झारखंड में पोषाहार घोटाला; एक योजना, दो विरोधाभासी रिपोर्ट; तीन स्तर पर घपला
केंद्र सरकार ने राज्य सरकार के मुख्य सचिव को पूरे मामले की जांच कर रिपोर्ट देने को कहा है।
रांची, विनोद श्रीवास्तव। इसे कर्तव्य के प्रति लापरवाही कहें, या डिलीवरी मैकेनिज्म की असफलता या फिर सिस्टम का पेच। एक ही वित्तीय वर्ष की एक ही योजना की दो रिपोर्ट, जिसमें लाभुकों की संख्या और खर्च की गई राशि में लाखों-करोड़ों का घालमेल है। मामला केंद्र की महत्वाकाक्षी योजनाओं में से एक आगनबाड़ी केंद्रों से जुड़ा है। यहां बच्चों, गर्भवती एवं धातृ महिलाओं के लिए दिए जाने वाले पूरक पोषाहार में व्यापक गड़बड़ी उजागर हुई है।
खर्च के ब्योरे और लाभुकों में असमानता : राज्य सरकार के महिला, बाल विकास एवं सामाजिक सुरक्षा विभाग की ओर से भेजे गए वित्तीय वर्ष 2015-16 के खर्च के ब्योरे कई आशकाओं को जन्म देती हैं। लाभार्थियों के मामले में तीन स्तर पर तैयार की गई रिपोर्ट के अलग-अलग आकड़े भी चौंकाने वाले हैं। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने खुद यह गड़बड़ी पकड़ी है। मंत्रालय ने इस मामले में राज्य सरकार के मुख्य सचिव को व्यक्तिगत तौर पर पहल करने को कहा है। साथ ही वित्तीय वर्ष 2012-13 से 2017-18 तक की ऑडिट एजी से कराने तथा रिपोर्ट केंद्र को भेजने से संबंधित पत्र लिखा है।
अलग-अलग रिपोर्ट पर जताई आपत्ति : मुख्य सचिव सचिवालय को मंत्रालय से प्राप्त पत्र के अनुसार महिला, बाल विकास एवं सामाजिक सुरक्षा विभाग ने मंत्रालय को पिछले दिनों पत्र लिखा था। पत्र में वित्तीय वर्ष 2015-16 में 57446.15 लाख रुपये (अत्यधिक खर्च शून्य) खर्च होने की बात कही गई थी। विभाग की ओर से इस मामले में फिर एक रिपोर्ट भेजी गई, जिसमें वास्तविक खर्च 57780.92 लाख रुपये के अलावा 7873 लाख रुपये अत्यधिक खर्च होने की बात शामिल थी। मंत्रालय ने विभाग की माग पर इस मद में 7705.62 लाख रुपये भेज तो दिया, परंतु खर्च के ब्योरे में विरोधाभास पर आपत्ति जताते हुए एजी स्तर से प्रमाणित खर्च का ब्योरा देने का सख्त निर्देश दिया।
एजी ने पकड़ी बड़ी वित्तीय अनियमितता : पत्र के मुताबिक महिला, बाल विकास एवं सामाजिक सुरक्षा विभाग ने इस बीच एजी स्तर से प्रमाणित वित्तीय वर्ष 2012-2013 से लेकर 2016-17 तक की रिपोर्ट मंत्रालय को समर्पित किया। संबंधित रिपोर्ट में एजी ने बड़ी वित्तीय अनियमितता की ओर इशारा किया। रिपोर्ट में 42.67 करोड़ रुपये की गड़बड़ी का हवाला दिया गया। कहा गया कि संबंधित राशि के खर्च का ब्योरा न तो कैशबुक में दर्ज है, न ही इससे संबंधित किसी तरह का वाउचर ही मिला और न तो कोषागार में राशि वापस जमा करने का प्रमाण ही मिला।
चतरा में 42 करोड़ की निकासी, सरायकेला-खरसावां ने नहीं दिया रेकॉर्ड : एजी ने अपनी रिपोर्ट में चतरा में संचालित जिला समाज कल्याण पदाधिकारी (डीएसडब्ल्यूओ) के कार्यालय का हवाला दिया है, जिसमें कहा गया है कि अगलगी में यह कार्यालय पूरी तरह से जल गया था, जिससे उसकी ऑडिट नहीं हो सकी। वित्तीय वर्ष 2012-2013 से लेकर 2016-17 के बीच इस कार्यालय ने 42.61 करोड़ रुपये की निकासी की। इससे इतर सरायकेला-खरसावा स्थित डीएसडब्ल्यूओ कार्यालय की ओर से वित्तीय वर्ष 2012-2013 से 2014-15 (दिसंबर 2014) तक का कोई रेकॉर्ड उपलब्ध नहीं कराया गया। एजी ने अपने निष्कर्ष में 2012-2013 से लेकर 2016-17 तक 206.46 लाख रुपये की अत्यधिक निकासी की बात कही है, जिसे 2017-18 में फिर से जारी किए जाने की पुष्टि भी की है।
आंकड़े का खेल, दो वर्ष में न घटी न ही बढ़ी लाभुकों की संख्या मंत्रालय ने महिला, बाल विकास एवं सामाजिक सुरक्षा विभाग की ओर से भेजी गई (आठ मई 2018 को) लाभुकों की संख्या से संबंधित रिपोर्ट में बड़ी गड़बड़ी पकड़ी है। वित्तीय वर्ष 2014-15 से 2016-17 तक की इस रिपोर्ट में लाभुकों की संख्या क्रमश: 3570673, 3931325 तथा 3969464 बताई गई है। विभाग की ओर से ही सौंपे गए खर्च के ब्योरे वाली रिपोर्ट में यह संख्या क्रमश: 5635668, 4000186 तथा 4000186 बताई गई। इससे इतर मंत्रालय ने जब इसकी पड़ताल समेकित बाल विकास परियोजना की रैपिड रिपोर्टिंग सिस्टम (आइसीडीएस-आरएसएस) के तहत की तो यह संख्या क्रमश: 3546743, 3621749 तथा 3978674 पाई गई। मंत्रालय ने लाभुकों की संख्या में लाखों के अंतर के साथ-साथ वित्तीय वर्ष 2015-16 और 2016-17 में लाभुकों की समान संख्या (4000186) होने पर भी कड़ी आपत्ति जताई है।