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पर्यावरण संरक्षण की जिद ने श्रवण को दिलाई राष्ट्रीय स्तर पर पहचान

पर्यावरण को लेकर श्रवण अपनी राष्ट्रीय स्तर पर पहुचान बना चुके हैं। राजेश वर्मा नामकुम नक्सल प्रभावित खूंटी के एक छोटे से गाव जरियागढ़ में जन्मे श्रवण क

By JagranEdited By: Published: Wed, 21 Aug 2019 03:48 AM (IST)Updated: Wed, 21 Aug 2019 03:48 AM (IST)
पर्यावरण संरक्षण की जिद ने श्रवण को दिलाई राष्ट्रीय स्तर पर पहचान
पर्यावरण संरक्षण की जिद ने श्रवण को दिलाई राष्ट्रीय स्तर पर पहचान

राजेश वर्मा, नामकुम :

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नक्सल प्रभावित खूंटी के एक छोटे से गाव जरियागढ़ में जन्मे श्रवण कुमार गुप्ता को बचपन से ही पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कुछ करने की ललक थी। बचपन से ही पेड़-पौधों को लगाने के साथ अन्य लोगों को भी पौधे लगाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। लेकिन ये उनके लिए इतना आसान नहीं था। जो सपना उनके दिल में था उन सपनों को पूरा करना नक्सल प्रभावित खूंटी में संभव नहीं था। इसके बावजूद उन्होंने अपने सपने को पूरा करने के लिए लगभग 15 साल पहले खूंटी से रांची आए। राची में भाजपा नेता लक्ष्मी चंद दीक्षित ने उन्हें हरमू में आवास दिलाया और नामकुम के पलाडु स्थित भारतीय कृषि परिषद के अनुसंधान केंद्र जाकर प्रशिक्षण लेने के लिए प्रेरित किया। अनुसंधान केंद्र में प्रशिक्षण लेने के बाद कृषि विज्ञान केंद्र और केजीवीके से प्रशिक्षण प्राप्त किया। इसके बाद पुरूलिया रोड में महिलौंग में एक छोटी सी नर्सरी खोली और फलों की नई-नई प्रजाति तैयार करने में जुट गए। देखते ही देखते मेहनत रंग लाई और नर्सरी ने बड़ा रूप ले लिया। अब हर वर्ष लगभग दो से तीन लाख फल के पौधे बेचते हैं। राची के अलावा अन्य जिलों जिसमें बिहार, छत्तीसगढ़ से भी लोग उनसे पौधे लेने आते हैं। प्रति वर्ष 20 से 25 लाख का पौधे बेचते हैं।

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मेहनत रंग लाई तो लोगों को रोजगार से जोड़ा

श्रवण बताते हैं कि 15 साल पहले प्रशिक्षण लेने के बाद शुरुआत छोटे स्तर से की, प्रयास सफल रहा। इसी कड़ी में ग्रामीण क्षेत्र के बेरोजगारों को जोड़ने शुरू किया। वर्तमान में लगभग 40 लोग नर्सरी के काम में श्रवण का हाथ बंटा रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण की दिशा में इनके द्वारा किए जा रहे कार्य को देखते हुए आइसीआर के द्वारा सम्मानित भी किया गया। इसके बाद नर्सरी के क्षेत्र में बेहतर कार्य करने के लिए बिहार और झारखंड से भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली के द्वारा श्रवण को जगजीवन राम अभिनव किसान पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया। दिल्ली में आयोजित परिषद की स्थापना दिवस पर आइसीआर के महानिदेशक ने 50 हजार का चेक और प्रशस्ति पत्र सौंपा था। श्रवण कहते हैं कि सम्मान पाकर बहुत अच्छा लगा। कभी सोचा नहीं था, आज लगता है कि खूंटी से यहां आकर अच्छा किया।

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स्कूली बच्चों को भी देते हैं पौधारोपण का प्रशिक्षण

नर्सरी के काम की व्यस्तता के बावजूद श्रवण कुमार स्कूली बच्चों को अपने नर्सरी में बुलाकर प्रशिक्षण देते हैं। श्रवण बताते हैं कि आज के बच्चे कल के भविष्य हैं। किस समय पर और किस मिट्टी में कौन से पौधे लगाने चाहिए इसकी विस्तृत जानकारी दी जाती है। बच्चों को मिट्टी की जांच और पौधों की पहचान कैसे करे इसकी भी जानकारी दी जाती है। यहां आने वाले बच्चों को नाश्ता व खाना भी दिया जाता है। अबतक लगभग एक दर्जन स्कूल के बच्चे यहां से प्रशिक्षण ले चुके हैं।

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फलदार पौधों के नई किस्म कर चुके हैं विकसित

श्रवण कुमार बताते हैं कि उनके नर्सरी में फलों के पौधे 50,100 व 150 रुपये में बेचे जाते हैं। परंतु जब कोई नई किस्म के पौधे तैयार किए जाते हैं तो सैकड़ों पौधे निश्शुल्क वितरण किया जाता है इसके बाद उनका फीडबैक लेते हैं। इसके बाद उन कमियों को दूर करने की दिशा में काम करते हैं। वही हर वर्ष वैसे लोगों को निशुल्क पौधे देते हैं जिनके पास जमीन है पर हाइब्रिड पौधे खरीदने के लिए पैसा नहीं हैं। पौधे ले जाने वालों को भी लगाने और देखभाल की पूरी जानकारी दी जाती है। श्रवण कहते हैं कि सिर्फ पैसा कमाने के लिए काम नहीं करना चाहिए। इसका एक उद्देश्य भी होना चाहिए। सभी को पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी अपनी भागीदारी निभानी चाहिए।

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आइसीआर व केजीवीके ने दिखाई दिशा

श्रवण कहते हैं कि आज जो भी कुछ हैं, उन सफलता के पीछे कृषि विज्ञान केंद्र, अनुसंधान केंद्र पलांडु और भाजपा नेता लक्ष्मी चंद्र दीक्षित का योगदान रहा है। इन सब का सहयोग नहीं मिलता तो एक नई मंजिल नहीं मिलती।


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