खपरैल के छोटे-छोटे घर बढ़ाते थे खूबसूरती
45 सालों में रांची मेंकाफी बदलाव हो गया है।
जागरण संवाददाता, रांची : 45 सालों में रांची में जितना बदलाव हुआ है ये कहना मुश्किल है कि किसी और शहर में हुआ या नहीं। 70 की दशक में रांची एक बेहद खूबसूरत शहर था। चारों तरफ हरियाली थी। इतने इमारत नहीं थे। छोटे-छोटे खपड़ैल घर हुआ करते थे। हर घर से तड़के कोयले का धुंआ निकलता दिखता था। यहां ज्यादातर लोग कोयले पर खाना बनाने के लिए और अंगीठी में कोयले का ही इस्तेमाल करते थे। वातावरण इतना स्वच्छ की पटना से लोग स्वास्थ्य लाभ लेने और घूमने के लिए रांची आते थे। ये बातें रांची के बारे में बताते हुए राम लोचन सिंह ने कही। राम लोचन सिंह में एनसीसी में कार्यरत थे। उसके बाद उन्होंने रांची में ही बसने का फैसला कर लिया। राम लोचन सिंह बताते हैं कि 88 साल की उम्र में उन्होंने देश के कई हिस्से घूमे मगर रांची के जैसा कोई शहर उन्हें नहीं मिला। उन्होंने बताया कि 90 के दशक तक आज के हरमू बाइपास रोड के आसपास का इलाका पेड़ों से ढका हुआ था। इलाका सुनसान हुआ करता था मगर किसी तरह का डर भय नहीं था। 1975 में हमलोग अपने परिवार के साथ नाइट शो देखने जाते थे। फिर रिक्शा नहीं मिलने पर आते भी पैदल थे। रास्ते में कोई टोकता तक नहीं था। उस वक्त रांची में अच्छे परिवार के लोग नाइट शो सिनेमा ही देखने जाते थे। लोग शाम में दफ्तर से आते वक्त टिकट ले लेते थे।
मेन रोड में भी पेड़ और बगीचे थे
1990 के बाद से रांची में बदलाव का दौर शुरू हुआ। शहरीकरण ने रांची से जो सबसे बड़ी चीज चुरायी वो थी, यहां की हरियाली और सुहावना मौसम। मेन रोड जहां कभी पेड़ और बगीचे थे। आज केवल इमारत है। पहले रांची में दोपहर बाद बारिश जरूर होती थी। लोग घरों से छतरी लेकर निकलते थे। छतरी और झोला रांची के लोगों की पहचान थी। गर्मी केवल अप्रैल और मई के महीने में होती थी। वो भी इतनी की पंखा चलाकर रहा जा सकता था। मगर आज एसी में भी रात में नींद नहीं आती है।