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Suicide Prevention Day 2021: आखिर किन वजहों से होता है अवसाद और कैसे इससे बचा जा सकता है...

Suicide Prevention Day 2021 रांची के रिनपास के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डा. सिद्धार्थ सिन्हा ने बताया कि कोरोना संक्रमण के साथ ही स्वास्थ्य से लेकर आजीविका तक के संकट सामने आए जिनके कारण अवसाद के मामलों में 40 फीसद तक का इजाफा हुआ।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 10 Sep 2021 10:35 AM (IST)Updated: Fri, 10 Sep 2021 10:35 AM (IST)
Suicide Prevention Day 2021: आखिर किन वजहों से होता है अवसाद और कैसे इससे बचा जा सकता है...
सोच में नकारात्मकता बढ़ती जाए तो कई बार मानसिकता आत्मघाती भी हो जाती है।

अनुज तिवारी, रांची। Suicide Prevention Day 2021 कोरोना की पहली लहर ने पूरी दुनिया को बुरी तरह प्रभावित किया और इसके बाद अप्रैल में आई दूसरी लहर ने तो हर तरह से लोगों की कमर तोड़ दी। बड़ी संख्या में लोग संक्रमित हुए। कोरोना की चपेट में स्वजन, रिश्तेदार, दोस्त असमय साथ छोड़ गए। हालात ये हैं कि संक्रमण से उबरने के बाद तमाम लोग पोस्ट कोविड की शारीरिक दिक्कतों के साथ-साथ मानसिक परेशानी से भी जूझ रहे हैं।

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इस दौरान मनोचिकित्सकों के पास समाधान के लिए पहुंचने वालों की संख्या तेजी से बढ़ी है। इनमें हर आयु वर्ग के लोग शामिल हैं। कोरोना के कारण तमाम लोगों की नौकरियां चली गईं, रोजगार, कारोबार बंद हो जाने से परिवार चलाने का संकट पैदा हो गया। इससे उपजे तनाव से भी मानसिक दिक्कतें उत्पन्न हुईं। तनाव, अवसाद बढ़ने के कारण नकारात्मक विचार आने स्वाभाविक हैं। इस दौरान अवसाद के मरीजों में करीब 40 फीसद का इजाफा हुआ।

व्यवहार में परिवर्तन दिखे तो चिकित्सक को दिखाएं: लाकडाउन के शुरुआत तक सब ठीक था, लेकिन जैसे-जैसे समय बढ़ता गया लोग परेशान होने लगे। कोई पारिवारिक परेशानियों को लेकर परेशान था तो कोई आर्थिक तंगी को लेकर तनावग्रस्त था। इस बीच स्कूल-कालेज जाने वाले बच्चों में सबसे अधिक मानसिक तनाव दिखा। इन बच्चों में अपने लक्ष्य को हासिल न कर पाने को लेकर परेशानी रही। ऐसे ढेरों मामलों हैं, जिनमें बच्चे और युवाओं का मानसिक इलाज चल रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार अवसाद और तनाव से ग्रसित जिन लोगों को समय पर उपचार मिला और काउंसलिंग हुई, अब वे उत्साह के साथ जिंदगी जीना चाहते हैं और जीवन के बारे में उनका नजरिया सकारात्मक हो गया है। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि परिवार के सदस्य शुरुआत में ही कदम उठाएं। व्यवहार में अगर परिवर्तन दिख रहा है तो तुरंत मरीज को मनोचिकित्सक के पास ले जाएं।

अवसाद से जुड़े कुछ तथ्य

किसी व्यक्ति में नकारात्मक या खुद को नुकसान पहुंचाने के विचार तब आते हैं, जब उसकी इच्छाएं पूरी नहीं हो पाती हैं। कोई परीक्षा में सफल नहीं हो सका तो कोई प्रतियोगिता परीक्षा में अच्छी रैंक नहीं ला पाया। किसी को अपनी नौकरी में संतुष्ट नहीं है। ऐसी परिस्थितियों में काउंसलिंग ही सबसे बड़ी दवा है। अवसाद से ग्रसित व्यक्ति को मनोचिकित्सक के पास ले जाएं और अभिभावक उसकी समस्या को गंभीरता से लें।

आत्महत्या की मुख्य वजह

  • अवसाद को हल्के में लेना
  • लंबे समय तक मानसिक रोग की दवा छोड़ने से भी आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ती है
  • परेशानियों को नहीं बताना, परिवार के सदस्यों के द्वारा आदतों पर ध्यान नहीं देना
  • छात्रों को आगे अच्छा करने को लेकर प्रेरित नहीं करना, उनकी मेहनत को नहीं समझना और मानसिक दबाव बनाना

बच्चों से रखें भावनात्मक जुड़ाव: वर्तमान में बच्चों में अवसाद के मामले काफी बढ़े हैं, लेकिन सही समय पर परिवार की मदद से इनके अंदर जीने की उम्मीद जगाई जा सकती है। बच्चों के केस में सबसे पहले यह जानने की कोशिश करें कि आखिर बच्चा किस कारण अवसाद का शिकार हो रहा है। बच्चे से खुलकर बात करें और उसकी भावनाओं को समझने की कोशिश करें। बच्चे को गुमसळ्म न रहने दें और अगर कुछ गलती कर जाए तो प्यार से समझाएं। हीन भावना अवसाद की सबसे बड़ी जड़ है। इसलिए बच्चे से हमेशा सकारात्मक बातें करें। नकारात्मक बातों का निदान करें। इस बात का ध्यान दें कि आखिर बच्चे की इच्छा क्या है और उसकी समस्या क्या है।

पूरे समाज की है समस्या: महामारी का प्रभाव लंबा हो सकता है, लेकिन हमें इससे घबराना नहीं है, बल्कि यह सोचना है कि इससे पूरा समाज प्रभावित है। हर किसी के सामने तरह-तरह की समस्याएं हैं। इसके लिए जरूरी है कि लोग परिवार के साथ रहें और योग व मेडिटेशन कर मानसिक रूप से स्वस्थ रहें। मन में उम्मीद जगाए रहें कि आने वाला कल बेहतर होगा।

इस तरह दूर करें आत्महत्या की सोच: आत्महत्या की सोच को खत्म करने में चिकित्सक के साथ-साथ परिवार की भी सहभागिता होती है। अगर कोई व्यक्ति अचानक अपने रूटीन कार्य से अलग दिखे। उसके सोने-उठने, खाने का समय बदल जाए तो परिवार के सदस्यों को चाहिए कि उससे खुलकर बात करें। उसे समझाकर छोड़ न दें, बल्कि मनोचिकित्सक के पास ले जाएं।

चिकित्सक मरीज की काउंसलिंग करके सारी समस्याएं समझ लेता है। दवा के साथ-साथ फैमिली थेरेपी भी दी जाती है। परिवार के सदस्यों को किस तरह से मरीज की देखभाल करनी है, यह बताया जाता है। स्वजन संबंधित पीड़ित को हर वक्त यह बताएं और अहसास कराएं कि जीवन की हर परेशानी का हल है। जीवन सबसे अनमोल है, उसे खत्म करना कायरता है। यह दुनिया बहुत खूबसूरत है। इसलिए जिंदगी को जीना है। यदि किसी मुकाम पर असफल हुए हैं तो वह जीवन का अंतिम पड़ाव नहीं है।

रोगी पर रखें पैनी नजर: अवसाद की स्थिति में प्राय: व्यक्ति को अपने अच्छे बुरे का खयाल नहीं रहता। ऐसे में वह खुद को या दूसरों को नुकसान पहुंचाने का प्रयास भी करता है। ऐसे में स्वजनों की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। परिवार के लोगों को यह देखना चाहिए कि संबंधित सदस्य में किस तरह के नए बदलाव दिख रहे हैं। ऐसे चीजों को नोट कर मनोचिकित्सक को बताना चाहिए।


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