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World Mental Health Day: कोरोना काल में महिलाओं में बढ़ी नशा करने की प्रवृत्ति, जानें इसके लक्षण और उपाय

World Mental Health Day Jharkhand News Coronavirus Period कोरोना काल में घर में रहना और सामाज से दूर होना इसका मुख्‍य कारण है। सीआइपी के निदेशक डा. बासुदेव दास बताते हैं कि ओपीडी में हर दिन करीब 350 मरीज आते हैं।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Sun, 10 Oct 2021 11:01 AM (IST)Updated: Sun, 10 Oct 2021 11:14 AM (IST)
World Mental Health Day: कोरोना काल में महिलाओं में बढ़ी नशा करने की प्रवृत्ति, जानें इसके लक्षण और उपाय
World Mental Health Day, Jharkhand News, Coronavirus Period कोरोना काल में घर में रहना इसका मुख्‍य कारण है।

रांची, जासं। राजधानी रांची के कांके में स्थित सरकारी मेंटल हॉस्पिटल रिनपास में हर दिन 500 से अधिक मानसिक रोगी पहुंचते हैं। इनमें से 40 प्रतिशत मरीज युवा वर्ग से हैं। इन सभी में से 30 प्रतिशत महिलाएं ऐसी हैं, जो नशे से मुक्ति चाहती हैं। इन मरीजों में जीने की इच्छा नहीं दिखी। रिनपास के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डा. सिद्धार्थ सिन्हा बताते हैं कि कोरोना काल में महिलाओं में नशा करने की लत काफी बढ़ी है। इसका मुख्य कारण कोरोना काल में घर में रहना और सामाज से दूर होना है। साथ ही अकेलेपन से तनाव को दूर करने के लिए तरह -तरह के नशा का प्रयोग करना है।

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उन्होंने बताया कि कोरोना से ठीक हो जाने के बाद भी दोबारा होने के डर से भी लोग मानसिक रोग के शिकार हुए। वे बताते हैं कि दोबारा कोई बीमारी ना हो जाए और जब बीमारी की वजह से काफी जान जा रही हो तो लोग परेशान हो जाते हैं और यही डर मन में घर कर लेती है। इस कारण मानसिक तनाव बढ़ता है और बोलने व समझने की शक्ति कम होने लगती है। ऐसे लोगों को सबसे अधिक काउंसलिंग की जरूरत होती है। इसका लाभ भी दिख रहा है।

देश का पहला मेंटल हॉस्पिटल केंद्रीय मनोचिकित्सा संस्थान (सीआइपी) 104 वर्षों से लोगों के मानसिक तनाव की समस्या सुलझा रहा है। यहां अभी तक करीब चार लाख से अधिक अवसाद से ग्रसित मरीजों का इलाज हुआ और लाखों मरीज भर्ती भी हुए। सबसे अधिक 20 से 40 वर्ष के लोग अवसाद से ग्रसित हैं, जिनका इलाज हुआ। मनोचिकित्सक बताते हैं कि सबसे अधिक तनावग्रस्त युवा वर्ग है। इनमें आत्महत्या करने जैसी प्रवृति जाग रही है।

ऐसे अवसाद से ग्रसित लोगों को सिर्फ ओपीडी में ही काउंसलिंग कर उनके टूटे हुए हौसलों को बढ़ाया जा सकता है। सीआइपी के निदेशक डा. बासुदेव दास बताते हैं कि ओपीडी में हर दिन करीब 350 मरीज आते हैं। इसमें से 90 प्रतिशत मरीजों को ओपीडी से ही इलाज कर घर भेज दिया जाता है। जबकि करीब पांच प्रतिशत मरीज को ही भर्ती कराने की जरूरत पड़ती है।

कोरोना काल में 57 हजार मरीज पहुंचे इलाज को

कोरोना काल में सबसे अधिक 57 हजार से भी अधिक मानसिक तनाव से ग्रसित मरीज इलाज करवाने सीआइपी पहुंचे। इनमें कई ऐसे मरीज थे, जिन्हें पोस्ट काेविड को लेकर समस्या थी। डा. बासुदेव दास बताते हैं कि कोविड के दौर में मानसिक रोगियों की संख्या बढ़ी है। इसका सबसे बड़ा कारण सामाजिक है। लोग समाज से लगभग कट गए। सिर्फ सोशल मीडिया के सहारे लोग जी रहे थे। इसने लोगों में चिड़चिड़ापन पैदा किया और इससे कई समस्याएं सामने आने लगी। शुरुआत में लेाग यह समझ नहीं पा रहे थे कि इसकी वजह क्या है, लेकिन ऑनलाइन काउंसलिंग में भी इस तरह के ही केस सिर्फ सामने आए।

मानसिक रोग का बाइपोलर डिसऑर्डर सबसे बड़ा कारण

मानसिक रोग का सबसे अधिक कारण बाइपोलर डिसऑर्डर है। डा. बासुदेव दास बताते हैं कि इस बाइपोलर डिसऑर्डर में अवासद के साथ मेनिया जैसी समस्या एक साथ दिखती है। इस तरह के मरीजों की संख्या सबसे अधिक है। जबकि फिजोफेनिया के रोगियों की भी संख्या अच्छी-खासी है। इसका इलाज ओपीडी में ही हो जाता है। इस तरह की समस्या होने का मुख्य कारण सामाजिक और जेनेटिक भी हो सकता है। इसे लेकर आज अच्छे इलाज मौजूद हैं। लोगों को मनोचिकित्सक से मिलने के लिए अधिक सोचने व शर्माने की जरूरत नहीं है। लोगों को नए नजरिये से मनोचिकित्सा पद्धति के बारे में सोचना होगा।


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