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दादी के हाथ का बना खाना खाते थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस

सुभाष चंद्र बोस जब रांची आते थे, तब सादा भोजन ही किया करते थे ।

By JagranEdited By: Published: Sat, 18 Aug 2018 11:18 AM (IST)Updated: Sat, 18 Aug 2018 12:58 PM (IST)
दादी के हाथ का बना खाना खाते थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस
दादी के हाथ का बना खाना खाते थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस

रांची, संजय कृष्ण। सुभाष चंद्र बोस जब रांची आते थे, तब सादा भोजन ही करते थे और यह भोजन फणींद्रनाथ आयकत की पत्‍‌नी गौरी रानी आयकत बनाती थीं। उन्हें इनके हाथ का खाना प्रिय था। यह कहना है, विष्णु आयकत का। विष्णु फणींद्रनाथ के पोते हैं।

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लालपुर के पास विशाल और हरे-भरे अहाते में स्थित एक बंगले में रहते हैं। यह बंगला या कोठी भी 1922 का बना हुआ है और आज भी यह खूबसूरत लगता है। सुभाष बाबू रांची आते तो यहीं ठहरते। एक दो और मित्र भी थे, जहां उनका आना-जाना रहता। सरकुलर रोड स्थित क्रांतिकारी यदुगोपाल मुखर्जी के यहां भी आते-जाते रहते थे।

यदुगोपाल मुखर्जी से सलाह-मशविरा भी लेते। रामगढ़ में 17 से 19 मार्च, 1940 में कांग्रेस अधिवेशन में वे भाग लेने आए थे। उन्हें चाईबासा से रांची के मशहूर चिकित्सक डा. पीएन चटर्जी अपनी विंटेज कार से लेकर आए थे। यहां से फिर वे रामगढ़ लेकर गए। डाक्टर चटर्जी खुद गाड़ी चलाकर उन्हें ले गए थे। यह गाड़ी आज भी सुरक्षित और चलती है।

1939 को बंगले में ठहरे थे

विष्णु आयकत कहते हैं कि सुभाष बाबू के बारे में दादा-दादी से सुनते रहे थे। इतना पता है कि वे 1939 के दिसंबर में आए थे और चार-पांच दिन ठहरे थे।

यहीं पर वे अपने लोगों के साथ बैठक भी करते थे। दादी ही उनके लिए खाना बनाती थीं। वे सादा भोजन करते थे, लेकिन दूध खूब पीते थे। उनके लिए यहां एक गाय भी रखी गई थी। रामगढ़ में जब कांग्रेस का अधिवेशन हुआ तब उनके लिए यहीं से खाना जाता था।

एक बड़ सा टिफिन था। उसके नीचे कोयले की आग सुलगाई जा सकती थी ताकि खाना गरम किया जा सके। इस तरह का उस समय टिफिन था। सुभाष चंद्र बोस द्वारा इस्तेमाल किया गया बेड है। जिस बर्मा टिक की कुर्सी में वे बैठते थे, वह भी यहा मौजूद है। कांग्रेस अधिवेशन के समय ही सुभाष बाबू की राह अलग हो गई थी, पार्टी गठन के लिए उस समय फणींद्रनाथ ने सुभाष बाबू को 40 हजार रुपये दिए थे।

चप्पल पुरुलिया म्यूजियम में

विष्णु आयकत बताते हैं कि एक बार यहां रहते हुए उनकी चप्पल और बालों में कंघी करने वाला ब्रश यहीं छूट गया। तब वे विद्यासागरी चप्पल पहनते थे। पुरुलिया में मेरे चाचा रहते थे। वहां दोनों चीजें भिजवा दी गई और फिर वहीं म्यूजियम में ये दोनों चीजें सुरक्षित हैं।

सिविल कंट्रेक्टर थे फणींद्रनाथ

फणींद्रनाथ आयकत सिविल कंट्रेक्टर थे। अंग्रेज ही उनको यहां रांची लाए थे। रांची का धीरे-धीरे विकास हो रहा था। कुछ सरकारी भवनों का निर्माण करना था। सो, फणींद्रनाथ यहां आए तो फिर यहीं के होकर रह गए। उनका बनाया हुआ जेपीएससी भवन है। राजभवन, रांची रेलवे स्टेशन, रांची क्लब आदि है। राजभवन के बैठके में जो लकड़ी का इस्तेमाल हुआ है, वह तमाड़ के जंगलों से आया था।

बंगले का नाम बेटिका

जिस बंगले में आज विष्णु आयकत रहते हैं, उसका नाम 'बोटिका' है और इसका निर्माण 1922 में हुआ था। इसकी डिजाइन राची क्लब की तरह है। यह चूना-सुर्खी ईंट से बना हुआ है। इसमें लोहे के बीम तथा मार्टिन ब‌र्न्स कंपनी के टाइल्स लगे हैं। गर्मी के दिनों में भी यह बंगला ठंडा रहता है। 3.5 एकड़ परिसर वाला बंगले में सुभाष चंद्र बोस ठहरे थे। इस बंगले में चारों तरफ हरियाली है, बड़े-बड़े पेड़ लगे हैं।


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