Move to Jagran APP

World Blood Donor Day 2021: साल में चार बार कर सकते हैं रक्तदान, 24 बार प्लेटलेट कर सकते हैं दान

रक्तदान को जीवनदान भी कहा जाता हैै। लोगों को रक्त की जरूरत पड़ने पर दान में दिए गए रक्त ही उपयोग में लाया जाता है। लेकिन इस कोरोना काल में रक्तदान पर ग्रहण पड़ गया। कुछ डोनर लगातार रक्तदान करते रहें।

By Vikram GiriEdited By: Published: Mon, 14 Jun 2021 02:55 PM (IST)Updated: Mon, 14 Jun 2021 02:55 PM (IST)
World Blood Donor Day 2021: साल में चार बार कर सकते हैं रक्तदान, 24 बार प्लेटलेट कर सकते हैं दान
World Blood Donor Day 2021: साल में चार बार कर सकते हैं रक्तदान। जागरण

रांची, जासं । रक्तदान को जीवनदान भी कहा जाता हैै। लोगों को रक्त की जरूरत पड़ने पर दान में दिए गए रक्त ही उपयोग में लाया जाता है। लेकिन इस कोरोना काल में रक्तदान पर ग्रहण पड़ गया। कुछ डोनर लगातार रक्तदान करते रहें, लेकिन अधिकतर लोगों में कोरोना को लेकर व्यापत डर उन्हें इस नेक कार्य से दूर कर दिया। इस बीच ऐसा ही एक रक्तदान को मोटिवेट करने वाले ग्रुप ने जरूरत पड़ने वालों को खून के कंपोनेट देने का फैसला किया और इसमें इन सभी डोनरों में से अधिकतर ने प्लेटलेट देना शुरू किया।

loksabha election banner

बताया जाता है कि एक डोनर साल में 24 बार प्लेटलेट सिंगल डोनर प्लेटलेट-एसडीएफ दे सकता है, लेकिन रक्त की बात की जाए तो एक डोनर साल में चार बार ही रक्तदान कर सकता है। जबकि पूरे रक्त की आज अधिकतर मरीजों को जरूरत नहीं पड़ती है, उन्हें रक्त के कंपोनेंट दिए जाते हैं, इसी कंपोनेट में प्लेटलेट काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। लाईफ सेवर नाम से चला रहे इस संस्थान में करीब 40 डोनर हैं जो हमेशा जरूरतमंदों को मदद करने के लिए आगे रहते हैं। इस सभी डोनरों में दस लोग ऐसे हैं जो प्लेटलेट दान करते है, जो अधिकतर अस्पतालों में सबसे अधिक मरीजों के लिए मांग करते हैं।

कोरोना काल में थैलेसिमिया मरीजों के लिए भगवान साबित हुए डोनर

कोरोना काल में थैलेसिमिया मरीजों के लिए भगवना सबित हुए होनर। इन मरीजों को खून की हमेशा ही जरूरत होती है, ऐसे में रक्तदान के प्रति प्रेम दिखाने वालों ने लगातार सदर अस्पताल में ब्लड डोनेट करते गए। रक्तदाताओं ने बताया कि सदर अस्पताल में ही डे केयर हैं, जहां करीब 500 थैलेसिमिया से ग्रसित बच्चों का इलाज होता है। यहीं रक्तदान करने से इन्हें इसका लाभ मिला और ऐसे बच्चों को समय पर रक्त चढ़ाया जा सका।

ये डोनर कर रहे हैं लोगों का भला:

इस नेक कार्य के लिए खुद जुड़ते गए लोग: अतूल गेरा

करीब 90 बार रक्तदान कर चुके अतूल गेरा बताते हैं कि रक्तदान कर उन्हें सुकून मिलता है। सामान्य दिनों में करीब 400 यूनिट रक्त की जरूरत पड़ती है,जिसे पूरा करने में भी वे सभी कम पड़ जाते हैं। लोगों को रक्तदान से जोड़ने के लिए उन्होंने संस्था बनाकर हर जिले से जोड़ने का काम किया, जिससे उन्हें कई ऐसे वोलेंटियर मिलें जो स्वेच्छा से रक्तदान करने आगे आए। लेकिन यह देखा गया कि खून जो दान किया जाता है उसका पूरा इस्तमाल नहीं होता और प्लेटलेट निकालने के बाद अधिकतर जगहों पर बाकी खून इस्तमाल नहीं होते थे। जिसके बाद वे प्लेटलेट देने का संकल्प लिए और इसे अधिक संख्या में दिया भी जाने लगा और अधिक मरीजों को लाभ भी मिल रहा है। इस नेक कार्य के लिए किसी भी परिजन से कोई शुल्क या रक्त एक्सचेंज करने की जरूरत नहीं पड़ती है।

कोरोना काल में जागरूक करना कठिन चुनौती थी: मोहित चोपड़ा

रक्तदान से बड़ा दान कुछ नहीं होता। रक्त, प्लाजमा और प्लेटलेट दान करने वाले मोहित चोपड़ा बताते हैं कि उन्होंने अभी तक करीब 62 बार दान किया है। लेकिन उन्हें किसी तरह की कोई समस्या आज तक नहीं हुई। बल्कि वे हर दिन एक नई ताजगी महसुस करते हैं और नई उर्जा के साथ काम करते हैं। उन्होंने बताया कि लोगों को कोरोना काल में जागरूक करना सबसे कठिन कार्य साबित हुआ। लोगों में कोरोना संक्रमण को लेकर इस कदर भय व्याप्त था कि वे इस नेक कार्य के लिए भी घरों से नहीं निकल रहे थे। स्थिति यह थी कि जो भी रक्तदान करवाने वाले समूह थे वे पूरी तरह से ठप हो चुके थे। फिर भी खुद वोलेंटियर के रूप में कई सामने आए और लोगों की मदद की।

कोरोना काल में अस्पतालों में खून की डिमांड भी कम रही: विशाल साह

कोरोना काल में अस्पतालों में सामान्य मरीजों की संख्या कम रही, जिस कारण भी खून की उतनी डिमांड नहीं हुई। लेकिन थैलेसिमिया मरीजों के लिए डिमांड बढ़ती गई। करीब 67 बार रक्तदान करने वाले विशाल साह बताते हैं कि अस्पतालों में हमेशा ही खून की कमी देखी जाती है। लेकिन कोविड के दौरान अधिकतर मरीज कोविड के ही अस्पतालों में भर्ती थे, जिस कारण भी रक्त की उतनी डिमांड नहीं हो सकी, लेकिन कई अस्पतालों में प्लेटलेट की कमी थी, जिसे दूर करने के लिए वे हमेशा प्लेटलेट दान के लिए लोगों को जगारूक भी करते रहें। प्लेटलेट दान में करीब तीन घंटे का समय लगता है, जिसमें ब्लड सेपरेटर मशीन शरीर से ही प्लेटलेट अलग कर निकालता है और इससे आरबीसी का भी नुकसान नहीं होता है।

निजी अस्पताल अपने दायित्व को पूरा नहीं करते: रजत विमल

करीब 44 बार रक्तदान कर चुके रजत विमल बताते हैं कि जिस तरह से रक्त की कमी ब्लड बैंकों में दिख रही है उसे दूर करने के लिए सरकार की ओर से कई कड़े दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। लेकिन अस्पताल अपने दायित्व को पूरा नहीं करते और सारी जिम्मेवारी मरीज के परिजनों पर रक्त लाने को दे देते हैं। हर अस्पताल को रक्त जमा करने के लिए कैंप करना है, लेकिन वे कभी करते ही नहीं है। कुछ सरकारी अस्पताल में रिम्स की ओर से कभी कैंप लगाने का प्रयास भी किया जाता है लेकिन निजी अस्पतालों की ओर से कोई पहल दिखती ही नहीं। सिर्फ रक्तदान करने वाले समूह खुद से शिविर का आयोजन कर इन ब्लड बैंको को रक्त मुहैया कराते हैं।

कोरोना काल में 300 लोगों से करवाया रक्तदान: डा चंद्रभूषण

रिम्स के जूनियर डाॅक्टर चंद्रभूषण ने कोरोना काल में दस अप्रैल को निगम के साथ मिलकर सबसे बड़ा कैंप लगाया था और उसमें 300 से अधिक लोगों से रक्तदान करवाया। वे बताते हैं कि अभी तक करीब 1500 लोगों से पहली बार रक्तदान भी करवाया गया है। पहले रक्तदान के बाद अधिकतर लोग अब रक्तदान के लिए हमेशा आगे रहते हैं। रिम्स में भी जरूरतमंदों को ब्लड बैंक से डोनर बन मदद भी कर रहे हैं। उनका मानना है कि रक्तदान करने वालों को भी इससे कई फायदें होते हैं और उन्हें कोई गंभीर बीमारी भी नहीं होती है। वे खुद 26 बार डोनेट कर चुके हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.