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जूट के धागों से संवर रहीं महिलाओं की जिंदगी

हस्तशिल्प व्यापार मेला में फूलमणि टोप्पो के हाथों बनाए गए जूट से बने सामान आज लोगों के आकर्षण के केंद्र बने हुए हैं। इसकी मांग ज्यादा है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 09 Jan 2020 04:13 AM (IST)Updated: Thu, 09 Jan 2020 06:12 AM (IST)
जूट के धागों से संवर रहीं महिलाओं की जिंदगी
जूट के धागों से संवर रहीं महिलाओं की जिंदगी

जागरण संवाददाता, रांची : हस्तशिल्प व्यापार मेला में फूलमणि टोप्पो के हाथों बनाए गए जूट से बने सामान लोगों को खूब पसंद आ रहे हैं। उनके स्टॉल पर जूट के बुने आकर्षक हैंडबैग को खरीदने के लिए शहरों की महिलाओं और छात्राओं की काफी भीड़ जुट रही है। फूलमणि लगभग दो दशक से जूट से उत्पाद बना रही हैं। इस अवधि में वह लगभग 500 महिलाओं को जूट से उत्पाद बनाने की ट्रेनिंग दे चुकी हैं। प्रशिक्षण लेने के बाद ये महिलाएं भी आज अच्छी आमदनी कर रही हैं। जूट का बैग बना रोजगार का जरिया

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फूलमणि बाजार से जूट खरीद उसके एक हिस्से पर प्लास्टिक चस्पा कर देती हैं। इसके बाद उस पर रंग का काम कर उसे सुखाती हैं। फिर विभिन्न डिजायन में तैयार कर उसकी सिलाई करने के बाद उस पर अलग-अलग तरीके से कारीगरी करती हैं। वह जूट से बैग, थैला, फ्लावर पॉट, मैट आदि सामान बनाती हैं। वह बताती हैं कि जूट से बने उत्पादों की पूरे देश में डिमांड है। समय-समय पर लगने वाले मेलों में वह शामिल होकर अपने सामान बेचती हैं। वह कहती है कि बैग को बनाने में दो से तीन दिन लग जाते हैं। मेले में इसे साइज तथा उपयोगिता के हिसाब से 30-2000 रुपये में बेचा जाता है। स्कूल से मिली प्रेरणा

वह बताती हैं कि 2001 में वह आठवीं क्लास में पढ़ाई करती थी। इस दौरान स्कूल में किसी ने उन्हें वहां चल रहे हस्तशिल्प प्रशिक्षण के बारे में बताया। शुरुआत में वह महज शौकिया तौर पर इससे जुड़ी थी। स्कूल में 6 महीने की ट्रेनिंग के दौरान उन्हें इस हुनर की अहमियत समझ आयी। इसके बाद उन्होंने अपने परिवार के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर जूट के सामान बनाना शुरू किया। वह कहती हैं कि लगभग दो दशक से उनके परिवार की कमाई का एकमात्र जरिया है। व्यस्तता की वजह से रांची से दूर जाकर प्रशिक्षण देना किया बंद

2006 से महिला विकास समिति से जुड़ कर 500 से अधिक महिलाओं को गांवों में जाकर प्रशिक्षण दे चुकी हैं। वे रांची के अलावा कांके, तमाड़, गुमला, लोहरदग्गा, खूंटी, टाटीसिलवे आदि जगहों पर प्रशिक्षण दे चुकी हैं। वे बताती हैं कि उन्होंने 2014 तक यह प्रशिक्षण दिया। व्यस्तता की वजह से अब उन्होंने दूर जाकर प्रशिक्षण देना बंद कर दिया है।

शहरी लोगों को खूब भाते हैं जूट के बने उत्पाद

वह कहती हैं कि शहर में जूट से बने उत्पाद की मांग ज्यादा है। शहरी लोगों को जूट से बने इको-फ्रेंडली उत्पाद खूब भाते हैं। वह बताती हैं कि पर्यावरण के खिलाफ लोगों द्वारा चलाए जा रहे अभियान में जूट के उत्पाद प्लास्टिक का बेहतर विकल्प बन चुके हैं। बीते कुछ सालों से जूट से बने उत्पाद का उपयोग लोगों में स्टेट्स सिंबल के रूप में उभरा है।

लगन के साथ धैर्य भी है जरूरी

फूलमणि बताती है कि जूट के सामान बनाने में लगन के साथ धैर्य भी बहुत जरूरी है। जूट के अच्छे उत्पाद बनाने में समय लगता है। साथ ही बिना सरकारी सहायता के शुरुआत में खुद ही पैसा इंवेस्ट करना पड़ता है। ऐसे में यह शुरुआत में थोड़ा मुश्किल जरूर लगता है मगर हुनर सीख जाने के बाद बाजार में आपके सामान के अच्छे दाम मिलने लगते हैं।


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