अनाज से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास करेगा बीएयू
देश में कोरोना संक्रमण एक ऐसी समस्या है जिससे बचने के लिए हर संस्थान लगे हैं।
मधुरेश नारायण, राची
देश में कोरोना संक्रमण एक ऐसी समस्या है जिससे बचने के लिए हर संस्थान के द्वारा विभिन्न प्रकार के रिसर्च किए जा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी देश के सभी वैज्ञानिकों से अपने-अपने स्तर से इस समस्या का समाधान खोजने की अपील की है। ऐसे में राज्य के सबसे बड़े कृषि विश्वविद्यालय बीएयू में पहले से फसलों की झारखंड की जलवायु में ज्यादा उपजे के साथ उनके पौष्टिक गुणवक्ता पर कई शोध कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इन कार्यक्रमों में अब किसानों की आय बढ़ाने के साथ शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता के विकास के लिए पौष्टिकता के संरक्षण पर भी ध्यान दिया जाएगा। इस बारे में बताते हुए बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि विभाग के डीन डॉ. एमएस यादव ने बताया कि विश्वविद्यालय में लगातार सभी प्रकार के राज्य की जलवायु के अनुकूल फसलों पर शोध जारी है। इसके लिए आईसीएआर, भारत सरकार और कुछ राज्य सरकार के द्वारा स्वीकृत योजना है। मगर अब हमारा लक्ष्य के खाद्य सुरक्षा के दिशा में काम करते हुए ज्यादा उपज के साथ पोषण सुरक्षा की दिशा में भी होगा। लोगों को जब उचित पोषण मिलेगा तो रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास खुद होगा। इससे केवल कोरोना ही नहीं अन्य कई प्रकार की बीमारियों से रक्षा होगी।
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दाल से पूरी होगी प्रोटीन की कमी
दाल में पाया जाने वाला प्रोटीन शरीर के लिए काफी लाभदायक है। ऐसे में राज्य में सरप्लस दाल के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कई शोध किए जा रहे हैं। इसमें अरहर के साथ मूंग गरमा मूंग और मसूर पर काम हो रहा है। इस वर्ष विश्वविद्यालय के करीब 3 एकड़ रिसर्च फिल्ड में मसूर फसल पर शोध हो रहा था, जिसकी कटाई पूरी हो चुकी है। इसमें 30 जीनोटाइप पर शोध और डब्लूबीएल -75 किस्म का बीज उत्पादन किया गया। जबकि 4 एकड़ रिसर्च फिल्ड में मटर फसल की कटाई पूरी हो चुकी है। इसमें 35 जीनोटाइप पर शोध जाच तथा एचयूडीपी - 15 किस्म का बीज उत्पादन किया गया है। परियोजना कन्वेनर डॉ सीएस महतो हम जल्द ही किसानों को ऐसी फसल की किस्म देंगे जो कई गुणा ज्यादा विकसित और पौष्टिक फसल देने वाली होगी।
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अंकुरित चना से बढ़ेगी रोग प्रतिरोधक क्षमता
कई शोध में ये पाया गया है कि अंकुरित चने में शरीर के लिए कई लाभकारी तत्व होते हैं। ऐसे में राज्य में चना के खेती को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालय ऐसी किस्मों का विकास कर रहा है जिससे किसान कम इनपुट में अच्छी फसल का उत्पादन कर सकें। इसके लिए यहा की रिसर्च फिल्ड में 5 एकड़ जमीन में 200 जीनोटाइट पर शोध कार्य हो रहा है। साथ ही बीएयू विकसित बिरसा चना -3 किस्म का बीज उत्पादन कार्यक्रम चलाया गया। इस बीज से उपजे फसल की गुणवक्ता काफी अच्छी है।
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शरीर के लिए वरदान है अलसी (तीसी)
अलसी में लिगनेंस एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं जो कैंसर, डायबिटीज और हार्ट प्रॉब्लम के रिस्क को कम करने में मदद करता है। साथ ही यह आयरन, प्रोटीन और विटामिन बी 6 होता है जो एनीमिया, ज्वॉइंट पेन दूर करने और ब्रेन पावर बढ़ाता है। इसके साथ ही शरीर के रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी तेजी से सुधार करता है। इसे देखते हुए बीएयू के द्वारा 6 एकड़ भूमि में करीब 160 जीनोटाइप पर शोध किया जा रहा है। संस्थान के द्वारा विकसित दो किस्म दिव्या और प्रियम के प्रजनक बीज का भी उत्पादन किया जा रहा है। ये काम बारिश में बेहतर फसल देने में सक्षम है।
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मोटे अनाज से भागेंगे कई रोग
बीएयू के स्नातक के छात्रों के द्वारा मल्टी ग्रेन आटे पर शोध किया गया है। इसके साथ ही मोटे अनाजों से दो ऐसे आटे का विकास किया गया है जो शरीर को पुष्ट कर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ना के साथ मधुमेह को कंट्रोल में रखेंगे। इसे बनाने के लिए 9 आटे गेहूं, मडुआ (रागी), मकई, सोयाबीन, बाजरा, चना, ज्वार एवं चौलाई (एमेंरेनथश) के दानों का उपयोग किया गया। इसके प्रति 100 ग्राम इस आटे में 346.96 किलो कैलोरी उर्जा, 13.29 ग्राम प्रोटीन, 3.13 ग्राम, 66.50 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 2.57 ग्राम खनिज, 92.81 मि. ग्राम कैल्शियम तथा 4.96 मि. ग्राम आयरन की पोषक तत्व मौजूद है। इस आटे को एफएसएसएआइ के द्वारा प्रमाणित किया गया है।