नक्सल गांवों में महिलाओं की तरक्की, औषधीय पौधों की खेती से बन रहीं आत्मनिर्भर Latehar News
Latehar Jharkhand News गांवों में अब तुलसी एलोवेरा कुटकी और शंखपुष्पी जैसे औषधीय पौधों की खेती से किसानों का एक छोटा समूह तीन लाख रुपये प्रति एकड़ तक की कमाई कर रहा है। ये पौधे किसानों की जिंदगी बदल रहे हैं।
लातेहार, [उत्कर्ष पाण्डेय]। Latehar Jharkhand News झारखंड के लातेहार जिले की पूर्व डीडीसी आइएएस माधवी मिश्रा की प्रेरणा से जिले के सुदूर गांवों में महिलाएं औषधीय पौधों की खेती से आत्मनिर्भर बनकर दूसरों को रोजगार प्राप्ति के लिए नई राह दिखा रही हैं। नक्सलियों के कारण बदनाम जिले के सुदूर गांवों में अब औषधीय फसलों की खेती से सार्थक बदलाव हो रहा है। गांवों में लहलहाती औषधीय फसलों को देखने के लिए काफी दूर-दूर से लोग आते रहते हैं। सिंजो, दूंदू व कुई समेत कई सुदूर गांवों में महिलाएं परंपरागत खेती से दूरी बनाकर तरक्की का रास्ता निकाल चुकी हैं।
गांवों में अब तुलसी, एलोवेरा, कुटकी और शंखपुष्पी जैसे औषधीय पौधों की खेती से किसानों का एक छोटा समूह तीन लाख रुपये प्रति एकड़ तक की कमाई कर रहा है। किसान जब गेहूं या धान की खेती करते हैं तो महज 30,000 रुपये प्रति एकड़ से कम की कमाई होती है। औषधीय पौधों से प्राप्त फसलों के बाद इनके पौधों का इस्तेमाल आयुर्वेदिक दवाइयों और पर्सनल केयर उत्पाद बनाने में होता है। स्थानीय उपभोक्ताओं के लिए कुटकी, तुलसी, एलोवेरा व शंखपुष्पी जैसे पौधों की शायद ही कोई अहमियत हो लेकिन ये पौधे किसानों की जिंदगी बदल रहे हैं।
नक्सल गांवों में ऐसे हुआ सार्थक बदलाव
खेती से जुड़ीं जशमतिया देवी, रातरानी देवी, रीना देवी, ममता देवी आदि महिलाओं ने बताया कि नक्सल गांवों में निवास करने वाली महिलाओं की प्रतिभा और कार्यक्षमता देखकर आइएएस माधवी ने दो साल पहले महिलाओं को परंपरागत खेती के अलावा औषधीय खेती करने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद जेएसएलपीएस से मदद दिलवा कर महिलाओं से औषधीय पौधों की खेती करवाई। जब खेती से महिलाओं को आमदनी शुरू हुई तो महिलाओं में उत्साह और बढ़ गया।
खेती से लाखों की कमाई
तीन प्रकार की तुलसी रामा, श्यामा एवं वन तुलसी के अलावा शंखपुष्पी की फसल उगाने वाले किसानों को आसानी से ढाई से तीन लाख रुपये प्रति एकड़ की आमदनी हो जाती है। इनका ज्यादातर इस्तेमाल आयुर्वेदिक दवाओं में होता है। जानकार बताते हैं कि इन पौधों से तेल निकाला जाता है और इनसे कई तरह के सुंगधित उत्पाद बनाए जाते हैं।
कम पानी में होती है फसल
खेती के बारे में ग्रामीण इन फसलों की खेती का एक और बड़ा फायदा बताते हैं। ग्रामीणों का कहना कि औषधीय पौधों को बहुत अधिक पानी या खाद की जरूरत नहीं पड़ती है। कम पानी में भी ये फसलें लगाई जा सकती हैं। इसलिए सिचाई सुविधा नहीं रहने वाले खेतों में इन फसलों के जरिए किया गया प्रयोग निश्चित तौर पर सफल होगा। इसके अलावा पौधों की ग्रोथ के लिए रासायनिक खाद की जरूरत नहीं पड़ती, कुछ खेतों में जैविक खाद का उपयोग जरूर किया जाता है।
जल समृद्धि योजना से मिल रहा लाभ
इसके अलावा ग्रामीण इलाकों में नीलांबर-पीतांबर जल समृद्धि योजना का पूरा लाभ मिल रहा है। योजना के लिए टॉप जिलों में राज्य भर में लातेहार जिले को तीसरा स्थान प्राप्त है। गढ़वा में 8.3, सिमडेगा में 6.5 और लातेहार में 5.6 योजना औसतन प्रति गांव चल रही है।