विहिप के वीरेंद्र विमल बोले, श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के नायक थे अशोक सिंहल
Jharkhand Update News जबसे वे श्रीराम जन्मभूमि मुक्त्ति अभियान के नायक बने वे सतत संघर्ष की अग्रिम पंक्ति में रहे। वे सेनापति थे महानायक थे। पीछे रहकर निर्देश देने के बदले उन्होंने सामने से कार्यकर्त्ताओं का नेतृत्त्व किया।
रांची, [संजय कुमार]। विश्व हिंदू परिषद के झारखंड बिहार के क्षेत्र मंत्री वीरेंद्र विमल ने विहिप के अंतरराष्ट्रीय महामंत्री रहे अशोक सिंहल की पुण्यतिथि पर दैनिक जागरण से संस्मरण साझा करते हुए कहा कि 17 नवंबर श्रीरामजन्मभूमि आंदोलन के पुरोधा हिंदू हृदय सम्राट अशोक सिंहल की पांचवीं पुण्यतिथि है। गगन सदृश ऊंचाई और महासागर सी गहराई लिए उनका हिमालय जैसा विराट व्यक्तित्त्व निरंतर अहर्निश हिंदू धर्म और मां भारती के रक्षण, पोषण और संवर्द्धन में मन-वचन और कर्म से कार्यरत रहता था।
जबसे वे श्रीराम जन्मभूमि मुक्त्ति अभियान के नायक बने, वे लगातार संघर्ष की अग्रिम पंक्ति में रहे। वे सेनापति थे, महानायक थे। पीछे रहकर निर्देश देने के बदले उन्होंने सामने से कार्यकर्त्ताओं का नेतृत्त्व किया। इसी कारण आंदोलन के प्रत्येक चरण में उन्हें विजय ही विजय मिली। जब उन्होंने श्रीराम जन्मभूमि का ताला खोलने का आंदोलन चलाया तो ताला खुल गया। जब शिलान्यास करने का निर्णय लिया, तो निश्चित तिथि में निर्धारित समय पर पूर्व निर्धारित स्थान पर समस्त बाधाओं की छाती पर पैर रखकर शिलान्यास कार्यक्रम संपन्न कराया।
जब मुलायम सिंह यादव ने समूची अयोध्या को छावनी में बदल दिया था और चुनौती दी थी कि अयोध्या में परिन्दा भी पर नहीं मार सकता है, तब अशोक सिंहल सरकारी घेराबंदियों को भेदकर अयोध्या पहुंच गए थे। कारसेवकों का नेतृत्त्व करते हुए पुलिस के द्वारा लाठीचार्ज में उनका सिर फट गया और वे लहुलूहान हो गए। परंतु कार्यक्रम में कोई परिवर्त्तन नहीं किया।
30 अक्टूबर 1990 को कारसेवकों ने अपने महानायक के शौर्य से प्रेरणा लेकर अपने अप्रतिम पराक्रम का प्रदर्शन किया और रामजन्मभूमि पर भगवा लहरा दिया। इससे आक्रोशित हिंदूघाती मुलायम ने निहत्थे कारसेवकों को एक बंद गली में ढकेलकर अंधाधुंध गोलियां चलवाई। कोलकाता के दो युवा भाई शरद कोठारी एवं रामकुमार कोठारी सहित सैकड़ों रामभक्त कारसेवक इस बर्बरता के शिकार हो गए।
श्रीरामजन्मभूमि आंदोलन को कुचल डालने के उद्देश्य से किए गए इस प्रबल पाश्विक प्रहार के समक्ष भी अशोक सिंहल ने न तो अपना धैर्य खोया और न ही आंदोलन समाप्त किया। त्वरित निर्णय लेते हुए उस महापुरुष ने संपूर्ण भारत में उन महान आत्माओं के श्रद्धांजलि हेतु उनके अस्थि कलश भेजे।