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पार्टी का संविधान ही नहीं था तो गरिमा किस बात की

राज्य ब्यूरो, रांची : झाविमो से भाजपा में शामिल हुए छह विधायकों के दलबदल मामले में शुक्रवार को राजस्

By JagranEdited By: Published: Sat, 09 Jun 2018 11:44 AM (IST)Updated: Sat, 09 Jun 2018 11:44 AM (IST)
पार्टी का संविधान ही नहीं था तो गरिमा किस बात की
पार्टी का संविधान ही नहीं था तो गरिमा किस बात की

राज्य ब्यूरो, रांची : झाविमो से भाजपा में शामिल हुए छह विधायकों के दलबदल मामले में शुक्रवार को राजस्व, निबंधन एवं भूमि सुधार मंत्री अमर कुमार बाउरी ने अपनी गवाही दर्ज कराई। स्पीकर दिनेश उरांव के कोर्ट में लगभग 50 मिनट तक चली इस सुनवाई में प्रतिवादी (भाजपा) संख्या चार के तौर पर मंत्री ने वादी पक्ष (झाविमो) के अधिवक्ता का कई बार खुलकर जवाब दिया। अलबत्ता कई सवालों के जवाब में वे न सिर्फ लड़खड़ाए, बल्कि कई मौके ऐसे भी आए, जब उन्होंने चुप्पी साध ली। अधिवक्ता के इस सवाल पर कि किस प्रक्रिया के तहत उन्होंने झाविमो का दामन छोड़ा, उन्होंने दो टूक कहा पार्टी के वरिष्ठ सदस्य जानकी प्रसाद यादव की अध्यक्षता में हुई बैठक में राज्य और पार्टी हित में झाविमो का विलय भाजपा में करने का निर्णय लिया गया। यह पूछने पर कि क्या उन्हें पार्टी के विलय के संबंध में उन्होंने झाविमो का संविधान पढ़ा है, विलय संविधान के अनुकूल है। क्या पार्टी के अध्यक्ष की अनुपस्थिति में ऐसा निर्णय लिया जाता है। मंत्री ने कहा पार्टी की लोकतांत्रिक व्यवस्था तार-तार हो गई थी। पार्टी में तानाशाही हावी हो गई थी। हजारीबाग के छड़वा डैम में झाविमो का बहुत बड़ा सम्मेलन हुआ था। वहां सर्वसम्मति से सहमति बनी थी कि बाबूलाल मरांडी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। उनकी भूमिका स्टार प्रचारक के रूप में होगी। 2014 के चुनाव में उन्हें बतौर मुख्यमंत्री पेश किया जाएगा। इससे इतर उन्होंने पार्टी की भावना का अपमान कर कोडरमा से चुनाव लड़ा और मुंह की खाई। उन्होंने ऐसा कर पार्टी के लिए कब्र खोद दिया। उनकी इस हरकत से नाराज 11 में से सात विधायकों ने पार्टी पूर्व में ही छोड़ दी थी। 2014 के चुनाव के बाद पार्टी सुप्रीमो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से मिलकर आए थे, पार्टी के भविष्य को देखते हुए उसे भाजपा में मर्ज करने की बात थी। इस बाबत बैठक बुलाई गई थी, परंतु बाबूलाल नहीं आए। मेरा स्पष्ट मानना है कि झाविमो का कोई संविधान ही नहीं था, तो फिर गरिमा किस बात की।

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अधिवक्ता-मंत्री संवाद :

क्या आपने पार्टी के विलय की सूचना भारत निर्वाचन आयोग को दी थी?

- जवाब देने की जवाबदेही मेरी नहीं, भाजपा की थी।

2014 का चुनाव आपने झाविमो के टिकट पर जीता था। फिर उसे ही छोड़ दिया, जनता को क्या जवाब देंगे?

- अगर चंदनक्यारी की जनता को गुमराह किया है तो 2019 का चुनाव भी सामने है।

भाजपा के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष रवींद्र कुमार राय ने स्पीकर को लिखे अपने पत्र में झाविमो के विलय की बात न कर, छह विधायकों की बात कही थी, जिसे आप झुठला रहे हैं।

- तत्कालीन अध्यक्ष से लिखने में भूल हो गई होगी।

आपने पूरी की पूरी झूठी गवाही दी है।

- नहीं मैंने जो भी कहा है सत्य कहा है, सत्य के सिवा कुछ नहीं कहा है।

स्पीकर की आपत्ति अथारिटी को चैलेंज न करें प्रतिवादी पक्ष :

गवाही के दौरान एक मौका ऐसा भी आया, जब वादी पक्ष के अधिवक्ता ने भारत निर्वाचन आयोग की ओर से जारी एक पत्र की प्रतिलिपि कोर्ट में पेश की। प्रतिलिपि में इस बात का प्रमाण था कि आयोग को न तो झाविमो के विलय की कोई सूचना दी गई थी और न ही झाविमो मान्यता प्राप्त दलों की सूची से बाहर है। अधिवक्ता ने सवाल दोहराया कि फिर पार्टी का विलय कैसे हुआ। इस पर प्रतिवादी पक्ष के अधिवक्ताओं ने यह टिप्पणी की कि संबंधित पत्र सत्यापित नहीं है। ऐसे में हो सकता है कि पत्र फर्जी हो। इस पर स्पीकर ने आपत्ति जताई कि प्रतिवादी पक्ष अथारिटी को चैलेंज न करें। इस बीच उन्होंने वादी पक्ष के अधिवक्ता को आवेदन के साथ संबंधित पत्र कोर्ट में जमा करने को कहा।


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