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Jharkhand की 3 बेटियों ने लांच किया ISRO का लाइव रॉकेट

ISRO. इसरो के श्री हरिकोटा केंद्र से लाइव रॉकेट लांच करने का रोमांच लेकर झारखंड की तीन बेटियां रविवार को बेंगलुरु से रांची वापस पहुंची।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Sun, 26 May 2019 02:24 PM (IST)Updated: Tue, 28 May 2019 01:44 PM (IST)
Jharkhand की 3 बेटियों ने लांच किया ISRO का लाइव रॉकेट
Jharkhand की 3 बेटियों ने लांच किया ISRO का लाइव रॉकेट

रांची, जागरण संवाददाता। इसरो के श्री हरिकोटा केंद्र से लाइव रॉकेट लांच करने का रोमांच लेकर झारखंड की तीन बेटियां रविवार को बेंगलुरु से रांची वापस पहुंची। इसरो ने पहली बार यंग साइंटिस्ट प्रोग्राम की शुरुआत की है। इसमें देशभर से करीब 108 छात्र शामिल हुए। झारखंड से भी तीन यंग साइंटिस्ट को इसमें शामिल होने का मौका मिला।

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डीपीएस रांची की 9वीं का छात्रा धृति बर्णवाल, कस्तूरबा बालिका विद्यालय, जरीडीह, बोकारो की 12वीं की छात्रा रिंकी और कस्तूरबा बालिका विद्यालय धालभूमगढ़, सिंहभूम की मनातू पाणि 15 दिनों तक श्रीहरकिोटा में इसरो के केंद्र पर रहीं और स्पेस टेक्नोलॉजी, रॉकेट साइंस और एस्ट्रोनामी की बारिकियों को देखा-जाना।

इस साल से इसरो ने यंग साइंटिस्ट कार्यक्रम की शुरुआत की है। इसका मकसद 9वीं क्लास के बाद के स्कूली बच्चों को गर्मी की छुट्टी के दौरान स्पेस टेक्नोलॉजी और स्पेस में हो रहे नए रिसर्च के बारे में जानकारी देना है। इसके साथ ही इसरो कम उम्र में ही बच्चों की प्रतिभा की पहचान कर उनमें भविष्य के वैज्ञानिक की संभावना तलाशने में भी लगी है। प्रत्येक राज्य से इसमें तीन बच्चों का चयन किया जाता है।
चंद्रयाण को देखना धृति के लिए सबसे यादगार
झारखंड के मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव सुनील बर्णवाल और हाई कोर्ट की वकील रिचा संचिता की बेटी धृति बर्णवाल के लिए 14 मई से शुरू हुआ यह प्रोग्राम बेहद रोमांचक रहा। धृति ने बताया कि जिस चंद्रयान-2 को अभी देश के सामने नहीं लाया गया है, उसे देखना और उसके बारे में जानना इस पूरे मिशन का सबसे खास पहलू रहा। 26-27 बच्चों के ग्रुप ने प्रैक्टिकल और थ्योरी, दोनों की प्रैक्टिस की।
धृति ने बताया कि इसरो के पूर्व चेयरमैन कस्तूरीरंगन, राधाकृष्णन समेत इसरो के मौजूदा चेयरमैन के सीवान से उनलोगों की मुलाकात हुई। धृति ने दूसरे यंग साइंटिस्ट के साथ श्रीहरिकोटा के सभी लांचिंग पैड देखे। धृति हमेशा से ही रिसर्च में जाना चाहती हैं। इसरो से लौटने के बाद और स्पेस टेक्नोलॉजी को इतने करीब से जानने के बाद उन्होंने कहा कि अब तो उनका इरादा और भी पक्का हो गया है।
इंडियन और ग्रीक मेथोलॉजी में है धृति की रुचि
धृति की मां और सीनियर एडवोकेट रिचा संचिता ने बताया कि पहले तो पंद्रह दिनों तक बेटी के बाहर रहने को लेकर वो थोड़ा चिंतित थीं। लेकिन इसरो के प्रबंधन ने इतने शानदार इंतजाम किए थे कि जब भी उनकी बात धृति से होती थी, वो बस तारीफें करती रहती थी।
धृति के बारे में उन्होंने बताया कि ये हमेशा से रिसर्च पर बात करती है। इंडियन और ग्र्रीक मेथोलॉजी में दिलचस्पी होने की वजह से मोबाइल पर भी इससे जुड़े गेम ही खेलती है। बच्चों का दिमाग शांत रहे, इसके लिए वो रात में सोने से पहले उन्हें गायत्री मंत्र का पाठ करवाती हैं।
वैज्ञानिक बनने का इरादा हुआ पक्का
कस्तूरबा बालिका विद्यालय जरीडीह बोकारो की 12वीं की छात्रा ङ्क्षरकी ने बताया कि इसरो से लौटने के बाद उसका वैज्ञानिक बनने का इरादा पक्का हो गया है। अपने बनाए रॉकेट लांचर को सफलता के साथ छोडऩा उसके आत्मविश्वास को बढ़ाने वाला है।
रिंकी की गाइड और स्कूल की साइंस टीचर शशिबाला सिंह ने बताया कि रिंकी के पिता सुरेश कुमार शिक्षक हैं जबकि मां काजल देवी हाउस वाइफ हैं। इस तरह के बैकग्राराउंड से आए और सरकारी स्कूल के बच्चे भी अगर इसरो जाकर वहां की तकनीक देख रहे हैं तो यह उत्साह बढ़ाने वाला है।

इसरो में वैज्ञानिक बनने का सपना
धालभूमगढ़ कस्तूरबा की छात्रा मांतू पाणि ने बताया कि उसे उम्मीद नहीं थी एक सब्जी बेचने वाली की बेटी को इसरो तक जाने का मौका मिलेगा। यह सब कुछ संभव हुआ देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वैज्ञानिक सोच के कारण। मांतू ने बताया कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के बारे में भी विस्तार से बताया गया। इसरो ने पहली बार यंग साइंटिस्ट प्रोग्राम की शुरुआत की है।
मांतू ने बताया कि चंद्रयान-2 में एक प्रज्ञान नाम का रोबोट भी साथ में भेजा जाएगा, जो हमें चंद्रमा के बारे में कई तथ्यों की जानकारी देगा। श्रीहरिकोटा के बाद मांतू अपने साथियों के साथ बेंगलूरु पहुंची। यहां 21 मई से लेकर 25 मई तक वैज्ञनिकों ने अंतरिक्ष और विज्ञान की नई-नई तकनीकों के बारे में विस्तार से बताया। यह पहला अवसर था जब विज्ञान को इतने करीब से जानने का मौका मिला।
कहा, इसरो का यह ट्रिप उनके जीवन में एक आमूल-चूल परिवर्तन लेकर आया है। अब वह इसरो के लिए काम करना चाहती है। वह अपना लक्ष्य निर्धारित कर चुकी हैं। इसरो से वह किसी न किसी रूप में जुडऩा चाहती है। इसरो वैज्ञानिक बनना अब उसके जीवन का एकमात्र सपना है। मालूम हो कि मांतू के पिता नागेंद्र पाणि धालभूमगढ़ और इसके आसपास की हाट-बाजारों में जा-जा कर सब्जी बेचते हैं।

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