झारखंड में आदिवासी विधायकों को घेरने की गुपचुप रणनीति
रामकुमार पाहन के खिलाफ आंदोलन की तिथि और उसका तरीका पूरी तरह गुप्त रखा गया है।
हाईटेक होते-होते रह गया झारखंड मुक्ति मोर्चाराज्य ब्यूरो, रांची। पूर्व सांसद सालखन मुर्मू के आदिवासी सेंगेल अभियान ने बारी-बारी से तमाम आदिवासी विधायकों का घर घेरने की रणनीति बनाई है। इसकी शुरुआत रांची के ग्रामीण इलाके खिजरी के भाजपा विधायक रामकुमार पाहन से होगी। फिलहाल, रामकुमार पाहन के खिलाफ आंदोलन की तिथि और उसका तरीका पूरी तरह गुप्त रखा गया है। हालांकि इससे पूर्व उपायुक्त और वरीय पुलिस अधीक्षक को आंदोलनात्मक कार्यक्रम की सूचना दी जा सकती है ताकि टकराव की नौबत नहीं आए।
पूरी तैयारी नहीं हुई तो इस दौरान तनातनी के पूरे आसार हैं। वैसे आदिवासी सेंगेल अभियान इसे प्रतीकात्मक विरोध का तरीका बता रहा है। इस दौरान भाजपा विधायक रामकुमार पाहन को जमीन संबंधी कानून सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन की खामियों से परिचित कराया जाएगा। इनका सामाजिक बहिष्कार करने की भी घोषणा की जा सकती है।
पाहन को निशाने पर लेने की वजह भी है। सीएनटी-एसपीटी संशोधन विधेयक को आदिवासी हित में बताने वाले रामकुमार पाहन प्रदेश भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा के अध्यक्ष हैं। उनकी आदिवासी समाज में पैठ है और वे अपने स्तर से सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन के पक्ष में अभियान भी चलाते रहे हैं। वे ईसाई मिशनरी समर्थित अभियानों का विरोध करते हैं। ऐसे में विभिन्न सरना आदिवासी संगठनों का उन्हें समर्थन मिल रहा है। सबको साथ लेकर वे आदिवासी संगठनों के वैसे नेताओं के समक्ष चुनौती पेश करने में जुटे हैं जो सीएनटी-एसपीटी संशोधन विधेयक के खिलाफ माहौल बनाने में लगे हुए हैं।
दो भाजपा विधायकों का तथाकथित बहिष्कार भी
जमीन की राजनीति में खुद को हावी करने के लिए सरकार विरोधी संगठन तमाम हथकंडे भी अपना रहे हैं। विधायकों को घेरने के साथ-साथ उनपर मानसिक दबाव बनाना इसी रणनीति का हिस्सा है। कुछ दिन पूर्व चंद संगठनों ने घाटशिला और पोटका के विधायकों को भी इसी राजनीति के तहत निशाने पर लिया था। इनके सामाजिक बहिष्कार की घोषणा की गई थी।
राजनीति का हिस्सा मानते हैं पाहन
खिजरी के विधायक रामकुमार पाहन जमीन संबंधी कानून में संशोधन के खिलाफ चल रही रस्साकशी को राजनीति का हिस्सा भर मानते हैं। उनका कहना है कि सबकुछ इसी के तहत हो रहा है। इसका ख्याल रखना होगा कि समाज में कटुता नहीं फैले। उनका कहना है कि धर्मांतरण विरोधी बिल की वकालत करने से भी कई संगठन उनसे चिढ़े हुए हैं।
यह भी पढ़ेंः हाईटेक होते-होते रह गया झारखंड मुक्ति मोर्चा
यह भी पढ़ेंः संसद में गूंजेगा सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन का मुद्दा