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टाना भगतों के जीवन में झाकता है गाधी का सपना

आजादी के 70 साल बाद भी गाधी के सपनों का भारत टाना भगतों के जीवन में झांकता है। टाना भगतों ने आजादी की लड़ाई में अहम योगदान दिया था। आज भी गांधी जी के आदर्शो पर चलते हैं, हिंसा और झूठ- फरेब से बिल्कुल दूर। ये प्रकृति से उतना ही लेते हैं, जितना की उन्हें जरूरत हो।

By JagranEdited By: Published: Tue, 07 Aug 2018 09:48 AM (IST)Updated: Tue, 07 Aug 2018 09:48 AM (IST)
टाना भगतों के जीवन में झाकता है गाधी का सपना
टाना भगतों के जीवन में झाकता है गाधी का सपना

संजय कृष्ण, राची

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आजादी के 70 साल बाद भी गाधी के सपनों का भारत टाना भगतों के जीवन में झाकता है। पूरी दुनिया में गाधी के सच्चे अनुयायी ये टाना भगत हैं। इनके दिलों में आजादी धड़कती है। गाधी जिंदा हैं और इनके सफेद झडे पर चरखा आज भी जिंदा है। यह झडा महज सफेद कपड़ा नहीं, यह इनका अस्तित्व है। ये उसकी पूजा करते हैं। राष्ट्रीय पर्व पर ये तिरंगा की पूजा करते हैं। स्वच्छता और साफ-सफाई इनके जीवन का अंग है।

चंपारण के सिलसिले में 1917 में राची में जब गाधी इनसे मिले तो दोनों एक दूसरे से प्रभावित हुए। गाधी के आदोलन से पहले इनके जीवन में सत्याग्रह प्रवेश कर गया था। धातु के इस्तेमाल पर रोक लगा दी। प्रकृति से उतना ही लेते, जितनी जरूरत। यह परंपरा आज भी कायम है। गुरुवार इनकी पूजा का दिन होता। इस दिन कोई काम नहीं। प्रवचन और पूजा। प्रकृति पर सिर्फ अपना हक नहीं। जीव और जानवर का भी उतना ही हक। नमक आज भी दूसरे का नहीं खाते। इनके यहा लैंगिक भेदभाव नहीं। स्त्री और पुरुष दोनों समान।

गाधी के साथ जब जुड़े तो आजादी की लड़ाई में कूद गए और अपना सबकुछ न्यौछावर कर दिया। जमीन तक नीलाम हो गई और उस जमीन के लिए ये आज भी अहिंसात्मक रूप से अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं। यही नहीं, स्वराज्य का संवाद सुनने के लिए काग्रेस अधिवेशन में सम्मिलित होने के लिए सैकड़ों पाव पैदल गया, कानपुर, बेलगाव और कोकोनाडा गए। 1922 के गया काग्रेस में करीब तीन सौ टाना भगतों ने भाग लिया। ये राची से पैदल चलकर गया पहुंचे थे। 1940 में रामगढ़ काग्रेस में इनकी संख्या तो पूछनी ही नहीं थी।

1926 को राची में राजेंद्र बाबू के नेतृत्व में आर्य समाज मंदिर में खादी की प्रदर्शनी लगी थी तो टाना भगतों ने इसमें भी भाग लिया। साइमन कमीशन के बॉयकाट में टाना भगत भी शामिल थे। देश जब आजाद हुआ तो टाना भगतों ने अपनी तुलसी चौरा के पास तिरंगा लहराया, खुशिया मनाईं, भजन गाए। आज भी टाना भगतों के लिए 26 जनवरी, 15 अगस्त व दो अक्टूबर पर्व के समान है। 15 अगस्त को टाना भगत पवित्र त्योहार के रूप में मनाते हैं। इस दिन टाना भगत किसी प्रकार खेतीबाड़ी आदि का काम नहीं करते। प्रात: उठकर ग्राम की साफ-सफाई करते हैं। महिलाएं घर-आगन की पूरी सफाई करती हैं। स्नानादि के बाद समूह रूप में वे राष्ट्रीय गीत गाकर राष्ट्रध्वज फहराते हैं। अभिवादन करते हैं। स्वतंत्र भारत की जय, महात्मा गाधी की जय, राजेंद्र बाबू की जय..तथा सभी टाना भगतों की जय का नारा लगाते हैं। गाव में जुलूस निकालते हैं। प्रसाद वितरण भी करते हैं। अपराह्न आमसभा होती है। सूत काता जाता है और आपस में प्रेम और संगठन को दृढ़ करने की चर्चा होती है।

खेतीबाड़ी में भी ये पारंपरिक बीज का ही इस्तेमाल करते हैं। वह बीज, पुरखों ने संजोकर रखा था। देशज बीज इनके यहा ही सुलभ हैं। इनके समाज में अपराध शून्य है। कहीं कोई विवाद नहीं। ग्रामसभा इनके लिए महत्वपूर्ण है। खादी ही इनका पहनावा है।


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