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Weekly News Roundup Ranchi: रुपये की माया के आगे कोरोना का वायरस छू मंतर...

Weekly News Roundup. गांधी बाबा की तस्वीर वाला कागज पकडऩे में किसी को कोई एतराज नहीं है। इधर कई दफ्तरों में लाल रजिस्टर दिखाई देने लगा है।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Wed, 18 Mar 2020 03:39 PM (IST)Updated: Wed, 18 Mar 2020 06:22 PM (IST)
Weekly News Roundup Ranchi: रुपये की माया के आगे कोरोना का वायरस छू मंतर...
Weekly News Roundup Ranchi: रुपये की माया के आगे कोरोना का वायरस छू मंतर...

रांची, [शक्ति सिंह]। बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपया! यह कहावत हम बचपन से ही सुनते आ रहे हैं। रिश्तों के बाद अब यह बीमारी को भी मात दे रहा है। कोरोना के खौफ के बीच नोट ही एक ऐसी चीज बच गई है, जो बड़े आराम से इस हाथ से उस हाथ सरक रही है। यह हाल तब है जब एक-दूसरे के हाथ से लोग मंदिर का प्रसाद तक लेने में डर रहे। लेकिन नोट पकडऩे में कहीं किसी को कोई एतराज नहीं।

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नया हो पुराना हो। कटा हो, फटा हो। सब चल रहा है। स्कूल, कॉलेज, सिनेमाहॉल सब बंद हो गए हैं। अगर अब भी कुछ चल रहा है तो बस गांधी बाबा की तस्वीर वाला कागज। नोटबंदी के बाद पूरे देश में डिजिटल करेंसी की धूम मची थी। कोरोना के पहुंचते-पहुंचते सब गायब हो गया है। नोट को लेकर अब तक सोशल मीडिया पर भी कोई ज्ञान नहीं आया है। नोट जितने हाथ से गुजरता है। संक्रमण का खतरा सबसे ज्यादा रहता है। रुपये की माया को क्या कहा जाए।

बड़ा डरा रहा कोरोना

कोरोना हर किसी को डरा रहा है। ट्रेनों में लोग मास्क पहन कर चल रहे हैं। पड़ोसी राज्य ओडिशा में कोरोना का कंफर्म केस मिला है। दहशत रांची रेल मंडल में फैल गई। ओडिशा का नागरिक जिस नई दिल्ली-भुवनेश्वर राजधानी एक्सप्रेस ट्रेन में सवार होकर अपने घर पहुंचा। वह ट्रेन रांची रेल मंडल से भी गुजरी। जिस बोगी में वह यात्रा कर रहा था, उस बोगी में यात्री के साथ कुल 129 लोग सहयात्री रहे।

बीच में कुछ उतरे, फिर दूसरे चढ़े। खबर सोशल मीडिया पर वायरल होकर लोगों तक पहुंच गई। फिर क्या था, उस ट्रेन में उक्त दिन सफर करनेवाला हर शख्स खुद को लेकर आशंकित हो गया। स्वास्थ्य विभाग ने किसकी जांच की, रेलवे ने क्या कहा, यह सब दूर की बात है। खौफ पहले कायम हो गया। लोग ट्रेन में सवार होने से घबरा रहे हैं। कोरोना से डरने नहीं, सतर्क रहने की जरूरत है।

दफ्तर में लाल रजिस्टर

सरकारी सिस्टम है। लेट-लतीफ चलता है। कोरोना को लेकर कई निजी संस्थानों ने पहले पहल की। बायोमीट्रिक मशीनों से हाजिरी बनाने पर रोक लगा दी। सरकार व जिला प्रशासन की नींद देर से खुली। देर से ही सही, अंगूठा से निशान लगाने पर रोक लग गई। आलाकमान के फरमान से कर्मियों को बड़ी राहत मिली। जब तक यह सरकारी फरमान नहीं आया, क्लर्क से लेकर अधिकारी तक सहमे रहे।

देर आए, दुरुस्त आए। समय रहते सुधार की पहल शुरू हुई। कई सरकारी कर्मचारी डरे हुए थे कि बायोमीट्रिक के चक्कर में कहीं अस्पताल का मुंह न देखना पड़ जाए। पुरानी व्यवस्था लागू हो गई। कई जगह दफ्तरों में लाल रजिस्टर दिखाई देने लगे हैं। कार्यालय अवधि से पांच-दस मिनट देर से पहुंचने पर भी चेहरे पर कोई तनाव नहीं। अगर किसी ने मजाक में पूछ दिया, बस मुस्कुराते हुए निकल लेना है। जान है तो जहान है। बाकी उसके बाद।

डर के आगे जीत

नौकरी के अपने नियम-कायदे हैं। बॉस का हर फरमान सिर आंखों पर। कोरोना की रोकथाम के लिए जिला प्रशासन से लेकर सरकार तक का पूरी तैयारी का दावा है। हकीकत में जिनके भरोसे दावा किया जा रहा है, वही अंदर तक डरे हुए हैं। प्रशासन के फरमान पर विदेश व प्रभावित राज्यों से आने वाले नागरिकों की जांच के लिए टीम घर-घर पहुंच रही। बीमार लोगों से पहला सामना इन्हीं लोगों का होने वाला है।

लिहाजा हर दौरे पर जाने से पहले टीम के सदस्यों के चेहरे पर डर साफ दिख रहा है। मना नहीं कर सकते। टीम में शामिल सदस्यों के घरों पर सबसे अधिक पूजा-पाठ और मिन्नतें मांगी जा रहीं। ड्यूटी से सही सलामत लौटने पर घरवाले राहत की सांस ले रहे। घर में भी अलग तौलिया, बिस्तर आदि की व्यवस्था कर ली है। कोरोना से लडऩेवाले इन सच्चे सिपाहियों को सलाम।


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