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World Disability Day 2020: मुख्‍यधारा से आज भी नहीं जुड़ पाए हैं 80% दिव्‍यांग, जानें कैसे मिलता है इन्‍हें लाभ

World Disability Day 2020 दिव्‍यांग जनों के कल्याण के लिए कई नियम होने के बावजूद दिव्‍यांग जनों की 80 प्रतिशत जनसंख्या समाज की मुख्यधारा से नहीं जुड़ पाई है। उनके लिए बनाए गए कानूनों और नियमों का क्रियान्वयन सही और पूर्ण रूप से नहीं हो पा रहा है।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Thu, 03 Dec 2020 09:52 AM (IST)Updated: Thu, 03 Dec 2020 10:36 AM (IST)
World Disability Day 2020: मुख्‍यधारा से आज भी नहीं जुड़ पाए हैं 80% दिव्‍यांग, जानें कैसे मिलता है इन्‍हें लाभ
वर्ष 1992 से इसे विश्‍व स्‍तर पर मनाया जा रहा है।

रांची, जासं। हर वर्ष 3 दिसंबर को अंतरराष्‍ट्रीय दिव्‍यांग दिवस वैश्विक स्तर पर मनाया जाता है। यह दिवस दिव्‍यांग जनों के प्रति समाज के हर वर्ग में जागरूकता, सामाजिक स्वीकार्यता बढ़ाने के साथ-साथ उनकी उपलब्धियों और योगदान को समाज के दूसरे वर्ग तक फैलाने के लिए मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 1992 में एक घोषणा पत्र के जरिये विश्व स्तर पर इसे मनाने का निर्णय लिया था।

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इस वर्ष संयुक्त राष्ट्र संघ ने कोविड-19 के बाद दिव्यांगों के समावेशी सुगम एवं सतत विकास विषय के रूप में यह दिवस मनाने का फैसला लिया है। दिव्यांग अधिकार मंच के संयोजक अजीत कुमार ने बताया कि वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश की कुल आबादी का 2.11 प्रतिशत दिव्‍यांग जनों की है। विश्व स्वास्थ संगठन व अनुमानित आंकड़े बताते हैं कि विकासशील देशों में जनसंख्या का लगभग 15 प्रतिशत हिस्सा प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से दिव्‍यांग से ग्रसित और प्रभावित है।

दिव्‍यांग जनों के कल्याण के लिए कई सारे कानून व नियम होने के बावजूद झारखंड राज्य में दिव्‍यांग जनों की 80 प्रतिशत जनसंख्या आज भी समाज की मुख्यधारा से नहीं जुड़ पाई है। उनके लिए बनाए गए कानून और नियमों का क्रियान्वयन सही और पूर्ण रूप से नहीं हो पा रहा है। दिव्‍यांग जनों से संबंध रखने वाले विभाग-कार्यालय, हितधारक इनके मुद्दों को गंभीरता और वरीयता से नहीं ले रहे हैं।

अजीत कुमार ने कहा कि भारत में पहली बार दिव्यांग जनों के लिए समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण व पूर्ण भागीदारी अधिनियम 1995 लाया गया था। इसमें पूर्ण रूप से दृष्टिहीनता, अल्प दृष्टि, चलंत निशक्तता, श्रवन हीनता, मानसिक रुग्णता, मानसिक मंदता और  कुष्ठ रोग से उपचारित व्यक्तियों को रखा गया था। हालांकि ऑटिज्म, प्रमस्तिष्क पक्षाघात, मानसिक मंदता और बहुविकलांगताओं इत्यादि से ग्रस्त व्यक्तियों के कल्याणार्थ राष्ट्रीय न्यास अधिनियम 1999 में लाया गया था।

इसमें राष्ट्रीय न्यास के गठन, स्थानीय स्तर पर समितियां, न्यास की जवावबदेही और निगरानी का प्रावधान करता है। इसमें दिव्‍यांग व्यक्तियों के चार वर्गों के लिए कानूनी अभिभावक और यथासंभव समावेशी परिवेश निर्माण से संबंधित है। अजीत कुमार बताते हैं कि सरकारी तंत्र की निष्क्रियता व धीमी गति से क्रियान्वयन के कारण दिव्‍यांग जन आज भी समाज की मुख्यधारा से जुड़ने में बहुत ही पीछे रह जा रहे हैं।

उन्होंने कहा कि झारखंड राज्य में दिव्‍यांग जनों के लिए अलग विभाग या निदेशालय की स्थापना, विकलांगों के लिए आरक्षण के हिसाब से खाली पदों पर विशेष अभियान के तहत बैकलॉग नियुक्ति करना, रोजगार और स्वरोजगार के लिए विशेष योजनाओं को चलाना, स्कूलों और कॉलेजों में सुगम एवं निशुल्क शिक्षा प्रदान करना, सभी विद्यालयों में विशेष शिक्षक की नियुक्ति, राज्य दिव्‍यांग वित्त एवं विकास निगम की स्थापना, विकलांगता आयुक्त के कार्यालय का अलग से वेबसाइट एवं शिकायत निवारण तंत्र को और सक्रिय करना आदि उपायों से झारखंड राज्य के दिव्यांग जनों को अन्य राज्यों की तरह तीव्र गति से सशक्त किया जा सकता है।


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