Weekly News Roundup Ranchi: कोरोना के मौसम में गले लग गए दो बॉस...
COVID-19. ऐसी तस्वीर हाल-फिलहाल नजर नहीं आई थी। यह बात अलग है कि पूरी पटकथा किसी और ने लिखी। मंचीय अभिनय कोई और कर रहा था।
रांची, [ब्रजेश मिश्रा]। दोस्ती की असली पहचान कोरोना वाले मौसम में हो रही। जिनके साथ दिन भर गलबहिया करते थे। आजकल उनसे हाथ मिलाने से कतरा रहे हैं। ऐसे माहौल में दोस्ती की दरियादिली देखकर दिल गदगद हो गया। सूबे के पुलिस महकमे में सर्वाेच्च स्तर पर बड़ा फेरबदल हुआ। पदभार ग्रहण व विदाई की घड़ी आई। नए बॉस व पुराने बॉस कुर्सी बदलने की प्रक्रिया के दौरन गले लग गए।
कैमरे में कैद घटनाक्रम की तस्वीर कमरे से बाहर आई तो चर्चा का विषय बन गई। स्वाभाविक भी था। ऐसी तस्वीर हाल-फिलहाल नजर नहीं आई थी। यह बात अलग है कि पूरी पटकथा किसी और ने लिखी। मंचीय अभिनय कोई और कर रहा था। नेपथ्य की आवाज कुछ और ही संवाद सुना रही थी। अभिनेता आमिर खान की फिल्म थ्री इडियट का एक प्रसंग याद आ गया। दोस्त के फेल होने पर बुरा लगता है। टॉप कर जाए। यह ज्यादा बुरा लगता है।
पराक्रम की परीक्षा
कोरोना क्या आया, साहब के इम्तिहान की नई घड़ी आ गई। यूपीएससी से बड़ी परीक्षा अब सामने आकर खड़ी हो गई है। एक साथ चार-चार मोर्चे खुल गए हैं। सब पर एक साथ मोर्चेबंदी की चुनौती सामने है। एक तरफ कोरोना, दूसरी ओर जनगणना, तीसरी तरफ विधि व्यवस्था और चौथी ओर तबादले की चर्चा। मानो सारा सिस्टम साथ मिलकर बच्चे की जान लेने पर आमादा है।
सुबह घर से निकलते हैं तो देर रात तक बैठकों का दौर नहीं थम रहा। छुट्टियां होने से लोग परिवार के साथ क्वालिटी टाइम बिता रहे हैं। दूसरी तरफ जनाब का टाइम ऑफिस में गुजर रहा है। जितने विभाग उतने निर्देश। आदमी एक काम पर फोकस करे तो दूसरा भूल जाए। यह तो अपना हुनर है कि अब तक सारी सीमाएं सुरक्षित हैं। पराक्रम की परीक्षा कब तक चलेगी। कोई नहीं बता सकता। फिलहाल, साहब की विजय पताका लहरा रही है।
कानून की बंदी
कोरोना के कहर की आशंका बेचैन कर रही है। हर तरफ बंदी का ताला लटकरहा है। काले कोट वाले तैयार होकर कचहरी पहुंचे। ताला लगा मिला। दूसरों के अधिकारों की लड़ाई लडऩे वाले भला चुप क्यों रहते। लगे हाथ सवाल पूछ लिया, कोरोना से कानून की बंदी हो गई है क्या? अपराधी खुलेआम हैं। लोग परेशान हैं। फिर कचहरी के दरवाजे पर ताले से क्या बदलेगा। भीड़ को चीरकर एक वयोवृद्ध ज्ञानी बाबा बाहर निकले।
बोले, अरे भाई, दुकान नहीं चलेगी तो करेंगे क्या। सरकारी कर्मचारियों की तरह मासिक सैलरी की व्यवस्था काले कोट वालों के लिए नहीं है। सुबह से शाम तक नोटरी, बयान हलफनामा और केस का ब्यौरा दर्ज कराना पड़ता है। तब फीस की राशि जेब में आती है। बच्चों की फीस, घर का भाड़ा, परिवार का खर्च निकलता है। बाबा की करुण कथा काम आई। ताला लगाने वालों का दिल पसीज गया।
बागों में बहार है
बागों में बहार है। होनी भी चाहिए। कोरोना कितना भी डरा ले। कविता का मौसम साथ लेकर आया है। तैयारियां पहले से शुरू हैं। विश्व कविता दिवस आगामी 21 मार्च को मनाया जाएगा। रचना की बाढ़ पहले से आ गई है। कोरोना को केंद्र में रखकर बहुत कुछ लिखा जा रहा है। सुना जा रहा है। वन के लिए पहचाने जाने वाले राज्य की एक बेटी बाजी ने मार ली है।
युवा रचनाकार की कविता को स्वास्थ्य मंत्रालय ने अपने ट्विटर हैंडल से पोस्ट किया है। हमारे लिए इससे बड़ा गौरव और क्या हो सकता है। वन दिवस व कविता दिवस साथ-साथ मना रहे हैं। हास्य-व्यंग्य के मंच के लिए भी विषय की कमी पूरी हो गई है। कोरोना से जोड़कर एक से बढ़कर एक छंदबद्ध, लयबद्ध व व्यंग्य युक्त कविताएं सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं। रचनाधर्मिता पूरे उफान पर है।