छंटनी के खिलाफ तीन माह के भीतर ही श्रम न्यायालय जा सकेंगे कर्मी
सदन ने मगही, भोजपुरी मैथिली व अंगिका भाषा को द्वितीय राजभाषा का दर्जा देने से संबंधित बिहार राजभाषा (झारखंड संशोधन) विधेयक, 2018 भी पारित कर दिया।
रांची, राज्य ब्यूरो। छंटनी या हटाए जाने पर कोई कर्मी अब तीन माह के भीतर ही संबंधित श्रम न्यायालय या अभिकरणों में विवाद उठा सकेंगे। पहले यह समय सीमा तीन वर्ष थी। कामगारों द्वारा महीनों तथा कभी-कभी वर्षों बाद भी श्रम न्यायालयों में मामला उठाए जाते थे जिससे लंबी अवधि तक मामलों का निपटारा नहीं हो पाता था। इससे औद्योगिक प्रतिष्ठान प्रभावित होते थे। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के तहत राज्य सरकार ने इससे निजात पाने के लिए इस समय सीमा को कम करते हुए विधेयक लाया है। शुक्रवार को सदन में झामुमो के हंगामे और हो-हल्ला के बीच ही यह विधेयक पारित हो गया।
इसी के साथ कुल नौ विधेयक बिना चर्चा के पास हो गए, जिनमें तीन श्रम सुधारों से जुड़े हैं। एक संशोधन विधेयक में यह भी प्रावधान किया गया है कि 50 ठेका कर्मी वाले प्रतिष्ठान ही अब श्रम कानून के दायरे में आएंगे। पहले ठेका कर्मियों की सीमा 20 या इससे अधिक निर्धारित थी। कांग्रेस विधायक दल के नेता आलमगीर आलम तथा झाविमो विधायक दल के नेता प्रदीप यादव ने सभी विधेयकों को प्रवर समिति को सौंपने का प्रस्ताव लाया था जो अस्वीकार हो गया।
सदन ने मगही, भोजपुरी मैथिली व अंगिका भाषा को द्वितीय राजभाषा का दर्जा देने से संबंधित बिहार राजभाषा (झारखंड संशोधन) विधेयक, 2018 भी पारित कर दिया। इससे पहले कुल बारह भाषाओं को यह दर्जा प्राप्त था। कैपिटल विवि की होगी स्थापना : निजी क्षेत्र में एक और विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए कैपिटल विश्वविद्यालय विधेयक 2018 भी पारित हो गया। इस विवि में कृषि व पशु चिकित्सा से संबंधित पढ़ाई होगी।
निजी विवि नहीं दे सकेंगे कॉलेजों को सम्बद्धता : निजी
विश्वविद्यालय दूसरे निजी कॉलेजों को सम्बद्धता नहीं देंगे। इसके लिए दो विश्वविद्यालयों के संशोधन विधेयक लाए गए। इनमें उषा मार्टिन विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक तथा साईनाथ विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, 2018 शामिल हैं। इससे पहले पारित विधेयकों में इनके द्वारा दूसरे कॉलेजों को सम्बद्धता देने के प्रावधान किए गए थे।
ये विधेयक भी हुए पास
’ झारखंड जल, गैस और ड्रेनेज पाइप लाइन (भूमि में उपयोगकर्ता के अधिकारों का अर्जन) विधेयक, 2018
’ झारखंड अधिवक्ता लिपिक कल्याण निधि विधेयक, 2018
श्रम सुधार को लेकर पारित किए गए विधेयक और उनके प्रावधान
विधेयक : औद्योगिक विवाद (झारखंड संशोधन) विधेयक, 2018
प्रावधान : कर्मियों को हटाने या छंटनी के मामले में कर्मी अब तीन माह के भीतर ही श्रम न्यायालय या अभिकरण के समक्ष विवाद उठा सकेंगे। पहले यह अवधि तीन वर्ष थी।
विधेयक : ठेका मजदूर (विनियमन एवं उन्मूलन) झारखंड संशोधन विधेयक, 2008
प्रावधान : जिन प्रतिष्ठानों में 50 या इससे अधिक ठेका मजदूर नियोजित हैं या पूर्ववर्ती बारह माह
के किसी भी दिन नियोजित थे, अब वे ही ठेका मजदूर (विनियमन एवं उन्मूलन) अधिनियम के दायरे
में आएंगे। यह ठेकेदारों पर भी लागू होगा। पहले यह सीमा 20 या इससे अधिक मजदूरों की थी।
विधेयक झारखंड श्रम विधियां (संशोधन) और प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम, विधेयक-2018
प्रावधान : भवन निर्माण तथा ठेका श्रम में लगे प्रतिष्ठानों द्वारा रजिस्ट्रेशन के लिए पूर्ण आवेदन प्रस्तुत करने पर एक माह के भीतर रजिस्ट्रेशन होगा। यदि इस अवधि में संबंधित पदाधिकारी उसे मंजूर
करने, उससे इन्कार करने या संशोधन करने के आदेश देने में असफल रहता है तो उक्त प्रतिष्ठान
को स्वत: निबंधित समझा जाएगा।