Move to Jagran APP

वार्ली आर्ट ने सिल्की बना दी बुनकरों की जिंदगी..

वार्ली आर्ट के साथ सिल्क के प्रयोग को काफी सराहना मिल रही है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 25 Aug 2018 02:39 PM (IST)Updated: Sat, 25 Aug 2018 02:39 PM (IST)
वार्ली आर्ट ने सिल्की बना दी बुनकरों की जिंदगी..
वार्ली आर्ट ने सिल्की बना दी बुनकरों की जिंदगी..

रांची, सुरभि अग्रवाल। सिल्क हमेशा से लोगों की पहली पसंद रही है। मगर ट्रेंड फॉलो न कर पाए तो बात नहीं बनती। परंपरागत सिल्क का गढ़ गोड्डा के गांव भगैया के रूपक ने जरा सा ट्रेंड क्या बदला व्यवसाय को पर लग गए।

loksabha election banner

आज करीब डेढ़ हजार परिवारों में खुशहाली आ गई। वार्ली आर्ट और हैंड पेंटिंग को सिल्क पर क्या उकेरा लोगों का जीवन ही सिल्की हो गया। रूपक कहते हैं पहले घर चलाना मुश्किल था। आज सालाना तीन-चार लाख रुपये की बचत हो जाती है।

..और बदल गई दुनिया

झारखंड के गोड्डा जिले के भगैया गांव में रहने वाले रूपक कुमार मूलत: बुनकर हैं उनका पुश्तैनी कारोबार सिल्क के कपड़े बनाना है। कहते हैं कि डिजाइनर सिल्क के दौर में मटका सिल्क तथा रॉ सिल्क को लोगों के बीच लाना चुनौती भरा काम था।

बदलते दौर में पारंपरिक उत्पाद के कारण कारोबार बंदी के करीब पहुंच गया था। लोग हमसे रॉ सिल्क ले जाते थे परंतु हमारे बनाए कपड़े नही।

रूपक बताते हैं कि जब भी हम किसी मेले में जाते सभी सिल्क के स्टॉल में भीड़ होती परंतु हमारे उत्पाद नहीं बिक पाते थे। इसका कारण उनका आकर्षक डिजाइन था जो हमारे बनाए कपड़ों में नही था। मैंने उनके डिजाइन देखे और प्रेरणा लेते हुए कपड़ों में वार्ली आर्ट और हैंडमेड पेंटिंग की शुरुआत की।

दूसरों को किया तैयार

करीब चार साल पहले की बात है अपने लोगों के साथ महाराष्ट्र गए। वार्ली आर्ट और हैंड पेंटिंग का हुनर सीखने के बाद अपने द्वारा बनाए सिल्क के कपड़ों पर उकेरना शुरू किया। बस मेले और बाजार में उनके द्वारा तैयार सिल्क की मांग तेज हो गई।

महाराष्ट्र प्रशिक्षण लेने गए और लोग तो बाहर चले गए रूपक अपने गांव वापस लौट गए। वहीं काम शुरू किया। मांग बढ़ी तो दूसरों को भी वार्ली आर्ट और हैंड पेंटिंग की ट्रेनिंग दे माल तैयार करवाने लगे। मांग के साथ उत्पादन, बिक्री और आमदनी बढ़ने लगी।

लोगों ने सराहा, पसंद को तवज्जो :

रूपक कुमार ने बताया कि झारखंड के सिल्क पर महाराष्ट्र की वार्ली आर्ट ने लोगों को लुभाया। हमारे माल को सराहा। दिल्ली में गोड्डा से सिल्क के काफी कपड़े जाते हैं। मेलों में भी मांग बढ़ी है।

आज हम अपने गांव में इसे अन्य लोगों को भी सिखा रहे है। करीब 1500 परिवारों का रोजगार फिर से पटरी पर आ गया है। हम कोकून लाने, धागा बनाने कपड़ा तैयार करने के साथ खुद डिजाइनर कपड़े तैयार कर रहे हैं। इसने कारोबार को तरक्की दी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.