World Nature Conservation Day 2020: जल, जंगल-जमीन के संरक्षण को 16 वर्षों से संघर्ष कर रहे आशीष शीतल
World Nature Conservation Day 2020. सारंडा के जंगल को बचाने के लिए आशीष ने लंबी लड़ाई लड़ी है। 2004 से नदियों के संरक्षण के लिए काम कर रहे हैं।
रांची, [मधुरेश नारायण]। World Nature Conservation Day 2020 शहर के शोर और भाग-दौड़ में हम प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं। यही कारण है कि मनुष्यों में उच्च रक्तचाप, मधुमेह, दिल की बीमारी, थॉयराइड आदि तमाम तरह की बीमारियां घर बना रही हैं। मगर ऐसे कई लोग हैं, जो आज भी प्रकृति के महत्व को समझते हैं। उन्होंने जल, जंगल और जमीन के संरक्षण में अपना जीवन अर्पित कर दिया है। ऐसे ही एक व्यक्ति हैं आशीष शीतल। नामकुम में रहने वाले आशीष पिछले दस सालों से स्वर्ण रेखा नदी को बचाने और जंगल के संरक्षण के लिए काम कर रहे हैं। युगांतर भारती संस्थान के साथ जुड़कर वे झारखंड की प्राकृतिक संपदा, जंगल, खनिज और आदिवासी समाज के लोगों की मदद के लिए लगातार काम कर रहे हैं।
नदियों को पूजते हुए कर दिया गंदा
आशीष बताते हैं कि झारखंड प्राकृतिक रूप से पूर्ण समर्थ राज्य है। सांस्कृतिक रूप में आदिवासी समाज प्रकृति की पूजा करने के साथ उसके संरक्षण के लिए भी कार्य करते हैं। मगर शहरीकरण हमारी बढ़ती जरूरतों ने वन पर ऐसा दबाव बनाया कि फूड चेन के कई पेड़-पौधे और जीव गायब हो गए। हम अपने घर में इतना व्यस्त थे कि हमें पता ही नहीं चला कि हमारे आंगन की गौरैया गायब हो गई।
नदियों की पूजा करते-करते हमने उन्हें नाला बना दिया। ऐसे में किसी को तो आगे आकर लोगों को प्रकृति के लिए खड़ा होना था। युगांतर भारती प्रकृति संरक्षण के साथ संवर्धन पर भी काम कर रही है। इसके लिए सरकार और कोर्ट की मदद लेनी पड़ती है। हमने कोर्ट में कई पीआइएल डालकर अपने जंगल को संरक्षित किया।
सारंडा का जंगल बचाना थी बड़ी चुनौती
पश्चिमी सिंहभूम स्थित सारंडा का जंगल खनिज संपदा से भरा हुआ है। तत्कालीन मुख्यमंत्री मधु कोड़ा द्वारा पूरे जंगल को ओपन माइनिंग के लिए नीलाम कर दिया गया था। इससे जंगल के बड़े भाग के इको सिस्टम को नुकसान हुआ। आशीष शीतल ने युगांतर भारती संस्थान के साथ कोर्ट में कई पीआइएल दायर किया। इसके बाद लंबी कानूनी लड़ाई के बाद इलाके में ओपन माइनिंग पर कोर्ट से रोक लग गई।
इस दौरान खनन में ठेकेदार का काम करने वाले कुछ लोगों ने परेशान किया। मगर सरकारी मदद से इस परेशानी का भी हल निकल गया। हम माइनिंग के खिलाफ नहीं हैं। खनिज का इस्तेमाल देश के विकास में होना चाहिए। मगर इसके लिए कम से कम प्रकृति को नुकसान पहुंचे और आदिवासी समाज का भी भला हो यही उद्देश्य है। सरकार और कंपनियां ओपन माइनिंग की जगह अगर पीट माइनिंग करें तो इससे जंगल का एक बड़ा क्षेत्र उजडऩे से बच जायेगा।
2004 में शुरू किया नदियों के संरक्षण का काम
आशीष शीतल ने युगांतर भारती के साथ वर्ष 2004 में नदियों को संरक्षित करने का काम शुरू किया। वो बताते हैं कि पहले दो-तीन साल सबसे ज्यादा कठिन रहे। संघर्ष ऐसी कंपनियों से भी जो करोड़ों का कारोबार करती थीं। छानबीन में पता चला कि बीसीसीएल और बोकारो स्टील प्लांट की स्थापना के डिजाइन में ट्रीटमेंट प्लांट का नक्शा था। मगर वो 2004 तक नहीं बना। इससे कंपनी भी हिल गई।
कोर्ट और सरकार की मदद से हमने कंपनी के साथ बैठकर मामले को सुलझाया। वर्तमान में वहां 60 करोड़ की परियोजना का ट्रीटमेंट प्लांट बनाया जा रहा है। इसमें से एक ने लॉकडाउन में ही काम भी करना शुरू कर दिया है। ऐसी ही स्थिति सीसीएल के कोल वाशरी प्लांट के साथ भी थी। हमने सीसीएल प्रबंधन के साथ बात की और कंपनी ट्रीटमेंट प्लांट बनाने को तैयार हो गई। अब कंपनी वाशरी से निकलने वाले कोल एस का औद्योगिक इस्तेमाल की योजना भी बना रही है।
आदिवासियों को सबल करना है महत्वपूर्ण
आशीष शीतल बताते हैं कि वन में रहने वाले आदिवासी अपने प्राकृतिक घर में काफी खुश हैं। मगर उनकी आर्थिक स्थिति काफी खराब है। कई गांव आज भी ऐसे हैं जहां कोई पढ़ा लिखा नहीं है। ऐसे में हम भारत के विकास के बारे में कैसे सोच सकते हैं। इसे देखते हुए हमारा संस्थान लगातार आदिवासियों को उनके घर में रोजगार देने और अपनी स्थिति में सुधार करने के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम चला रहा है।
सरकार द्वारा जयपाल सिंह मुंडा के गांव सलकुराहातू को गोद लेकर विकास की बात कही गई। मगर वहां कुछ खास अभी तक नहीं हुआ। युगांतर भारती ने यहां लोगों के लिए कई तरह की सुविधा का विकास कर रहा है। लोगों को पढ़ाई लिखाई से जोडऩे के साथ हमने यहां पुस्तकालय और कई जरूरी सेवा का विकास किया है।
युगांतर भारती द्वारा चलायी जा रही मुहिम
1. दामोदर बचाओ आंदोलन
2. स्वर्णरेखा प्रदूषण मुक्ति अभियान
3. जल जागरूकता अभियान
4. सोनांचल विकास अभियान
5. सारंडा बचाओ अभियान
6. रोजगारोन्मुखी प्रशिक्षण अभियान
7. जल-वायु-ध्वनि प्रदूषण अनुश्रवण
8. जल गुणवत्ता परीक्षण प्रयोगशाला