Weekly News Roundup Ranchi: खाकी वाले साहब बेचैन हैं... पढ़िए पुलिस विभाग की अंदरूनी खबरें
Jharkhand. सरकार की गाड़ी सरकार का पेट्रोल इसे लेकर चौक-चौराहे पर जमे रहिए। अपराधी अपराध करने के बाद आसानी से भाग निकलेंगे।
रांची, [दिलीप कुमार]। Weekly News Roundup खाकी वाले एक साहब इन दिनों बेचैन हैं। मलाई की पुरानी आदत थी। इसके लिए ये किसी भी हद तक चले जाते थे। इनके रहमोकरम पर तो कइयों की किस्मत ही खुल गई थी तो कई ऐसे थे, जिन्हें शंट कर दिया गया था। बदले हालात में अब तो इन साहब की ही कुर्सी डोलने लगी है। उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। एक कहावत है न जस करनी तस भोगहुं ताता, नरक जात अब क्यों पछताता।
साहब भी अब समझ गए हैं कि उनका कुछ नहीं होने वाला, चाहे वे अपने आका कि कितनी भी जी-हुजूरी क्यों न कर लें। पुराने वाले तो उन्हें खूब मानते थे। तब साहब की तूती बोलती थी। इन्हें बचाते-बचाते बेचारे पुराने वाले की कुर्सी ही जमीन से खिसक गई। अब साहब की कुर्सी कहां फिट बैठेगी, उस नाप का स्थान बनवाया जा रहा है। धीरज धरिए, नतीजा भी जल्दी सामने आएगा।
शक्तिहीन हुआ शक्ति एप
पुलिस का शक्ति एप मोबाइल से गायब हो गया है। बड़े तामझाम से इसे लांच किया गया था। बड़े-बड़े दावे किए गए थे। इसे छात्राओं-महिलाओं का अचूक हथियार बताया गया था। प्रदर्शन के दौरान इसे 100 अंक मिले थे। ऐसा लगा था कि महिलाओं के अपराध रोकने में यह शानदार तकनीक साबित होगी लेकिन योजना धरी रह गई। दूसरों की मदद के लिए बना यह एप धरातल पर पहुंचते ही धड़ाम हो गया।
इस एप के प्रति छात्राएं-महिलाएं जागरूक नहीं। इस एप को डायल-100 से भी जोड़ा गया था, लेकिन इसके माध्यम से दो-चार लोकेशन ही कंट्रोल रूम तक पहुंचे। आज स्थिति यह है कि महिलाओं-छात्राओं से छेड़खानी, दुष्कर्म की घटनाएं जितनी पहले होती थी, आज भी उससे कम नहीं है। सरकार बदली है, हुक्मरान भी रेस हैं। शक्ति एप को इंतजार है कि शायद उसके दिन बहुरे।
कैमरे हैं कि ट्यूबलाइट
साहब ये कैमरे हैं कि ट्यूबलाइट। शहर के 170 स्थानों पर 51 करोड़ की लागत से 649 हाई रिजोल्यूशन कैमरे लगाए गए हैं। कैमरे लगाते वक्त पुलिस का दावा था कि ये अपराधियों की धरपकड़ में सहयोग के साथ-साथ यातायात नियमों को तोडऩे वालों को भी पकड़ेंगे। दावे तो बड़े-बड़े किए गए थे लेकिन धरातल पर कितना उतरा, इसका अनुमान यातायात चालान का आंकड़ा देखकर लगाया जा सकता है।
चंद चौराहों पर ही यातायात नियम तोडऩे वालों के चालान ज्यादा कटते हैं। अन्य जगहों के कैमरे तो हाथी के दांत बनकर रह गए हैं, जो सिर्फ डराने का काम कर रहे हैं। अपराधी अपराध करने के बाद आसानी से कई चौराहों से होकर भाग निकलता है और पुलिस को इसका फुटेज तक नहीं मिलता। शहर में ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं, जहां पुलिस के सर्विलांस सिस्टम को अपराधी चकमा दे जाते हैैं और वर्दी वाले रह जाते हैं हाथ मलते।
खिलौना बना इंटरसेप्टर
करोड़ों की लागत से स्मार्ट पुलिसिंग के लिए मिला इंटरसेप्टर बढिय़ा खिलौना है। अंतर यही है कि इससे आम बच्चे नहीं, बल्कि सरकारी कर्मी खेलते हैं। जिसे दूसरों की स्पीड जांचने की जिम्मेदारी थी, उसकी अपनी ही स्पीड बिगड़ गई है। आर्टिगा कार पर लगे बड़े-बड़े कैमरे और लालबत्ती दूर से ही दिखते हैं, लेकिन यह कोई काम कर नहीं पा रहा है।
आज तक एक भी चालान नहीं काटा, एक भी गाड़ी नहीं पकड़ी, एक भी अपराधी इसकी रेंज में आकर नपा नहीं। अब तो इसका प्रभाव भी नहीं रहा। लोग समझ चुके हैं कि यह सिर्फ दिखावे के लिए ही है। सरकार की गाड़ी, सरकार का पेट्रोल, बस इसे लेकर चौक-चौराहे पर जमे रहिए। आलम यह है कि चौक-चौराहों पर फर्राटे से गाडिय़ां भागती हैं। पड़ी-पड़ी जंग खा रही इंटरसेप्टर भी महकमे को कोसती होगी कि क्यों वे इनके पल्ले पड़ी। उसकी सारी तेजी ही गुम कर दी।