं के इस हरम को उसने चार महीने तक रोहतासगढ़ में रखा और युद्ध समाप्ति के बाद टोडरमल के साथ हरम को लाहौर के लिए रवाना किया। उसने बहुत शादियां की, लेकिन उसका उद्देश्य संपत्ति अर्जित करना था। नालंदा में एक मकबरा है उसकी एक पत्‍‌नी का। वह उससे उम्र में 12 साल बड़ी थीं। शादी केवल संपत्ति के लिए था। उस पत्‍‌नी से उसे खूब सोने और अन्य चीजें मिलीं। उसे इस बात का मलाल था कि शहंशाह पत्‍‌नी वाला रिश्ता नहीं रखते थे। इस तरह का उसका चरित्र था। देश और लोकहित के काम शेरशाह के कई पक्षों पर ऐतिहासिक साक्ष्यों के साथ उषाकिरण बात कर रही थीं। बता रही थीं कि उसने सबसे पहले ¨हदी में फरमान निकाला। दिल्ली के तख्त पर सिर्फ पांच साल काबिज होने वाले इस सुलतान ने जितने प्रशासनिक एवं लोकहित के कार्य किये कोई दूसरा सालों साल हुकूमत करके भी नहीं कर सका। उसने अमन चैन के लिए ही बंगाल से पंजाब तक पक्की सड़क बनवाई। उसने सड़कों के किनारे जहां सराय बनाने का हुक्म दिया था वहीं दो कोस पर डाक चौकी की स्थापना की। सभी डाक चौकियों पर दो घोड़े घुड़सवार थे। शहंशाह बंगाल में खाने बैठता तो वहां जो नगाड़ा बजता तो तुरत दूसरे पड़ाव पर मालूम हो जाता। देश में एकसा तौल हो इसके लिए मापतौल का एक महकमा ही शुरू कर दिया। छटांक से लेकर पंसेरी तक का बाट एक ही जगह ढाला जाता और बनियों, किसानों को खरीदना पड़ता। ये काम कम नहीं थे। अब और उपन्यास नहीं.. बातें केवल अगन पर नहीं रुकीं। भामती से लेकर रतनारे नयन, कहानियां, ऐतिहासिक उपन्यासों के लेखन पर भी हुई। कहा कि ऐतिहासिक उपन्यास रुचते नहीं। इसमें रुढ़ हो जाना पड़ता है। उपन्यास का चरित्र बांध देता है। यह भी बताया कि पढ़ती सबको हूं, लेकिन प्रभावित हुई धर्मवीर भारती, आशापूर्णा देवी और कृष्णा सोबती से। रतनारे नयन की चर्चा की। गई झूलन टूट पर बात की। बातों का क्रम चलता रहा। लेकिन मन नहीं भरा। लोगों ने सवाल भी पूछे। उन्होंने बताया कि उनका अंतिम उपन्यास मनमोहना रे धारावाहिक छप रहा है और इसके बाद अब उपन्यास नहीं लिखना है। स्वागत-धन्यवाद स्वागत नवरस की अन्विता प्रधान ने किया और धन्यवाद ज्ञापन संगिनी क्लब की अध्यक्ष अंजू गुप्ता ने। उषाकिरण खान को सम्मानित किया डॉ विनोद कुमार ने और प्रमोद कुमार झा को अंजू गुप्ता ने। इनकी रही उपस्थिति दैनिक जागरण के वरीय महाप्रबंधक मनोज गुप्ता, अंजू गुप्ता, विद्यानाथ झा विदित, डॉ माया वर्मा, डॉ विनोद कुमार, अनिता रश्मि, सारिका भूषण, पंकज मित्र, डॉ हरेंद्र प्रसाद सिन्हा, वीणा श्रीवास्तव, राजेंद्र तिवारी, असीत कुमार, कलावंती सिंह, राजश्री जयंती, आशुतोष प्रसाद, ¨रकू बनर्जी, माया वर्मा, रीता गुप्ता, सत्याकीर्ति शर्मा, शालिनी नायक, गोविंद कुमार झार, अरविंद कुमार झा, प्रीता झा, जंग बहादुर पांडेय, रेणु मिश्रा, वासुदेव, रामकुमार तिवारी, प्रशांत करण, डा. भावना शुक्ल आदि। ----------------------- कौन हैं उषाकिरण खान उषाकिरण खान ¨हदी एवं मैथिली की प्रसिद्ध लेखिका हैं। हसीना मंजिल, कासवन के साथ कई कहानियां और उपन्यासों का प्रकाशन। साहित्य अकादमी पुरस्कार-भामती-मैथिली (उपन्यास), 2010 (भारत सरकार दिल्ली), कुसुमाजलि पुरस्कार- सिरजनहार (उपन्यास), 2012 (कुसुमाजलि फाउंडेशन दिल्ली), पं. विद्यानिवास मिश्र पुरस्कार-सिरजनहार (उपन्यास), 2014- विद्याश्रीनिवास, वाराणसी (उत्तर प्रदेश), ब्रजकिशोर प्रसाद पुरस्कार, 2015। सम्मान भ्रमण : विश्व हिन्दी सम्मेलन सूरीनाम- 2004- भारत सरकार की प्रतिनिधि, विश्व ¨हदी सम्मेलन-न्यूयॉर्क-2007-बिहार सरकार की प्रतिनिधि, विश्व भोजपुरी सम्मेलन-(सेतुन्यास)- मॉरीशस-2000-बिहार की प्रतिनधि।

Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.