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झारखंड सचिवालय में सड़ रही 50 करोड़ की गाड़ियां, नई के फेर में छोड़ देते हैं मंत्री-अफसर

झारखंड के मंत्री और अफसर नई गाड़ियों के फेर में महंगी चलती गाड़ियों को धूल फांकने के लिए छोड़ देते हैं। सचिवालयों में करीब 50 करोड़ की सड़ रही हैं।

By Edited By: Published: Wed, 22 Aug 2018 09:40 AM (IST)Updated: Wed, 22 Aug 2018 05:05 PM (IST)
झारखंड सचिवालय में सड़ रही 50 करोड़ की गाड़ियां, नई के फेर में छोड़ देते हैं मंत्री-अफसर
झारखंड सचिवालय में सड़ रही 50 करोड़ की गाड़ियां, नई के फेर में छोड़ देते हैं मंत्री-अफसर

रांची, नीरज अम्बष्ठ। गाड़ियां महंगी हों या सस्ती, अपनी हो तो उनकी हिफाजत बहुत जरूरी है। झारखंड के मंत्री और अफसर भी निजी गाड़ियों को सहेजने-चमकाने में किसी से पीछे नहीं रहते। लेकिन जब बात 'सरकारी' हो तो यह बातें बेमानी हो जाती हैं। हम और आप जहां अपनी खटारा गाड़ियों को भी सहेजने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते। वहीं, राज्य के मंत्री-अफसर चालू गाड़ियों को भी एक झटके में सड़ने के लिए छोड़ देते हैं। राज्य सरकार के विभिन्न विभागों में ऐसी गाड़ियों की भरमार है। जो चालू हालत में हैं, लेकिन मंत्रियों और साहबों की बेरुखी की शिकार हो यूं ही सड़ रही हैं। अच्छी हालत में होते हुए भी करोड़ों की कई गाड़ियां खटारा हो गईं। सचिवालयों में करीब 50 करोड़ की सड़ रही हैं। 

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अधिसंख्य गाड़ियां बनीं कबाड़ : स्थिति यह है कि अधिसंख्य अब सिर्फ कबाड़ में बिकने लायक रह गई हैं। नेपाल हाउस व प्रोजेक्ट भवन स्थित सचिवालयों व विभिन्न कार्यालयों में एंबेसडर, टाटा सफारी, इंडीवर, मार्शल या बोलेरो ऐसी तमाम खटारा गाड़ियां धूल फांकती देखी जा सकती हैं। जिनकी खरीद 2005 से 2014 के बीच हुई थी। नई सरकार बनने के बाद सभी मंत्रियों के लिए फा‌र्च्यूनर खरीदे गए तो पुरानी इंडीवर गाड़ियां सड़ने के लिए छोड़ दी गईं। जबकि मंत्रियों के ड्राइवर कहते हैं कि ये गाड़ियां हल्की मरम्मत कर चलाई जा सकती थीं। हद तो यह कि करोड़ों खर्च कर खरीदी गई इन गाड़ियों की सरकार ने नीलामी तक की जहमत भी नहीं उठाई।

नेपाल हाउस में पड़ी हैं 25 गाड़ियां, प्रोजेक्ट भवन में 50 से अधिक : कभी मंत्री-अफसर के लिए शान समझी जाने वालीं एंबेसडर कबाड़ का सर्वाधिक दंश झेल रही हैं। नेपाल हाउस सचिवालय में ही 25 गाड़ियां (मार्शल, एंबेसडर) बेकार पड़ी हुई हैं। इनमें कई गाड़ियां देखने से ही अच्छी हालत में लग रही हैं। मंत्रियों के एस्कार्ट में शामिल कई अच्छी गाड़ियां भी सचिवालय में सड़ रही हैं। शिक्षा विभाग के पीछे भी कई ऐसी गाड़ियां सड़ रही हैं।

कृषि मंत्री को चाहिए टाटा सफारी का टॉप मॉडल: राज्य सरकार ने वर्ष 2015 में ही सभी मंत्रियों को नई गाड़ियां फा‌र्च्यूनर के रूप में दी हैं। उनकी गाड़ियां फिलहाल चकाचक हैं। इसके बावजूद कृषि मंत्री ने टाटा सफारी के टॉप मॉडल की मांग कैबिनेट से की है।

केंद्र से मिले वाहन का रजिस्ट्रेशन तक नहीं : केंद्र द्वारा दिए गए एक वाहन का उपयोग तक नहीं हुआ। इस गाड़ी का रजिस्ट्रेशन भी नहीं हो सका। वर्षों पूर्व यह गाड़ी स्वास्थ्य विभाग को आवंटित हुई थी, जिसे रांची के अपर मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी को दिया गया था। यह गाड़ी वैसे ही नेपाल हाउस में पड़ी रह गई। बड़े वाहन या सामान उठाने वाली यह गाड़ी स्वास्थ्य विभाग को क्यों दी गई, इसे कोई बताने वाला भी नहीं है।

आकस्मिकता फंड से खरीदी गईं गाड़ियां: एक ओर चालू गाड़ियां सड़ने के लिए सचिवालय में छोड़ दी गई, वहीं दूसरी ओर 2016-17 में आकस्मिकता फंड से साहबों के लिए बेधड़क गाड़ियां खरीदी गईं। जबकि आकस्मिकता फंड का उपयोग अति आवश्यक (गाड़ियों की खरीद कतई नहीं) न टालने लायक और अप्रत्याशित कायरें में ही होता है। इस पर महालेखाकार ने भी कड़ी आपत्ति की है।


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