Janmashtami: श्रीकृष्ण के नाम पर झारखंड के शहर का नाम पड़ा श्रीवंशीधर नगर, ऐसे अवतरित हुए भगवान
Janmashtami 2022 झारखंड का इकलौता शहर है श्री वंशीधर नगर। गढ़वा जिले में पड़ता है। इस शहर का नाम भगवान श्रीकृष्ण के नाम पर झारखंड सरकार ने रखा है। इस मंदिर की कहानी बेहद दिलचस्प है। यहां भगवान के अवतरण की कहानी सुनकर दंग रह जाएंगे।
रांची, डिजिटल डेस्क। History of Shri Vanshidhar Nagar Temple भगवान श्रीकृष्ण का शुक्रवार को जन्म दिन है। झारखंड का कोना-कोना इस समय भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिन मनाने के लिए उत्सवी रंग में सराबोर है। प्राय: सभी जिलों में छोटे-बड़े कृष्ण मंदिरों को सजाया गया है। गुरुवार शाम से यहां चहल-पहल बढ़ जाएगी। मंदिर चकाचक रोशनी से रंगीन नजर आएंगे। आज हम बात कर रहे हैं झारखंड के एक ऐसे कृष्ण मंदिर के बारे में जिसको लेकर कई तरह की लोक मान्यताएं प्रचलित हैं। यह मंदिर झारखंड के गढ़वा जिले में है। यहां आधी रात घंट और घड़ियाल की आवाज गूंजेगी और भगवान श्रीकृष्ण जन्म लेंगे। आस्था का सैलाब उमड़ेगा और मंदिरों में जय श्रीकृष्ण का स्वर गूंजेंगा।
बांकी नदी तट पर स्थित है यह प्राचीन मंदिर
कहने के लिए तो जन्माष्टमी का उत्सव उत्तर प्रदेश के मथुरा में सबसे शानदार होता है, लेकिन झारखंड भी पीछे नहीं है। यहां के श्रीकृष्ण मंदिरों में भी वही उत्साह नजर आता है जो मथुरा में दिखता है। गढ़वा जिले के श्री बंशीधर नगर में स्थित है श्री बंशीधर मंदिर। यह बांकी नदी तट पर प्राचीन मंदिर है। झारखंड में यह मंदिर कुछ ज्यादा ही मायने रखता है। क्योंकि इस मंदिर को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं। यहां भगवान श्रीकृष्ण कमल के फूल पर विरजमान हैं। मंदिर में करीब पांच फीट का शेषनाग हैं। इनके फन पर 24 पंखुड़ियों का विशाल कमल फूल है। इसी कमल फूल पर भगवान श्रीकृष्ण मुरली बजाते विराजमान हैं।
बांसुरी और छतरी चुराने वाले हो गए अंधा
इस मंदिर को लेकर लोग कहानियां सुनाते हैं। कहा जाता है कि रानी को भगवान ने स्वप्न दिया। इसके बाद खोदाई की गई तो भगवान की प्रतिमा मिली। ऐसा दावा है कि यह प्रतिमा मराठा शासकों के काल में बनवाई गई है। संभवत: वैष्णव धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए मराठा शासकों ने यह पहल की थी। एक कहानी यह भी प्रचलित है कि वर्ष 1930 में कुछ लोगों ने इस मंदिर में चोरी की। भगवान श्रीकृष्ण की बांसुरी और छतरी चुरा ले गए। लोग ऐसा दावा करते हैं कि चोरी करने वाले लोग अंधे हो गए। इसके बाद डरकर उन्होंने अपना अपराध कुबूल कर लिया। इसके बाद यहां के राज परिवार ने सोने की बांसुरी और छतरी का निर्माण कराया। मंदिर को दान किया। आज भी यहां श्रीकृष्ण सोने की बांसुरी बाजते नजर आएंगे।
रानी शिवमणि को भगवान ने दिया स्वप्न
एक कथा यह भी प्रचलित है कि यहां के राजा भवानी सिंह की विधवा पत्नी रानी शिवमणि देवी श्रीकृष्ण की भक्त थीं। वह हर जन्माष्टमी के अवसर पर व्रत रखती थीं। भगवान श्रीकृष्ण को बहुत प्यार करती थीं। हमेशा उनकी ही भक्ति में लीन रहा करती थीं। एक दिन भगवान श्रीकृष्ण ने रानी शिवमणि देवी को दर्शन दिया। कहा- मुझे नगर उंटारी नामक स्थान पर ले चलो। रानी ने तुंरत फैसला लिया। अपने सैनिकों के साथ नगर उंटारी की ओर चल पड़ीं। करीब बीस किलोमीटर सफर करने के बाद उत्तर प्रदेश के शिवपहरी पहाड़ी पर पहुंच गईं। यहां स्वयं उन्होंने खोदाई की। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा बरामद हुई। उस प्रतिमा को लेकर नगर उंटारी पहुंचीं। वह जैसे ही हाथी पर सवार होकर नगर गढ़ के सिंह दरवाजे पर पहुंचीं। हाथी वहीं बैठ गया। इसके बाद श्रीकृष्ण की प्रतिमा वहीं रखकर अनुष्ठान शुरू कर दिया गया। प्रतिमा वहीं स्थापित कर दी गई। बाद में बनारस से राधारानी की प्रतिमा मंगाई गई। अष्ठधातु की यह प्रतिमा भी भगवान श्रीकृष्ण के साथ स्थापित कर दी गई। मंदिर के गुंबद पर 1885 वर्ष अंकित है। इससे इसकी प्राचीनता का अंदाजा लगाया जा सकता है।
मंदिर के नाम पर शहर का रखा गया नाम
अब यह मंदिर गढ़वा जिले की पहचान है। झारखंड में इसे अद्वितीय मंदिर माना जाता है। लोग बताते हैं कि 1960 से 70 के बीच बिरला ग्रुप ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। इसके बाद इस मंदिर की भव्यता और निखर गई। यहां भगवान की प्रतिमा इतनी सुंदर है कि देखते ही लोग मोहित हो जाते हैं। इसकी चमक आज भी पहले जैसी ही है। इसी मंदिर के नाम पर झारखंड सरकार ने इस शहर का नाम श्री बंशीधर नगर कर दिया था। अब यही इस शहर की पहचान है। यहां के लोग सुबह शाम श्रीकृष्ण और राधा रानी की पूजा से ही अपने दिन की शुरुआत करते हैं।