किताबों से गुजर कर ही जाता है साहित्य का रास्ता
रांची : 'शब्दकार' के आगन में नामी साहित्यकार हैरत फर्रुखाबादी 'बाआदब' रूबरू हुए। रविवार क
रांची : 'शब्दकार' के आगन में नामी साहित्यकार हैरत फर्रुखाबादी 'बाआदब' रूबरू हुए। रविवार को काके रोड स्थित श्रीराम गार्डेन के कम्युनिटी हॉल में इसका आयोजन किया गया था। हैरत फर्रुखाबादी, जिनका असली नाम ज्योति प्रसाद मिश्रा है, ने अपने जीवन और संस्मरणों को साझा किया। कार्यक्रम की शुरुआत समायरा शेखर द्वारा सरस्वती वंदना से की गई। इसके बाद दीप प्रज्वलित करने के बाद स्वागत भाषण वीना श्रीवास्तव ने किया। फर्रुखाबादी जी को एक पौधा और मोमेंटो देकर सम्मानित किया गया।
इसके बाद उन्होंने अपने संस्मरणों की पोटली खोली। राची में 1960 में विकास विद्यालय ज्वाइन किया। 1988 में उनकी पहली किताब नवाए-साजे दिल और 2008 में प्रकाशित दूसरी पुस्तक हिस्स-ऐ-इल्तमास को उर्दू अकादमी का अवार्ड मिला। अपने को बैल बताते हुए कहा, एक ऐसा बैल, ं जिनका कोई धर्म नहीं, कोई गोत्र नहीं है, उनका धर्म और गोत्र तो बैल है, जो खुद तो भूसा खाता है, मेहनत करता है, किंतु अपने द्वारा उपजाया गया गेहूं दूसरों को खिलाता है।
उन्होंने बताया कि मैंने सभी धमरें की किताबों का बाकायदा अध्ययन किया है। किसी धर्म में दूसरे धर्म की बुराई नहीं है। हर धर्म इंसा को नेक बनने का ही संदेश देता है। उन्होंने कहा, सवाब इसकी नजर में है जो, गुनाह उसकी नजर में क्यों है, तमाम सफ़हे उलट लिए हैं जवाब इसका मिला नहीं है..सब अपनी-अपनी जगह में सच कोई भी रास्ता बुरा नहीं है, सवाब क्या है, गुनाह क्या है, जो इसका अमृत है जहर उसका..। इस प्रकार अपनी एक से बढ़कर एक नायाब रचनाओं को सुनाते हुए और विभिन्न प्रकार के संस्मरणों को साझा किया।
नवोदित रचनाकारों को नसीहत देते हुए कहा कि साहित्य की राह में आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता अधिकाधिक पढ़ना है। लाइब्रेरी जाइए और पढि़ए। जितना ज्यादा हो सके, पढि़ए, दुनिया में एक से बढ़कर एक साहित्यकार आ चुके, उन सबकी रचनाओं को न केवल पढ़ना, बल्कि उनके जीवन-संघर्ष को समझना भी एक साहित्यकार के लिए बहुत जरूरी है। अध्यक्षता शब्दकार की अध्यक्ष वीणा श्रीवास्तव ने की और उनका साथ निभाया सचिव रश्मि शर्मा ने। धन्यवाद ज्ञापन संगीता गुजारा टॉक ने किया। कार्यक्रम में राजीव थेपड़ा, नंदा पाडे, मृदुला सिन्हा, समायरा शेखर, डॉ. अंशुमिता, शालिनी नायक, हिमकर श्याम, निरंजन प्रसाद, विश्वनाथ वर्मा, त्रिपुरानंद सहाय, नसीर अफसर, सूरज श्रीवास्तव, नेहाल सैरयावी, संध्या चौधरी, सुदीक्षा चौधरी, नरेश बंका और मोहम्मद इमरान आदि मौजूद थे। संचालन नीरज नीर ने किया।