...और नक्सल प्रभावित क्षेत्र में होने लगी सब्जी की खेती, युवाओं के साथ बुजुर्ग भी आए आगे
Gumla News Jharkhand Samachar विजय उरांव पहले सिंंगल विंंडो सेंटर में काम करते थे। यह बंद हो गया तो नौकरी भी छूट गई। फिर कृषि विज्ञान केंद्र विकास भारती बिशुनपुर के संपर्क में आए। यहां प्रशिक्षण लेकर तीन एकड़ में सब्जी की खेती करने लगे।
गुमला, [गुरदीप राज]। यह कहानी है आदिवासी युवक विजय उरांव की, जो नक्सल प्रभावित क्षेत्र व पहाड़ों से घिरे गुमला जिले के बिशुनपुर के सुदूर भंवरगानी गांव में रहते हैं। इस गांव की उन्होंने सूरत बदल दी है। पहले यहां सब्जी की खेती नहीं होती थी। अब इनके प्रयास से प्रेरित होकर बड़ी संख्या में युवा सब्जी की खेती करने लगे हैं। हर हाथ को रोजगार मिल गया है। दरअसल, हुआ यह कि विजय उरांव पहले सिंंगल विंंडो सेंटर में काम करते थे। यह बंद हो गया तो नौकरी भी छूट गई। फिर कृषि विज्ञान केंद्र विकास भारती बिशुनपुर के संपर्क में आए। यहां प्रशिक्षण लेकर तीन एकड़ में सब्जी की खेती करने लगे।
लौकी, कोहड़ा, मिर्च, बैगन आदि की फसल की उपज होने लगी। विजय की दुनिया बदलती चली गई। इसके बाद उन्होंने गांव के अन्य युवाओं को भी इसके लिए प्रेरित किया। पढ़ाई-लिखाई छोड़ कर घर बैठे युवाओं को उनकी योजना पसंद आई। वह भी सब्जी की खेती करने लगे। कभी गांव के युवा नक्सली के भय से व रोजगार की तलाश में गांव से पलायन करते थे। अब जब उनलोगों को पता चला कि उनके गांव में खेती शुरू हो गई है और गांव के ही युवा ने इसकी शुरुआत की है तो उस गांव के खेतों में सब्जी की फसल लहलहाने लगी।
किसान क्लब का निर्माण होगा गांव में
विजय उरांव अपने गांव के युवाओं को एक मंच के नीचे लाना चाहते हैं, ताकि बेरोजगार युवाओं को अपने ही गांव में रोजगार मिले। इसके साथ ही इस क्लब के माध्यम से गांव के विकास को लेकर भी युवाओं द्वारा पहल किया जा सके। इसके लिए विजय किसान क्लब का गठन करने जा रहे हैं। इस क्लब में युवाओं के साथ-साथ बुजुर्गों को भी जोड़ा जाएगा, ताकि गांव के विकास को लेकर बुजुर्गों की राय भी ली जा सके।
तीन एकड़ खेत में लहलहा रही फसलें
विजय ने अपने तीन एकड़ खेतों में 300 आम के पौधे, 20 अमरुद के पौधे, 25 शरीफा के पौधे, 25 सागवान के पौधे, सहित सब्जियों के पौधे लगाए हैं। खेत में दर्जन भर लोगों को विजय ने रोजगार दिया है। विजय ने अपने खेत में करीब दो लाख रुपये पौधों में खर्च कर दिए हैं।
बंजर जमीन को बनाया खेती योग्य
भंवरगानी गांव में लोग खेती किसानी से दूर रहते थे। मजदूरी करने में ही विश्वास रखते थे। इस कारण ज्यादातर युवा गांव से पलायन कर चुके थे और खेत बंजर हो चले थे। विजय की नौकरी छूटने के बाद उसने अपने बंजर खेतों को पहले उपजाऊ बनाया। खेत के पत्थर व चट्टान को अपनी मेहनत कर खेत से हटाया और फिर खेत की सिंचाई शुरू की। जब खेत पूरी तरह से उपजाऊ हो गई तो खेत में सब्जी की फसल उगाई।
'विजय उरांव क्षेत्र के लिए एक उदाहरण के तौर पर देखे जा रहे हैं क्योंकि इस क्षेत्र में पहले सब्जी ना के बराबर होती थी लेकिन अब खेतों में सब्जियां लहलहा रही है। इसे व्यवसाय के रूप में शुरू करने से अन्य युवाओं का रुझान भी खेती की तरफ बढ़ रहा है जो कि इस क्षेत्र के लिए काफी सकारात्मक पहल है।' -संजय कुमार, वरीय वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र गुमला।
'मेरी नौकरी छूट जाने के बाद बेरोजगारी की समस्या सामने आ गई थी। खुद के प्रयास व विकास भारती बिशुनपुर के सहयोग से मैंने अपने खेतों में सब्जी की फसल लगानी शुरू की और गांव से पलायन कर चुके युवाओं को खेती-किसानी की ओर मोड़ना शुरू किया। अब गांव के ज्यादातर युवा खेती कर रहे हैं। पहले भंवरगानी गांव में खेती करने से युवा परहेज करते थे लेकिन अब खेती किसानी की ओर उनका झुकाव होने लगा है। जल्द ही किसान क्लब का गठन कर गांव के सभी युवाओं को इससे जोड़ने का काम किया जाएगा।' -विजय उरांव, युवा किसान।