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Weekly News Roundup Ranchi: कंपाउंडर बाबू करते हैं लिखा-पढ़ी का काम, विभाग में बढ़ गई है मांग

Jharkhand. पहली बार मंत्री बने हैं तेवर तो होंगे ही। तो बना ली सचिवालय से दूरी। कई दिनों से नहीं दिखे हैं। बताया जा रहा है क्षेत्र में हैं।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Fri, 14 Feb 2020 04:14 PM (IST)Updated: Fri, 14 Feb 2020 04:14 PM (IST)
Weekly News Roundup Ranchi: कंपाउंडर बाबू करते हैं लिखा-पढ़ी का काम, विभाग में बढ़ गई है मांग
Weekly News Roundup Ranchi: कंपाउंडर बाबू करते हैं लिखा-पढ़ी का काम, विभाग में बढ़ गई है मांग

रांची, [नीरज अम्बष्ठ]। Weekly News Roundup Ranchi दवा-दारू वाले विभाग के एक बाबू भले ही मूल रूप से कंपाउंडर हैं, लेकिन विभाग में लिखा-पढ़ी के बड़े-बड़े काम करते हैं। अफसरों, कर्मियों के वेतन का भी हिसाब-किताब वे ही रखते हैं। सो, वर्षों से जमे हैं। उन्हें विभाग से हटाने का कई लोगों का प्रयास असफल हो गया। जहां उनकी पोस्टिंग है वहां के अफसर भी कुछ नहीं कर सके।

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स्टाफ की कमी होने तथा कंपाउंडर बाबू को लौटाने का बार-बार पत्र ही भेजते रहे। अब तो उनकी मांग भी बढ़ गई है। विभाग की जिम्मेदारी संभाल रहे माननीय के कार्यालय की जरूरत पूरी करने में लगे हैं। अब भला उनका कोई क्या बिगाड़ पाएगा? देखना है कि वे मूल जगह पर जाते हैं या फिर विभाग से ही रिटायर हो जाते हैं।

चैंबर छोटा है

कुर्सी पाने की जद्दोजहद से निपटने के बाद अब चैंबर की होड़। किसी को मनमाफिक चैंबर मिल गया तो वह खुश, जिसे नहीं मिला उसका पारा ऊपर सातवें आसमान पर। राज्य के पेयजल मंत्री की पीड़ा उनका चैंबर है। मंत्रियों में शायद सबसे छोटा। प्रभार लेने के साथ ही उनकी पीड़ा सार्वजनिक भी हो गई। बोले, नहीं चलेगा...। क्या हो सकता है...। मंत्री जी को जवाब निपटाने वाला ही मिला। दोष भवन निर्माण विभाग पर टाल दिया गया। पहली बार मंत्री बने हैं तेवर तो होंगे ही।

तो बना ली सचिवालय से दूरी। कई दिनों से नहीं दिखे हैं, बताया जा रहा है, क्षेत्र में हैं। जाहिर है वहां खेत-खलियान हैं, खुला-खुला माहौल है और चैंबर की पीड़ा भी नहीं है। हालांकि मंत्री जी गुस्सा कितना भी करें। पिछली तमाम सरकारों के मंत्रियों ने नेपाल हाउस के इसी छोटे से कक्ष में अपने दिन गुजार लिए। पीड़ा थी भी तो भी मन में दबाए रखा।

भैया आ रहा है मार्च

साहब लोगों को अपने-अपने विभागों में मुख्यालय स्थापना की जिम्मेदारी मिली है। कौन बाबू और अफसर क्या देखेंगे, कौन सेक्शन किसके हाथ होगा, सभी कुछ तय करने में ये बड़ा रोल निभाते हैं। किसको कंप्यूटर चाहिए किसे आलमारी, यह भी ऐसे साहब ही तय करते हैं। अब मार्च नजदीक आ रहा है तो इनकी जिम्मेदारी बढ़ गई है। विभागों में घूम-घूमकर पता कर रहे हैं कि किसे क्या चाहिए।

किस बाबू को फाइल रखने में दिक्कत हो रही है, किसके सेक्शन में जेरोक्स मशीन नहीं है, पता कर रहे हैं। मांग करने की नसीहत भी दे रहे हैं ताकि खरीदारी का रास्ता साफ हो सके। जो भी होना है मार्च में होना है। इसके बाद मौका मिले या न मिले। हाल ही में राज्य के मुखिया ने ऑफिस को चकाचक करने का सख्त आदेश दे दिया था। इस बहाने भी खूब खरीदारी हुई थी।

झटके झेल रहा विभाग

सचिवालय में कार्मिक विभाग एक ऐसा केंद्र है जहां से सभी अन्य विभागों के लिए नीतियां तय होती हैं। लेकिन विभाग फिलहाल झटके झेल रहा है। मामला दरअसल यह है कि कुछ खबरें आते-जाते लीक हो जाती हैं और इन खबरों को रोकने के लिए कोई तरीका काम नहीं आ रहा है। डांट-फटकार हुई तो एक-दो दिन शांति रहती है और फिर वही बात। अब नया हंगामा खड़ा हुआ है मुख्यमंत्री के सचिव के नाम को लेकर चल रही चर्चाओं से।

हाकिम काम तो कर रहे हैं लेकिन चर्चाओं से नाराज हैं। समाचार पत्रों में सूचना लीक होने को सही नहीं मानते। आनन-फानन में जांच दल का गठन कर दिया गया। डरता क्या ना करता। पूरा विभाग मीडियावालों से दूरी बरत रहा है और लोगों ने तो अपने मोबाइल से कई सज्जनों के नंबर तक उड़ा दिए हैं। हालांकि यह हाल लंबे समय तक नहीं रहेगा।


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