सब्र का महीना है रमजान, दुआएं होती हैं कबूल
रांची इस्लाम में रोजा बहुत अहम इबादत है। यह एक ऐसी इबादत है।
रांची : इस्लाम में रोजा बहुत अहम इबादत है। यह एक ऐसी इबादत है जिसका संबंध इंसान की अंतरात्मा से है। यह अल्लाह से मोहब्बत का जरिया भी है। रोजेदार रोजे की हालत में अल्लाह से खुद को करीब पाता है। रमजान के तीस दिनों का रोजा पैगंबर मोहम्मद (स.) की उम्मत के लिए खास है। रमजान का महीना सब्र का है और सब्र का बदला अल्लाह ने जन्नत रखा है। अल्लाह को रोजेदार का भूखा-प्यास रहकर इबादत में मशगूल रहना बेहद पसंद है। रमजान का महीना रोजेदारों के दिलों को तरोताजा कर देता है। पैगम्बर मोहम्मद (सल.) ने फरमाया है कि जिस शख्स ने रमजान का महीना पाया और अल्लाह से अपने गुनाहों को माफ नहीं करा सका, वह बदनसीब है। रोजा रखने के कई फायदे हैं। पहला यह कि अल्लाह उसके गुनाहों को माफ करेंगे। दूसरा उसकी दुआ कबूल होगी। मरने के बाद उसे परवरदिगार जन्नत में जगह देंगे। रोजा कई बिमारियों का इलाज भी है। इस माह का हरेक पल इतना कीमती है जिसका बयान नहीं किया जा सकता। नफिल नमाजों का सवाब फर्ज के बराबर है। रोजा अल्लाहतआला की खुशनुदी के लिए रखा जाए तब ही उसे इसका सवाब मिलेगा। जहा तक हो पास-प?ोस में रहने वाले लाचारों व गरीब रिश्तेदारों की मदद करें।
-मोख्तार अहमद, महासचिव अंजुमन इस्लामिया रांची।
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नन्हे रोजेदार
कांटाटोली सुल्तान लेन की रहने वाली पांच वर्षीय माइरा हाशिम पिता सैफ हाशिम रामजान उल मुबारक के रोजे रख रही है। रोजा के अलावा पांचों वक्त की नमाज भी पढ़ती है। कुरान की तिलावत में भी शामिल रहती है। समय से सेहरी व इफ्तार भी करती है। माइरा पहली कक्षा की छात्रा है। माइरा ने बताया कि वह मां आफरीन खान व पिता सैफ हाशिम को देखकर रोजा रखने की चाहत की। इसके बाद इबादत में जुटी है। उसे रोजा रखकर बेहद खुशी महसूस हो रही है। अल्लाह से कामयाबी और देश की खुशहाली के लिए दुआएं कर रही है।