जल संचयन अभियान को जनांदोलन की दरकार
तेजी से घटते भूगर्भ जल स्तर ने पूरी दुनिया की बेचैनी बढ़ा दी है।
तेजी से घटते भूगर्भ जल स्तर ने पूरी दुनिया की बेचैनी बढ़ा दी है। झारखंड भी उसका एक हिस्सा है। वनों से आच्छादित ऐसा प्रदेश जहां औसतन 1100 से 1200 मिलीलीटर वर्षा होती हो, वहां गहराता जल संकट निश्चित तौर पर चिंतनीय है। अलबत्ता जल संचयन और जलस्रोतों के संरक्षण को लेकर पूर्व की अपेक्षा लोगों में जागरूकता बढ़ी है। इससे इतर जल संरक्षण के इस अभियान को जनांदोलन का स्वरूप देने की दरकार है। पानी हर आम और खास की आवश्यकता है। ऐसे में समेकित प्रयास से ही इस समस्या से निजात मिल सकती है। मौजूदा जल संकट की वजह, सरकार के स्तर से किए जा रहे प्रयास और इससे जुड़े अन्य कई पहलुओं पर राज्य के नगर विकास एवं आवास मंत्री सीपी सिंह ने अपने विचार दैनिक जागरण के साथ साझा किए। प्रस्तुत है सीनियर कॉरेस्पोंडेंट विनोद श्रीवास्तव के साथ उनकी हुई बातचीत के मुख्य अंश - आपकी नजर में झारखंड में गहराते जल संकट की मूल वजह क्या है?
- देखिए यह समस्या अचानक उत्पन्न नहीं हुई। जब हमारे पास किसी चीज की बहुलता होती है तो हम उसकी कद्र नहीं करते। लिहाजा बाद में पछताना पड़ता है। झारखंड की भौगोलिक संरचना कुछ ऐसी है कि वर्षा जल का 80 फीसद से अधिक हिस्सा बह जाता है। सहजता से वह जमीन में नहीं जाता। इधर हाल के वर्षो में कई कस्बाई इलाकों का शहरीकरण हो गया। जब शहरों की आबादी बढ़ी, लोगों ने अपने हिसाब से भूगर्भ जल का दोहन शुरू कर दिया। दोहन की तुलना में उसे रीचार्ज नहीं किया जा सका। हम कह सकते हैं कि भूगर्भ जल का वैज्ञानिक तरीके से दोहन नहीं किए जाने का खामियाजा हमें उठाना पड़ रहा है। बहुमंजिली इमारतों का प्रचलन, सिमटते वन क्षेत्र आदि का भी भूगर्भ जलस्तर पर प्रतिकूल असर पड़ा है। अच्छी वर्षा और वन क्षेत्र के बावजूद ऐसी स्थिति उत्पन्न क्यों हुई?
- कहीं न कहीं एक बड़ी आबादी को अपनी दूरदर्शिता की कमी का दंश झेलना पड़ रहा है। विकास के नाम पर जितने पेड़ काटे गए, उसकी तुलना में पौधरोपण नहीं हुआ। अच्छी वर्षा तो होती रही, परंतु उसे रोकने का उचित प्रबंधन नहीं हुआ। पर्यावरण असंतुलित होगा तो परेशानियां बढ़ना स्वभाविक है। जल के संदर्भ में झारखंड के भविष्य को लेकर आपका नजरिया क्या है?
- देखिए जिस रफ्तार से भूगर्भ जल स्तर में गिरावट दर्ज की जा रही है, अगर हम अब भी नहीं चेते तो भविष्य पानी के मामले में संकटों से घिरा होगा। इससे इतर अगर हम सकारात्मक सोच के साथ पानी बचाने का संकल्प ले लें तो इस संकट को बहुत हदतक टाला जा सकता है। पानी की रिसाइक्लिंग कर इसका बहुद्देश्यीय उपयोग, अधिक से अधिक पौधरोपण, जलाशयों का संरक्षण, वाटर हार्वेस्टिंग प्लांट, कम से कम भूगर्भ जल का दोहन आदि उपायों से तस्वीर बदली जा सकती है। सरकार के स्तर से जल संरक्षण को लेकर जारी प्रयास क्या पर्याप्त हैं? आप नगर विकास एवं आवास विभाग के मंत्री है, विभाग इस दिशा में क्या कर रहा है?
- देखिए आपके प्रयास बेहतर होने चाहिए तो उसका परिणाम बेहतर होगा ही। सरकार जल संरक्षण की दिशा में योजनाबद्ध तरीके से काम कर रही है। ग्रामीण विकास, भवन निर्माण, जल संसाधन, वन एवं पर्यावरण, स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता, पेयजल एवं स्वच्छता विभाग अपने-अपने हिस्से की जवाबदेही निवर्हन कर रहा है। जलशक्ति अभियान के उद्देश्यों को धरातल पर उतारने के निमित्त विभागीय कंवर्जन पर कूप, डोभा, तालाबों का निर्माण और जीर्णोद्धार, पौधरोपण, रिचार्ज पिट आदि निर्माण का कार्य जारी है। बोरा बांध, चेकडैम, कंटूर आदि बनाए जा रहे हैं। जहां तक नगर विकास एवं आवास विभाग की बात है उसने एक निश्चित आकार वाले आवासों के निर्माण पर वाटर हार्वेस्टिंग अनिवार्य कर दिया है। ऐसा नहीं होने पर उसका नक्शा पास नहीं होगा। तालाबों के कैचमेंट एरिया को खोला जा रहा है, कंक्रीट की चहारदीवारी पर रोक लगा दी गई है। जहां ऐसी संरचनाएं पहले से हैं, वहां सुरंग बनाकर वर्षा जल को पहुंचाया जा रहा है। जल संरक्षण व संचयन के ऐसे कई उपाय किए जा रहे हैं। स्थितियां कैसे बदलेगी? जल संरक्षण में हमारी और आपकी भूमिका क्या हो?
- जिन परिस्थितियों की वजह से यह स्थिति उत्पन्न हुई है, उसे दूर करने का ईमानदार प्रयास हो। जो गलती हमसे और आपसे हुई, वह गलती भावी पीढ़ी न दोहराए। उन्हें जल की महत्ता बताएं। अधिक से अधिक पेड़ लगाएं। हम और आप बस अपने-अपने हिस्से की जवाबदेह निभाएं, परिस्थितियां अनुकूल होती चली जाएंगी।
---