Swami Vivekananda Jayanti: स्वामी विवेकानंद जब पहुंचे बाबाधाम, जानिए उनके जीवन से जुड़ी बातें
Swami Vivekananda Jayanti 2020 दुनियाभर में अध्यात्म मानवतावाद और भारतीय वैदिक दर्शन का पताका फहराने वाले स्वामी विवेकानंद बाबा बैद्यनाथ की नगरी देवघर कई बार आ चुके हैं...
जयंती पर विशेष
- पहली बार स्वास्थ्य लाभ के लिए पहुंचे थे यहां, देवघर और सिमुलतला में हुआ था प्रवास
- देवघर से कई मित्रों को लिखा पत्र, यहां से भागलपुर, कोलकाता व कई अन्य शहर भी गए
- देवघर से लिखे पत्र में है यहां के पानी में आयरन अधिक होने का जिक्र
रांची, [संजय कृष्ण]। Swami Vivekananda Jayanti 2020 दुनियाभर में अध्यात्म, मानवतावाद और भारतीय वैदिक दर्शन का पताका फहराने वाले स्वामी विवेकानंद शिव की नगरी देवघर कई बार आ चुके हैैं। पहली बार वह 1887 की गर्मियों में यहां आए, जब वे बीमार थे। गुरु भाइयों के अनुरोध पर स्वास्थ्यलाभ के लिए वह वैद्यनाथधाम देवघर और यहीं पास में स्थित सिमुलतला में रुके थे। गुरु भाइयों ने भिक्षा मांगकर स्वामी विवेकानंद को यहां भेजा था। हालांकि तब वह यहां ज्यादा दिन नहीं रुके।
पहली बार देवघर से वापस जाने के दो साल बाद 1889 में स्वामी दोबारा यहां आए। देवघर प्रवास के दौरान यहां से उन्होंने अपने ईष्ट-मित्रों और परचितों को कई पत्र भी लिखे। 26 दिसंबर को यहां से एक अन्य मित्र प्रमदादास को पत्र लिखा। इस पत्र का मजमून अपेक्षाकृत छोटा है। करीब दस पंक्तियों का। इसमें वह लिखते हैैं -'मैं यहां कलकत्तानिवासी एक सज्जन के मकान में दो चार दिनों से हूं, किंतु वाराणसी जाने के लिए चित्त अत्यंत व्याकुल है।' बाद में वह यहां से इलाहाबाद होते हुए वाराणसी गए थे।
इस पत्र को लिखने से दो दिन पहले 24 दिसंबर, 1889 को स्वामीजी ने देवघर से ही बलराम बसु को एक पत्र लिखा था। इसमें उन्होंने लिखा था...'मैं वैद्यनाथधाम में कुछ दिनों से पूर्ण बाबू के निवासस्थान में ठहरा हूं। यहां ठंड कम है, लेकिन मेरा स्वास्थ्य अच्छा नहीं है। यहां के पानी में लोहा अधिक होने के कारण मुझे अपच की भी शिकायत हो रही है। मुझे तो अपने अनुकूल यहां कुछ भी नहीं मिला-न स्थान, न मौसम और न साथी ही।' यह पत्र लंबा है। पत्र में वह यहां के गोविंद चौधरी का जिक्र करते हैं। उनके बारे में तरह-तरह की उड़ रही बातों का उल्लेख भी इस पत्र में है।
दुनिया को भारतीय संस्कृति और अध्यात्म से परिचित कराने वाले, युवाओं के प्रेरणास्त्रोत स्वामी विवेकानंद जी की जयंती पर कोटि-कोटि नमन।
सभी युवाओं को #राष्ट्रीय_युवा_दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।#NationalYouthDay pic.twitter.com/ikKUSk6nas — Raghubar Das (@dasraghubar) January 12, 2020
तीसरे दौरे में भागलपुर और देवघर होते हुए गए थे कोलकाता
एक साल बाद 1890 के अगस्त में वे भागलपुर आए थे। यहां से वे अखंडानंद जी के साथ लखीसराय और वहां से देवघर आए। अखंडानंदजी लिखते हैं, 'इसके पूर्व मेरा वैद्यनाथ दर्शन नहीं हुआ था। बाबा का दर्शन करने के लिए मैंने स्वामीजी (स्वामी विवेकानंद) से बड़ा आग्रह किया और हठपूर्वक उन्हें वैद्यनाथधाम ले आया। भागलपुर से देवघर की दूरी 126 किलोमीटर है। यहां पहुंचकर उन्होंने शिव का दर्शन-पूजन आदि किया और उसके बाद बंगाल के प्रसिद्ध राष्ट्रवादी नेता राजनारायण बोस से मिलने गए।' राजनारायण बोस समाज सुधारक व ब्रह्मसमाज के नेता थे। वे उन दिनों देवघर के ही 'पुराना दहइलाके में रहते थे।
यह मुलाकात काफी रोचक थी...। महेंद्रनाथ दत्त ने लिखा है कि, बोस महाशय के साथ नरेंद्रनाथ (स्वामी विवेकानंद) की पुरानी तथा आधुनिक काल की घटनाओं, ब्रह्मसमाज आदि विषयों पर कई तरह की चर्चा होने लगी। बातचीत के दौरान नरेंद्रनाथ ने पूछा-आपका स्वास्थ्य इतना बिगड़ कैसे गया? बसु महाशय ने सरल तथा निष्कपट भाव से बताया, मद्य, मद्य, मद्य। नया-नया अंग्रेजी भाव देश में प्रविष्ट होने पर, उसके साथ-साथ यह धारणा भी प्रविष्ट हुई कि मद्यपान किए बिना न पढ़ाई-लिखाई होगी और न ही देश का काम हो सकेगा। इसलिए हम लोगों ने मद्यपान शुरू किया। ....इसी से स्वास्थ्य चौपट हो गया। कुछ समय बाद जब स्वामीजी का नाम विश्व में प्रसिद्ध हो गया तब राजनारायण बाबू को समझ में आया कि ये ही संन्यासी तो कई साल पूर्व उनसे मिलने आए थे, तब से मुलाकात की उनकी स्मृति पटल पर उभर आई।
स्वामीजी ने प्रवास के दौरान खुद ही पकाया था भोजन
यह भी कहा जाता है कि स्वामी विवेकानंद 1898 में भी देवघर आए थे और वृद्ध राजनारायण बाबू से मिलने गए थे। उन्होंने स्वामीजी से दोपहर में वहीं भोजन करने का अनुरोध किया और उस दिन स्वामीजी ने स्वयं ही भोजन पकाया था। हालांकि इस बार वे वैद्यनाथ धाम में राजनारायाण बाबू के यहां रात बिताने के बाद अगले दिन वाराणसी के लिए चल पड़े। हालांकि वे वाराणसी सीधे नहीं गए।
देवघर से गाजीपुर पहुंचे, यहीं लिखी पवाहारी बाबा नाम की पुस्तिका
देवघर से स्वामीजी इलाहाबाद पहुंचे थे। 30 दिसंबर, 1889 को स्वामीजीने इलाहाबाद से पूज्य पाद बलराम बसु को पत्र लिखा था। इसके बाद वे 21, जनवरी 1890 को गाजीपुर पहुंचे। यहां वे अप्रैल के प्रथम सप्ताह तक रहे और प्रसिद्ध संत पवहारी बाबा का दर्शन किया। यहां भी वे अपने कमर दर्द व बुखार को लेकर परेशान थे। गाजीपुर में वे अपने बाल्यबंधु सतीशचंद्र मुखर्जी के आवास में ठहरे थे। बाद में उन्होंने पवहारी बाबा नाम से एक छोटी सी पुस्तिका लिखी और इस तरह गाजीपुर के इस संत को उन्होंने विश्व में पहुंचाया। विवेकानंद निरंतर यात्रा करते रहे और संतों से मिलते रहे। यह यात्रा अंदर की भी थी और बाहर की भी।