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Weekly News Roundup Ranchi: जब गुरुजी को बोरे में चावल लेकर निकलना पड़ा...

Weekly News Roundup Ranchi. गुरुजी के समूह ने इससे छुटकारा पाने की कई अर्जियां दी। संक्रमण फैलने की भी दुहाई दी। लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Fri, 10 Apr 2020 12:49 PM (IST)Updated: Fri, 10 Apr 2020 12:49 PM (IST)
Weekly News Roundup Ranchi: जब गुरुजी को बोरे में चावल लेकर निकलना पड़ा...
Weekly News Roundup Ranchi: जब गुरुजी को बोरे में चावल लेकर निकलना पड़ा...

रांची, [नीरज अम्बष्ठ]। गुरुजी आजकल मुख्यालय से आनेवाली चिट्ठियों से परेशान हैं। हर चिट्ठी में उनके लिए कोई न कोई फरमान रहता है। स्कूल बंद हुए तो राहत महसूस कर रहे थे लेकिन, बाद में फरमान आ गया कि गुरुजी स्कूल जाएंगे। किसी तरह से इससे जान बची तो चावल बांटने का फरमान आ गया। गुरुजी के समूह ने इससे छुटकारा पाने की कई अर्जियां दी। संक्रमण फैलने की भी दुहाई दी।

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छात्रों को संभावित खतरे से भी आगाह किया। कई जगहों पर गुहार भी लगाई। लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। बोरे में चावल लेकर निकलना ही पड़ा। अब डर यह भी है कि हिसाब-किताब में इधर-उधर न हो जाय। यही मौका होता है जब शिकायतकर्ताओं की संख्या बढ़ जाती है। अब नया फरमान वाट्सएप पर बच्चों को पढ़ाने का आ गया है। गुरुजी को भी अपना ज्ञान बढ़ाना होगा। अब इसे लेकर गुरुजी खुद को खूब कोस रहे हैं।

बढ़ गई हैं धड़कनें

केंद्र के एक फैसले से राज्य के कई माननीय सांसत में हैं। अभी तक तो कोरोना के खिलाफ जंग में झोलियां खोलने को तैयार थे। अपने खाते से नहीं अपने फंड से ही सही। कोई 25 लाख की मदद की घोषणा कर रहे थे तो कोई 50 लाख की। लेकिन, जैसे ही राज्य में भी वेतन में कटौती और दो साल तक फंड इस लड़ाई में समर्पित  करने की बात आई, कई माननीयों के चेहरे पर तो उदासी ही छा गई।

हाल की ही तो बात है। राज्य की सबसे बड़ी पंचायत में माननीय इस फंड को ऊंट के मुंह में जीरा का फोरन बताते हुए डबल करने की मांग कर रहे थे। भरोसा भी मिला था। अब तो कैबिनेट की होनेवाली बैठक ने भी उनकी धड़कनें बढ़ा दी हैं। लोग जान चुके हैं कि कुछ ना कुछ राशि तो कटेगी ही, कुछ बचे तो बेहतर।

साहब का डंडा

शिक्षकों को डंडा चलाने के लिए सख्त रूप से मना कर दिया गया है लेकिन अधिकारियों को कौन समझाए। आजकल किताब-कॉपी वाले विभाग के साहब का डंडा खूब चल रहा है। ब्लॉक में शिक्षा के प्रसार-प्रसार करनेवाले बाबुओं पर तो उनका डंडा कुछ अधिक ही बरस रहा है। पहले क्या ठाठ से इनकी नौकरी चल रही थी। अपने मातहतों से रिपोर्ट मंगाई और भेज दी। न निगरानी न सत्यापन।

एक-एक सप्ताह बिना छूट्टी के इधर-उधर चल जाने का भी मौका मिल जाता था। बच्चों के दोपहर के भोजन की ऑडिट हुई तो कलई खुली। बस नप गए कई। एक-दो की तो नौकरी भी चली गई। बगोदर वाले तो कोरोना में ही फंसकर निलंबित हो गए। रामगढ़ वाले साहब भी लपेटे में आ गए। अब आगे देखना है कि बंदी के दौरान कितने के खाते बंद हो जाते हैं। ऐसा लग रहा है साहब आक्रामक बने ही रहेंगे।

साहब का सेवा भाव

पहले ओएसडी बनने के लिए साहबों में होड़ लगी रहती थी। वह जमाना कुछ और होता था। बड़े-बड़े मोमेंटम से लेकर समिट का जमाना था। उसमें ओएसडी की जिन साहब को जिम्मेदारी मिल गई तो समझिए सरकार के खास हैं। खर्च करने क लिऐ हाथ में धनराशि भी होती थी। सो, सभी इसके लिए लालायित रहते थे। लेकिन अब कोरोना से लडऩे के लिए नए साहबों को ओएसडी की जिम्मेदारी मिल गई है।

इसमें तो पहले वाला मजा नहीं है। बस सेवा भाव ही है। सो, साहब पूरे मन से इसमें लगे हैं। लगातार बैठकों में शामिल हो रहे हैं और प्लान बना रहे हैं। इससे उन्हें हो ना हो, उनके अधीन काम करनेवाले बाबुओं की परेशानी तो बढ़ ही गई है। कई साहबों ने तो अपने फोन को भी डायवर्ट कर दिया है। पूरे देश से आम लोगों की शिकायतें बाबू लोग सुन रहे हैं।


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