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Tokyo Olympic 2020: तीरंदाजी का ऐसा जुनून की 3 साल में एक बार ही घर आई दीपिका, बचपन में पिता ने ऐसे पहचानी थी प्रतिभा

टोक्यो ओलिंपिक में दीपिका कुमारी को शुरू से ही पदक का प्रबल दावेदार माना जा रहा है। टीम स्पर्धा में निराशाजनक प्रदर्शन के बावजूद दीपिका को व्यक्तिगत स्पर्धा में पदक का दावेदार माना जा रहा है। दीपिका ने बहुत छोटे उम्र में ही अपनी प्रतिभा दिखा दी थी।

By Vikram GiriEdited By: Published: Wed, 28 Jul 2021 08:05 AM (IST)Updated: Wed, 28 Jul 2021 06:45 PM (IST)
Tokyo Olympic 2020: तीरंदाजी का ऐसा जुनून की 3 साल में एक बार ही घर आई दीपिका, बचपन में पिता ने ऐसे पहचानी थी प्रतिभा
Tokyo Olympic 2020: तीरंदाजी का ऐसा जुनून की 3 साल में एक बार ही घर आई दीपिका। जागरण

रांची [संजीव रंजन] । टोक्यो ओलिंपिक में दीपिका कुमारी को शुरू से ही पदक का प्रबल दावेदार माना जा रहा है। टीम स्पर्धा में निराशाजनक प्रदर्शन के बावजूद दीपिका को व्यक्तिगत स्पर्धा में पदक का दावेदार माना जा रहा है। दीपिका ने बहुत छोटे उम्र में ही अपनी प्रतिभा दिखा दी थी। वह आम को पत्थर मारकर तोड़ती थी। उसके अचूक निशाना को देख पिता शिवनारायण महतो ने 2005 में सरायकेला-खारसांवा में अर्जुन मुंडा व मीरा मुंडा द्वारा स्थापित तीरंदाजी प्रशिक्षण केंद्र में दाखिला करा दिया।

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यहां दीपिका ने लगभग दो साल तक प्रशिक्षण प्राप्त किया। 2007 में दीपिका जमशेदपुर में टाटा तीरंदाजी अकादमी द्वारा आयोजित ट्रायल में भाग ली और उसका चयन अकादमी के लिए हो गया। यहां से दीपिका ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। आधुनिक उपकरण व अच्छे प्रशिक्षकों के साथ काम करने का लाभ उसे मिला और उसकी प्रतिभा निखरती चली गई। तीरंदाजी के प्रति दीपिका का लग्न देखते ही बनता था। वह अभ्यास छोडऩा नहीं चाहती थी इसलिए तीन साल में वह सिर्फ एक बार अपने घर रांची गई थी। 2009 में कैडेट विश्व चैैंपियनशिप जीतने के बाद वह अपने घर गई थी। ।

2009 में दीपिका कुमारी ने 15 वर्ष की उम्र में अमेरिका के ओग्डेन में हुई 11वीं यूथ विश्व तीरंदाजी चैंपियनशिप जीती। 2009 विश्व कप में दीपिका ने डोला बनर्जी और बोम्बायला देवी के साथ महिला टीम रिकर्व इवेंट में स्वर्ण पदक जीता। कुछ महीने बाद चीन के ग्वांगझू में 2010 के एशियाई खेलों में दीपिका प्ले ऑफ में उत्तर कोरिया की क्वोन उन सिल से हार गई।

2012 में बनी विश्व की नंबर एक तीरंदाज

दीपिका कुमारी ने मई 2012 में तुर्की के अंताल्या में अपना पहला विश्व कप में स्वर्ण जीता था। इसी वर्ष वह विश्व तीरंदाजी रैंकिंग में नंबर एक बनी।

2012 के लंदन ओलंपिक में एमी ओलिवर से हारने के बाद उन्हें पहले दौर में बाहर होना पड़ा। कोलंबिया में आयोजित 2013 तीरंदाजी विश्व कप चरण तीन में दीपिका कुमारी ने स्वर्ण पदक जीता। दो महीने बाद तीरंदाजी विश्व कप में वह स्वर्ण पदक मैच में दक्षिण कोरिया की युंक ओके ही से हार गईं और उन्हें रजत पदक से संतोष करना पड़ा।

2014 में उसके प्रदर्शन में गिरावट आई जिस कारण भारतीय टीम उसका चयन नहीं हुआ। 2015 में दीपिका ने अपना पहला पदक विश्व कप के दूसरे चरण में जीता। उन्होंने व्यक्तिगत स्पर्धा में कांस्य पदक हासिल किया। बाद में उन्होंने कोपेनहेगन विश्व चैम्पियनशिप में लक्ष्मीरानी मांझी और रिमिल बुरुली के साथ रजत पदक जीता।  2016 में दीपिका कुमारी ने शंघाई में विश्व कप के पहले चरण में इतिहास रच दिया। उन्होंने रिकर्व इवेंट में की बो बे के (686-720) के विश्व रिकॉर्ड की बराबरी की। 2016 में वह रियो ओलिंपिक में भी खास प्रदर्शन नहीं कर सकी। 2017 जून में दीपिका ने संभावित 672 अंकों में से 720 स्कोर करके तीरंदाजी विश्व कप रैंकिंग राउंड जीता। पिछले महीने पेरिस में संपन्न विश्व कप के तीसरे चरण में दीपिका ने तीन स्वर्ण पदकों पर कब्जा जमाया। दीपिका ने मिश्रित, एकल व टीम स्पर्धा के स्वर्ण पर कब्जा जमाया।

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