मुंडाओं की उत्पत्ति से जुड़ा है पिठोरिया का इतिहास
मुंडा जनजाति देश के सबसे पुराने और बड़े जनजातियों में से एक है। इसना इतिहास पिठोरिया से जुड़ा है।
जागरण संवाददाता, रांची : मुंडा जनजाति देश के सबसे पुराने और बड़े जनजातियों में से एक है। इस जनजाति का इतिहास महाभारत काल से पहले का है। कई धर्मग्रंथ में इस जनजाति का इतिहास मिलता है। बताया जाता है कि मुंडाओं की उत्पत्ति पिठौरिया के पास स्थित एक गांव से है। यहां आज भी मुंडाओं के पहले राजा मदरा मुंडा की प्रतिमा बनाई गई है। पिठौरिया चौक के पास एक बड़ा तालाब है। इसका नाम अंधेरिया इंजोरिया तालाब है। इससे मुंडा समाज की कई मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। ये तालाब उनके लिए काफी पवित्र माना जाता है। आज भी इस तालाब में लोग पूजा और स्नान करने के लिए आते हैं।
इसके साथ ही इस तालाब का इतिहास नागवंशी राजाओं की उत्पत्ति से भी जुड़ा हुआ है। ऐसी कथा है कि एक बार अभिमन्यु के पौत्र जन्मेजय को पता चला कि उसके पिता महाराज परीक्षित की मृत्यु सांप के काटने से होगी। इसलिए उन्होंने एक ऐसा यज्ञ किया जिसके हवन कुंड में सभी सांप जलकर मरने लगे। ऐसे में भगवान विष्णु ने अपने शेष नाग को धरती पर मनुष्य रुप में भेज दिया। उस मनुष्य रूप नाग ने बनारस की एक कन्या से विवाह किया। इसके बाद वो भ्रमण करते हुए रांची के पिठोरिया पहुंचे। उस वक्त उनकी पत्नी गर्भवती थी। वो लोग रात में अंधेरिया इंजोरिया तालाब के किनारे रुके। यहां उनकी पत्नी ने उनके असली रूप के बारे में जानने की जिद्द की। मगर जैसे ही उन्होंने अपना असली रूप दिखाया। उनके गर्भ से बालक ने जन्म लिया। अपना असली रुप दिखाने के बाद शेष नाग अपने लोक को वापस चले गये। मगर वो स्त्री यहीं रही। ऐसे में मदरा मुंडा ने उस बालक का अपने बच्चे के साथ पालन किया। बाद में उत्तराधिकार के लिए मदरा मुंडा ने अपने बेटे और नाग पुत्र के बीच एक प्रतियोगिता रखी जिसे जितने के बाद उस बालक को उतराधिकारी बनाया गया और रांची के पहले नागवंशी राजा हुए। प्रचीन काल में मुंडा केवल छोटानागपुर और आसपास के क्षेत्रों में फैले हुए थे। मगर अब ये पश्चिम बंगाल और ओडिशा आदि राज्यों में भी बसे हुए हैं। इनकी सामाजिक संरचना आज भी काफी सरल है।