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...तब विपरीत परिस्थितियों में बाबूलाल ने छोड़ा था भाजपा का दामन

Jharkhand Politics. भाजपा ने शिबू सोरेन से मुकाबले के लिए आगे किया था। अलग होने के बाद कई भाजपाई आए थे साथ बाद में कई हुए जुदा।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Tue, 18 Feb 2020 03:06 PM (IST)Updated: Tue, 18 Feb 2020 03:06 PM (IST)
...तब विपरीत परिस्थितियों में बाबूलाल ने छोड़ा था भाजपा का दामन
...तब विपरीत परिस्थितियों में बाबूलाल ने छोड़ा था भाजपा का दामन

रांची, राज्य ब्यूरो। बाबूलाल मरांडी का राजनीतिक करियर उतार-चढ़ाव से भरा है। भाजपा ने कद्दावर नेता शिबू सोरेन के मुकाबले के लिए उन्हें तैयार किया था। राजनीतिक में आने से पहले उन्होंने भाजपा के मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े संगठनों में कार्य किया। उनकी गतिविधि संताल परगना में केंद्रित थी। 1990 में वे भाजपा के माध्यम से सक्रिय राजनीति में आए। वे वनांचल प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष रहे। दुमका लोकसभा क्षेत्र से शिबू सोरेन को हराने के बाद उनका ग्राफ तेजी से बढ़ा।

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उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केंद्रीय वन एïवं पर्यावरण मंत्री की जिम्मेदारी मिली। जब बिहार से पृथक कर झारखंड को अलग राज्य का दर्जा दिया गया तो भाजपा ने उन्हें आगे किया। उस वक्त कडिय़ा मुंड़ा भी काफी लोकप्रिय थे। कई अन्य नेता भी रेस में थे, लेकिन बाबूलाल मरांडी को मुख्यमंत्री पद सौंपा गया। उस वक्त के कुछ कद्दावर नेताओं को उनकी कुछ नीतियों से परेशानी होने लगी। डोमिसाइल विवाद के दौरान राज्य में बड़े पैमाने पर हिंसा-प्रतिहिंसा की घटना हुई।

इसका प्रतिफल यह हुआ कि ज्यादातर प्रभावी नेता इनके विरोधी हो गए। बाबूलाल मरांडी की कैबिनेट में मंत्री रहे अर्जुन मुंडा को उनके स्थान पर मुख्यमंत्री बनाया गया। इसमें झारखंड प्रदेश भाजपा के तत्कालीन प्रभारी राजनाथ सिंह की भी बड़ी भूमिका रही। यहीं से बाबूलाल मरांडी कुछ कटे-कटे रहने लगे, हालांकि भाजपा ने अंत-अंत तक उन्हें रोकने की कोशिश की। 2006 में उन्होंने झारखंड विकास मोर्चा का तामझाम से गठन किया तो असंतुष्ट भाजपाईयों का बड़ा धड़ा उनके साथ गया।

प्रदीप यादव, रवींद्र राय, संजय सेठ आदि नेता भी बाबूलाल के साथ गए, लेकिन धीरे-धीरे सभी वापस लौटे। 2009 के विधानसभा चुनाव में बाबूलाल मरांडी ने तालमेल कर चुनाव लड़ा और 11 सीटें हासिल करने में कामयाबी पाई। 2014 के विधानसभा चुनाव में बाबूलाल मरांडी की पार्टी ने आठ सीटें जीतीं, लेकिन बाबूलाल मरांडी चुनाव हार गए। चुनाव परिणाम आने के तत्काल बाद आठ में से छह विधायकों ने भाजपा का दामन थाम लिया।

उसी वक्त यह कयास लगाया जाने लगा था कि बाबूलाल मरांडी भी भाजपा में वापस जा सकते हैं। 2019 के विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद इसकी संभावना बलवती हो गई। बाबूलाल मरांडी विधानसभा का चुनाव जीते। हालांकि उनके करीबी प्रदीप यादव ने भाजपा में जाना स्वीकार नहीं किया। उन्होंने बंधु तिर्की के साथ कांग्रेस में शामिल होने का निर्णय किया।


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