छठी जेपीएससी के अंतिम परिणाम को चुनौती, सरकार व जेपीएससी से मांगा जवाब
रांची झारखंड हाई कोर्ट के जस्टिस राजेश कुमार की अदालत में छठी जेपीएससी परीक्षा के अंतिम परिणाम को चुनौती दी गई है।
रांची : झारखंड हाई कोर्ट के जस्टिस राजेश कुमार की अदालत में छठी जेपीएससी परीक्षा के अंतिम परिणाम को चुनौती देने वाली याचिका पर सोमवार को सुनवाई हुई। सुनवाई के बाद अदालत ने झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) और सरकार से दस जून तक प्रार्थी की ओर से उठाए गए बिंदुओं पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
दरअसल, अभिषेक मनीष सिन्हा ने जेपीएससी द्वारा जारी मेरिट लिस्ट को हाई कोर्ट में चुनौती दी है। सुनवाई के दौरान अधिवक्ता मनोज टंडन व नेहा भारद्वाज ने अदालत को बताया कि जेपीएससी ने रिजल्ट जारी करने में कई गड़बड़ियां की हैं। जेपीएससी ने कट ऑफ मार्क्स 600 निर्धारित किया है, जबकि प्रार्थी को कुल 601 अंक मिले हैं। तब भी उनका चयन नहीं हुआ है। विज्ञापन की शर्त में कहा गया था कि हिंदी और अंग्रेजी (पेपर 1) में सिर्फ क्वालीफाइंग मार्क्स रहेगा और इसका अंक परिणाम में नहीं जोड़ा जाएगा। लेकिन, परिणाम जारी करने में इसे भी शामिल कर लिया गया है। हर बार अलग-अलग पदों के लिए अलग-अलग कट ऑफ मार्क्स रखा जाता था, लेकिन इस बार सभी पदों के लिए एक ही कट ऑफ मार्क्स रखा गया है, जो कि गलत है। इसलिए जारी किए गए अंतिम परिणाम पर रोक लगा देनी चाहिए। इस पर अदालत ने रोक लगाने से इन्कार कर दिया।
वहीं, जेपीएससी के अधिवक्ता संजय पिपरवाल ने कहा कि रिजल्ट जारी करने के दौरान प्रार्थी की बारी आते-आते सिर्फ योजना सेवा में चयन बचा था, लेकिन प्रार्थी के इस विभाग के लिए अर्हता पूरी नहीं करने की वजह से उनका चयन नहीं किया गया। उन्होंने अदालत को यह भी बताया कि रिजल्ट जारी करने के बाद आयोग ने अभी सफल उम्मीदवारों की सिफारिश सरकार को नहीं भेजी है। इस पर कोर्ट ने कहा कि जेपीएससी की ओर से कोई भी आदेश जारी करने से पहले प्रार्थी के लाभ (इंट्रेस्ट) को भी ध्यान में रखा जाए। दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने सरकार और जेपीएससी को प्रार्थी की आपत्ति पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। अगली सुनवाई 10 जून को होगी। रिकवरी पर रोक, सेवानिवृत्ति लाभ देने का आदेश
रांची : झारखंड हाई कोर्ट के जस्टिस राजेश कुमार की अदालत ने रिम्स निदेशक के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें उन्होंने रिम्स के एक कर्मचारी से सेवानिवृत्ति के बाद रिकवरी करने का आदेश दिया था। साथ ही अदालत ने संबंधित कर्मचारी को सेवानिवृत्ति लाभ देने का आदेश दिया है। दरअसल रिम्स के ओटी सहायक के रूप में कार्य करने वाले दिनेश कुमार 31 दिसंबर 2019 को सेवानिवृत्त हो गए। इसके बाद दो जनवरी 2020 को रिम्स निदेशक ने यह कहते हुए उनसे रिकवरी करने का आदेश दिया कि वर्ष 2009 से 2015 के बीच इन्हें ज्यादा वेतन दिया गया है, जो कि गलत वेतन निर्धारण के कारण हुआ है। इसलिए उनके सेवानिवृत्ति लाभ व पेंशन से करीब तीन लाख रुपये की वसूली की जाए।
बताते चलें कि रिम्स निदेशक के आदेश को दिनेश कुमार ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। सोमवार को सुनवाई के दौरान वादी के अधिवक्ता अमृतांश वत्स ने अदालत को बताया कि सेवानिवृत्ति के बाद किसी से भी रिकवरी नहीं की जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का हवाला देते हुए कहा कि तृतीय एवं चतुर्थवर्गीय कर्मचारी से रिकवरी नहीं की जा सकती है, चाहे उन्हें गलती से ही अधिक वेतन दिया गया हो। इसके बाद अदालत ने रिम्स निदेशक के रिकवरी के आदेश पर रोक लगा दी और रिम्स से जवाब मांगा है। मामले में अगली सुनवाई छह सप्ताह बाद होगी। हज हाउस हादसे के आरोपित अभियंता को मिली जमानत
रांची : झारखंड हाई कोर्ट के जस्टिस दीपक रोशन की अदालत ने सोमवार को हज हाउस के निर्माण में गड़बड़ी और छत गिरने के मामले में आरोपित आवास बोर्ड के पूर्व अभियंता विकास कुमार ओझा को सशर्त जमानत प्रदान कर दी है। अदालत ने उन्हें हर सुनवाई की तिथि पर निचली अदालत ने उपस्थित रहने का आदेश दिया है।
यह मामला 2007-09 का है, जब झारखंड राज्य आवास बोर्ड को हज हाउस के निर्माण की जिम्मेदारी दी गई थी। विकास कुमार ओझा बोर्ड में कनीय अभियंता के रूप में तैनात थे और हज हाउस के निर्माण के प्रस्ताव तैयार करने की जिम्मेदारी थी। हज हाउस के निमार्ण के लिए 4.8 करोड़ रुपये का प्रस्ताव तैयार किया गया। निर्माण के दौरान 20 सितंबर 2009 को इमारत की पोíटको की छत का एक हिस्सा नीचे गिर गया, इस हादसे में नौ महिला मजदूरों को चोट आई, जबकि 30 अन्य मलबे में फंस गए थे। हाई पावर कमेटी ने जांच में निर्माण में घटिया सामग्री के प्रयोग की बात कही थी। इसके बाद भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने प्राथमिकी दर्ज की। प्रार्थी के अधिवक्ता विश्वजीत मुखर्जी ने अदालत को बताया कि ओझा का ठेकेदार के साथ कोई संबंध नहीं था और न ही उन्होंने प्रस्तावित इमारत के लिए निर्माण सामग्री की खरीद के लिए कुछ किया था। घटना के दिन ओझा रांची में मौजूद नहीं थे, क्योंकि उस समय उन्हें धनबाद भेज दिया गया था। उन्होंने केवल निर्माण के खर्च का प्रस्ताव तैयार किया था। इसके बाद अदालत ने उन्हें जमानत प्रदान कर दी।