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आधी आबादी को स्वावलंबी बना रहा सुई-धागा Ranchi News

Jharkhand. सुई-धागा केवल कपड़ों को ही नहीं जोड़ रहा महिलाओं को स्वावलंबी भी बना रहा है। खादी व ग्रामोद्योग बोर्ड मुफ्त में सिलाई का प्रशिक्षण देकर महिलाओं को आगे बढ़ा रहा है।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Thu, 27 Jun 2019 10:49 AM (IST)Updated: Thu, 27 Jun 2019 07:59 PM (IST)
आधी आबादी को स्वावलंबी बना रहा सुई-धागा Ranchi News
आधी आबादी को स्वावलंबी बना रहा सुई-धागा Ranchi News

रांची, [संजय कृष्ण]। सुई-धागा केवल कपड़ों को ही नहीं जोड़ रहा, महिलाओं को स्वावलंबी भी बना रहा है। झारखंड की राजधानी रांची में ओरमांझी के चुटू गांव की ऊषा तिर्की ने कॉमर्स से स्नातक किया है। वह आगे और पढऩा चाहती है। घर की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह आगे की पढ़ाई जारी रख सकें। उन्होंने झारखंड राज्य खादी व ग्रामोद्योग बोर्ड द्वारा संचालित सिलाई प्रशिक्षण केंद्र में पिछले साल प्रशिक्षण लिया।

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छह माह के प्रशिक्षण के बाद बोर्ड ने न्यूनतम राशि लेकर ऊषा को 25 हजार रुपये मूल्य की आधुनिक सिलाई मशीन दी। अब ऊषा घर में सिलाई करती हैैं। कम से कम चार हजार रुपये महीना कमा लेती हैं। बैंक में नौकरी करने की अपनी इच्छा के तहत पढ़ाई करने के लिए अब वह आर्थिक रूप से खुद पर निर्भर हैं।

प्रशिक्षण के दौरान मिला है 150 रुपये का अनुदान

कुछ ऐसी ही कहानी कमला कुमारी की है। पिछले साल मार्च से सितंबर तक सिलाई का प्रशिक्षण लिया। प्रशिक्षण के दौरान उन्हें प्रतिदिन 150 रुपये अनुदान भी मिलता रहा। अब वह खुद घर पर सिलाई मशीन चलाती हैं। वह भी चार से पांच हजार रुपये प्रतिमाह कमा लेती हैं। कमला कहती हैं कि यदि पूरा समय दिया जाए तो दस हजार रुपये तक कमाया जा सकता है।

अब तक 3500 महिलाएं प्रशिक्षित

पिछले ढाई साल में खादी बोर्ड से करीब 3500 महिलाएं सिलाई-कढ़ाई, लाह-चूड़ी, डोकरा आर्ट में प्रशिक्षण ले चुकी हैैं। झारखंड में सिलाई प्रशिक्षण, डोकरा आर्ट, मधुमक्खी पालन के करीब 33 केंद्र हैैं। वहां समय-समय पर प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया जाता है। सिलाई प्रशिक्षण के लिए छह महीने, मधुमक्खी पालन के लिए एक सप्ताह और लाह-चूड़ी के लिए तीन महीने का कोर्स है।

मुफ्त है प्रशिक्षण

प्रशिक्षण के लिए कोई फीस नहीं है, बल्कि बोर्ड की ओर से उन्हें प्रतिदिन 150 रुपये की राशि भी दी जाती थी, ताकि उन्हें कोई परेशानी न हो। इस तरह समय-समय पर प्रशिक्षण का क्रम चलता है और महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए बोर्ड हर उपकरण उपलब्ध कराता है। सिलाई मशीन से लेकर लाह तक। मधुमक्खी पालन के लिए बॉक्स और मधुमक्खी भी बोर्ड देता है। इस तरह गांव-गांव में महिलाएं घर बैठे आत्मनिर्भर बन परिवार का संबल बन रही है।

खादी में रोजगार की असीम संभावनाएं हैं। खादी बोर्ड प्रशिक्षण देकर लोगों को आत्मनिर्भर बना रहा है। महिलाएं घर बैठे कमा रही हैैं। इसके लिए उन्हें अपनी परिवार जिम्मेदारियों से समझौता नहीं करना पड़ता है। डोकरा आर्ट और मधुमक्खी पालन से जुड़े उत्पाद बोर्ड खुद खरीद लेता है। इसलिए उन्हें बाजार में परेशान होने की जरूरत नहीं। बोर्ड के पूरे देश में आउटलेट हैं, जहां ये उत्पाद बेचे जाते हैं।  -संजय सेठ, पूर्व अध्यक्ष, झारखंड राज्य खादी व ग्रामोद्योग बोर्ड।

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